हीयते हि मतिस्तात/hiyate hi matistat shloka niti

 हीयते हि मतिस्तात/hiyate hi matistat shloka niti

उद्योगिनं पुरुषसिंहमुपैति /udyoginam purusha shloka niti

हीयते हि मतिस्तात। हीनैः सह समागमात् ।

समैश्च समतामेति विशिष्टैश्च विशिष्टताम् ।।२८ ।।


प्रसंग:- संगतेः सदसत्फलानि वर्णयति-


अन्वयः- हे तात हीनैः सह समागमात मतिः हीयते, समैः च समताम् एति, विशिष्टैः च विशिष्टताम् (एति)।।२८।।


व्याख्या- हे तात्! हीनः नीचैः, सह समागमात्-संगात्, मतिः बुद्धि, हीयते-क्षीयते, नीचतां यातीत्यर्थः, समै: आत्मतुल्यैः, जनैः, सह समागमात् समानतां तुल्यतामित्यर्थः, एति प्राप्नोति, एवं विशिष्टै: स्वस्मात् योग्यताशालिभिः विद्वद्भिः सह समागमात् संगात्, विशिष्टताम् = योग्यताशलिताम्, एति-प्राप्नोति ।।२८ ।।


भाषा- हे पुत्र! नीच व्यक्तियों की संगति करने से बुद्धि क्षीण होती अपनी बराबरी के लोगों की संगति से मति समान ही रहती है एवं विशिष्ट गों की संगति से विशिष्टता (विद्वता) आदि गुणों को प्राप्त होती है ।।२८ ।।

 नीति संग्रह- मित्रलाभ: के सभी श्लोकों की लिस्ट देखें नीचे दिये लिंक पर क्लिक  करके। -clickNiti Sangrah all Shloka List

 हीयते हि मतिस्तात/hiyate hi matistat shloka niti

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