समानीव आकूतिः/samaniva aakutih shloka niti

 समानीव आकूतिः/samaniva aakutih shloka niti

समानीव आकूतिः/samaniva aakutih shloka niti

समानीव आकूतिः समाना हृदयानि वः ।

समानमस्तु वो मनो यथा वः सुसहासति ।।२२।।


प्रसंग:- एकताया उत्कर्षं वर्णयति-


अन्वयः-वः आकूतिः समानी, वः हृदयानि समाना, वः मनः समानम अस्त यथा वः सुसह असति।।२२।।


व्याख्या-हे ऋत्विग्यजमानाः । वः युष्माकम् आकूतिः = संकल्पोऽ यवसायश्च समानी-एक विधास्तु, व: युष्माकं हृदयानिचे तांसि, समाना-समानानि एकविधानि (सन्तु), व: युष्माकं मनः अन्तःकरणम् समानम् अस्तु (अथ) वः युष्माकं सुसह-शोभनं साहित्यम् असति-अस्तु । अर्थात् मनः शोभन साहित्यवदत्युदारं भवतु। अत्रास्तेर्लटि बहुलं छन्दसीति शपो लुगभावः । लोटस्थाने लट् इत्यवधेयम् ।।२२।।


भाषा-हे यजमानों और पुरोहितों। आपके कर्म और निश्चय एक हों, परस्पर आपके हृदय अभिन्न होवें, जैसा आप लोगों का सुन्दर साहित्य है, उसी प्रकार परस्पर अन्तःकरण भी सुन्दर और सुसंगठित होवें।।२२।।

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