F समाश्वासनवागेका/samashvanvageka shloka niti - bhagwat kathanak
समाश्वासनवागेका/samashvanvageka shloka niti

bhagwat katha sikhe

समाश्वासनवागेका/samashvanvageka shloka niti

समाश्वासनवागेका/samashvanvageka shloka niti

 समाश्वासनवागेका/samashvanvageka shloka niti

समाश्वासनवागेका/samashvanvageka shloka niti

समाश्वासनवागेका न दैवं परमार्थतः ।

मूर्खाणां सम्प्रदायेऽस्य दैवस्य परिपूजनम।।२२।।


प्रसंग:- मूर्खा एव भाग्यवादिनो भवन्तीति प्रतिपादयति -


अन्वयः- (इयं) एका समाश्वासनवाक (मात्र) परमार्थतः दैन (किञ्चित) मूर्खाणां सम्प्रदाते, अस्य दैवस्य परिपूजनं भवति ।।२२।।


व्याख्या - इयं दैवमस्ति इति, एका-एकसंख्याका, समाश्वासनस्य सान्त्वनाया: वाकवाणी, मात्र, परमार्थतः यथार्थत:, दैव भाग्यं न किञ्चित् किञ्चिदपि न, मूर्खाणां मूढानां सम्प्रदाये समाजे, अस्य, दैवस्य भागस्य, परिपूजनम् अर्चनं भवति न तु विद्वत्समाजे ।।२२।।


भाषा - यह तो केवल आश्वासन देने के लिए कथन मात्र है कि भाग्य ही सब कुछ है, वस्तुतः भाग्य नाम की कोई वस्तु नहीं है। मूर्यों के समाज में ही केवल एक मात्र भाग्य की पूजा होती है।।२२।।

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 समाश्वासनवागेका/samashvanvageka shloka niti


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