उत्सवे व्यसने चैव /utsave vyasne chaiva shloka niti

 उत्सवे व्यसने चैव /utsave vyasne chaiva shloka niti

उत्सवे व्यसने चैव /utsave vyasne chaiva shloka niti

उत्सवे व्यसने चैव दुर्भिक्षे राष्ट्रविप्लवे।

राजद्वारे श्मशाने च यस्तिष्ठति स बान्धवः ।।४१।।


प्रसंग:- बान्धवलक्षणं निर्दिशति-


अन्वयः- यः उत्सवे व्यसने च, दुर्भिक्षे राष्ट्रविप्लवे च, राजद्वारे श्मशाने च तिष्ठति स एव बान्धवः ।।४१।।


व्याख्या - उत्सवे = पुत्रजन्मविवाहाद्यानन्दोत्सवसमये, व्यसने = विपत्तिकाले दुर्भिक्षे = अन्नाभावसमये, राष्ट्रविप्लवे = राजसंकटसमये, राजद्वारे = न्यायालयादौ, च = तथा, श्मशाने = शवदाहस्थाने, यः तिष्ठति = यः जनः सहायो भवति, सः जनः वस्तुतः बान्धवः भवति।।१।।


भाषा- पुत्रजन्म और विवाहादि उत्सव कार्यों में, संकटावस्था में, दुर्भिक्ष (अकाल) के समय, जब कि राज्य में क्रान्ति या परिवर्तन हो रहे हों ऐसे अवसर में, न्यायालय आदि में और श्मशान में जो साथ देता है वही बान्धव है।

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