रोग-शोक-परीताप /rog shok paritap shloka niti

 रोग-शोक-परीताप /rog shok paritap shloka niti

रोग-शोक-परीताप /rog shok paritap shloka niti

रोग-शोक-परीताप-बन्धन-व्यसनानि च।

आत्मापराधवक्षाणां फलान्येतानि देहिनाम।।२१।।


प्रसंग:- अनिष्टे स्वकर्मणामेव कारणत्वं निर्दिशति-


अन्वयः-रोग-शोक-परीताप-बन्धन-व्यसनानि एतानि च देहिनाम आत्मापराधवृक्षाणां फलानि (भवन्ति)।।२१।।


व्याख्या-रोग: व्याधिः, शोकः आत्मीयजननाशजनितं दुःखं, परीतापः रोगशोकाभ्यामतिरिक्तं विविधं मनस्तापरूपं लौकिकं दुखं, बन्धनं-कारागारादिवासः, व्यसनं विपत्तिः, चकारस्य अनुक्तसमुच्चयार्थकत्वात रोग-शोक-परीतापबन्धन-व्यसनभिन्ना अन्या अपि विपत्तयो बोध्याः, एतानि आत्मनः स्वस्य, अपराध ॥ एव वृक्षास्तेषां फलानि आत्मकर्मणां परिणामरूपाणि सन्तीत्यर्थः ।।२१।।


भाषा:- रोग, शोक नाना प्रकार की चिन्ताएं, बन्धन और अन्य प्रकार की विपत्तियां ये प्राणियों द्वारा किये गये पापापराधरूपी वृक्षों के फल हैं।।२१।।

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