सुहृदां हितकामानां /suhrada hita kamanam sloka niti

 सुहृदां हितकामानां /suhrada hita kamanam sloka niti

सुहृदां हितकामानां /suhrada hita kamanam sloka niti

सुहृदां हितकामानां यः श्रृणोति न भाषितम्।

विपत्सन्निहिता तस्य स नरः शत्रुनन्दनः ।।४२।।


प्रसंग:- मित्रवचनतिरस्कर्तुंर्गतिं वर्णयति।


अन्वयः- यः हितकामानां सुहृदां भाषितं न श्रृणोति तस्य विपत् सन्निहिता, सः नरः शत्रुनन्दनः भवति ।।४२।।


व्याख्या:- यः = जनः हितं कामयन्ते इति हितकामाः तेषां = हितचिन्तकानां सुहृदां = मित्राणां, भाषितं = वचनं, न श्रृणोति = न आकर्णयति, तस्य = जनस्य, विपत = आपत्तिः, सन्निहिता = समीपस्था भवतीति शेषः । स च नरः शत्रन = अरीन नन्दयतीति = आनन्दयतीति शत्रुनन्दनः = शत्रूणामानन्दजनकः भवति ।।४२।।


भाषा:- जो व्यक्ति अपने हितैषी मित्रों की बातों को नहीं सुनते, ऐसे लोगों की विपत्ति सन्निकट हुआ करती है और वह अपने शत्रुओं को प्रसन्न करने वाले ही होते हैं।।४२।।

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 सुहृदां हितकामानां /suhrada hita kamanam sloka niti


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