आपत्सु मित्रं जानीयाद् /apatsu mitram janiyad shloka niti

 आपत्सु मित्रं जानीयाद् /apatsu mitram janiyad shloka niti

आपत्सु मित्रं जानीयाद् /apatsu mitram janiyad shloka niti

आपत्सु मित्रं जानीयाद् युद्धे शूरमृणे शुचिम् ।

भार्या क्षीणेषु वित्तेषु, व्यसनेषु च बान्धवान् ।।४०।।


प्रसंग:- आत्मीयजनानां परीक्षणस्थानानि निर्दिशति-


अन्वयः- आपत्सु = आपत्तिकालेषु मित्रम्, युद्धे = रणे, शूरं = वीरं, ऋणे = ऋणविषये च शुचिं = शुद्धव्यापारं जानीयात्, वित्तेषु = धनेषु क्षीणेषु सत्सु, भार्याम् = गृहिणी, व्यसनेषु = संकटेषु सत्सु, बान्धवान् = भ्रातृन् च जानीयात् = अवगच्छेत् ।।४।।


भाषा - आपत्तिकाल में मित्र की, युद्ध काल में वीर की, ऋण देने व लेने के व्यवहार में सत्यता की, निर्धनावस्था में पत्नी की एवं संकटकाल में बान्धवों की परीक्षा होती है ।।४०।।

 नीति संग्रह- मित्रलाभ: के सभी श्लोकों की लिस्ट देखें नीचे दिये लिंक पर क्लिक  करके। -clickNiti Sangrah all Shloka List

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