आचार्यस्त्वस्य यां जातिं/acharyastvasya yam jati shloka niti
आचार्यस्त्वस्य यां जातिं विधिववेदपारगः ।
उत्पादयति सावित्र्या सा सत्या साजरामरा । ।२७।।
प्रसंग:- बालके गुरूकृतसंस्कारोत्पन्नजातेः श्रेष्ठतां निरूपयति-
अन्वयः-तु, वेदपारगः, आचार्यः, अस्य, यां, जाति, विधिवत, सावित्र्या उत्पादयति, सा, सत्या, सा अजरा अमरा च।।२७।।
व्याख्या-तु-पुनः, वेदस्य पारं गच्छति इति वेदपराग: वेदपारगामी आचार्यः अस्य–शिशोः, यां जाति-यज्जन्म, विधिना तुल्यं विधिवत- यथाशासनम उपनयनपूर्वकं सवित्र्या-गायात्र्युपदेशेन, उत्पादयति-जनयति, सा=जातिः सत्या-तथ्यरूपा, अजरा-जरारहिता, अमरा-मृत्युरहिता च जायते।
भाषा- वेदविद् आचार्य बालक की जिस जाति को उपनयनादि संस्कार यथाविधि गायत्री के उपदेश द्वारा बनाता है, संस्कार से नवीन जन्म देता है, वह जाति सत्य, जरारहित और अमर है ।।२७।।
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