ईर्ष्या घृणी त्वसंतुष्टः /irshya ghrani tva shloka niti

ईर्ष्या घृणी त्वसंतुष्टः /irshya ghrani tva shloka niti

ईर्ष्या घृणी त्वसंतुष्टः /irshya ghrani tva shloka niti

ईर्ष्या घृणी त्वसंतुष्टः क्रोधनो नित्यशंकितः ।

परभाग्योपजीवी च षडेते दुःखभागिनः ।।४।।


प्रसंग :- दुःखभागिनो वर्णयति-

अन्वयः- ईर्ष्या, घृणी, असन्तुष्टः क्रोधनः, नित्यशंकित: परभाग्योपजीवी • च एते षट् दुःखभागिनः (भवन्ति) ।।४।।


व्याख्या- ईर्ष्या = परोत्कर्षासहिष्णुता विद्यते अस्य इति ईर्ष्या = परोत्कर्षासहिष्णुः घृणा विद्यते अस्य इति घृणी-घृणाशीलः जुगुप्सक इत्यर्थः । असन्तुष्टः = सन्तोषरहितः, क्रोधनः क्रोधी, नित्यशंकित: सर्वदा शंकायुक्तः, परभाग्येन उपजीवतीति परभाग्योपजीवी-पराभाग्यमाश्रितः एते षट्-षट्संख्यकाः जनाः दुःखं भजन्त इति दुःखभागिनः सर्वदा क्लेशभाजा एव भवन्ति ।।४।।


भाषा- ईर्ष्या करने वाला, घृणा करने वाला, असन्तोषी, क्रोधी, प्रत्येक विषय में शंकित रहने वाला और दूसरे के भाग्य के सहारे जीने वाला अर्थात् पराध पीन ये छ: प्रकार के मनुष्य सर्वदा दुःखी ही रहते हैं। 

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ईर्ष्या घृणी त्वसंतुष्टः /irshya ghrani tva shloka niti

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