धर्मार्थकाममोक्षाणां /dharmartha kam mokshanam shloka niti

 धर्मार्थकाममोक्षाणां /dharmartha kam mokshanam shloka niti

धर्मार्थकाममोक्षाणां /dharmartha kam mokshanam shloka niti

धर्मार्थकाममोक्षाणां प्राणाः संस्थितिहेतवः।

तन्निघ्नता किं न हतं रक्षता किं न रक्षितम् ।।२३।।


प्रसंग:- प्राणरक्षणं सर्वप्रथमं कर्तव्यमिति निर्दिशति-


अन्वयः- प्राणाः धर्मार्थकाममोक्षाणां संस्थितिहेतवः (भवन्ति) तान निजता किं न हतम् रक्षता (च) किं न रक्षितम् ।।२३।।


व्याख्या-प्राणाः, धर्मश्च अर्थश्च कामश्च मोक्षश्च धर्मार्थकाममोक्षाः तेषां धर्मार्थकाममोक्षाणां चतुर्णां पुरुषार्थानां, संस्थितिहेतवः रक्षाकारणानि भवन्तीति शेषः, तान प्राणान्, निजता-नाशयता जनेन किं न हतम् किं न नाश्तिम्? रक्षता तथैव तान् प्राणान् पालयता किं न पालितम्? सर्वं पालितम् इति भावः ।।२३।।


भाषा- धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चारों पुरुषार्थो के अस्तित्व के कारणभत प्राण ही हैं, इसलिये उनका नाश करने वाले ने क्या नहीं नाश किया और उनकी रक्षा करने वाले ने किसकी रक्षा नहीं की।।२३।।

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