न संशयमनारुह्य /na sanshaya manaruhya shloka niti

 न संशयमनारुह्य /na sanshaya manaruhya shloka niti

न संशयमनारुह्य /na sanshaya manaruhya shloka niti

न संशयमनारुह्य नरो भद्राणि पश्यति ।

संशयं पुनरारुय यदि जीवति पश्यति ।।३।।


प्रसंग:- सर्वत्र संशयसम्भावनां प्रतिपादयति-


अन्वयः- नरः संशयम् अनारूहय भद्राणि न पश्यति, पुनः संशयम आरुह्य यदि जीवति (तदा पश्यति)।।३।।


व्याख्या- नरः, संशयम अनारूहय-अस्मिन कर्मणि प्रवृत्तोऽहं जीविष्यामि मरिष्यामि वेति सन्देहारोहणमकृत्वा भद्राणि शुभकार्याणि न, पश्यति-निरीक्षते, पुनः यदि संशयम आरूहय-जीवनं सन्देहे पातायित्वा जीवति प्राणिति, तदा भद्राणि पश्यति भूयो भूयः कल्याणमेव लभते इत्यर्थः । ।३।।


भाषा - मनुष्य अपने को खतरे में डाले बिना विशिष्ट लाभ नहीं पा सकता यदि खतरे से बच गया तो उस लाभ का सुख वह भोगता ही है।।३।।

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 न संशयमनारुह्य /na sanshaya manaruhya shloka niti

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