किञ्च नारिकेलसमाकारा /kincha narikela samakara shloka niti

 किञ्च नारिकेलसमाकारा /kincha narikela samakara shloka niti

किञ्च नारिकेलसमाकारा /kincha narikela samakara shloka niti

किञ्च नारिकेलसमाकारा दृश्यन्ते हि सुहृज्जनाः ।

अन्ये बदरिकाकारा बहिरेव मनोहराः । ।५४।।


प्रसंग:- सज्जनदुर्जनयोः स्वभावमुदाहरति-


अन्वयः- हि सुहृज्जनाः नारिकेलसमाकाराः दृश्यन्ते, अन्ये बदरिकाकाराः बहिरेव मनोहराः (भवन्ति) ||५४।।


व्याख्या - हि सुहज्जनाः = सत्पुरुषाः, नारिकेलसमाकारा -नारिकेलफल वदन्तर्मधुरकोमलाः, बहिः कठिनाश्च भवन्ति । अन्ये = इतरे दुर्जनाः बदरिकाकाराः = बदरीफलाकाराः बहिरेव = बर्हिभाग एव, मनोहराः = शोभमाना अन्तःकठिनाश्च दृश्यन्ते।।५४ ।।


भाषा - और भी सज्जन लोग नारियल के समान बहार से कठोर तथा रूक्ष और भीतर से कोमल तथा मधुर होते हैं, किन्तु दुर्जन लोग बेर के फल के सामान बाहर से ही स्निग्ध और भीतर से कठोर हुआ करते हैं। ।५४ ।।

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