त्रिभिर्वस्त्रिभिर्मासै /tribhivar tribhir masai shloka niti

 त्रिभिर्वस्त्रिभिर्मासै /tribhivar tribhir masai shloka niti

त्रिभिर्वस्त्रिभिर्मासै /tribhivar tribhir masai shloka niti

त्रिभिर्वस्त्रिभिर्मासैस्त्रिभिः पक्षैस्त्रिभिर्दिनैः ।

अत्युत्कटैः पापपुण्यैरिहैव फलमश्नुते ।।५१ ।।


प्रसंग:- पापकर्मफलस्यावश्भोक्तव्यतां निरूपयति-


अन्वयः- (जनः) अत्युत्कटैः पापपुण्यैः फलम्, इह एव त्रिभिः वर्षे, त्रिभिः मासैः, त्रिभिः दिनैः अश्नुते।।५१।।।


व्याख्या - अत्यत्कटैः = अतितीवैः पापानि पण्यानि च तैः पापपण्यैः फलं= परिणामरूपं फलं उत्कटपापपुण्याचरणजनितमित्यर्थः, इह एव = अस्मिन्नेव जन्मनि त्रिभिः वषैः त्रिभिः मासैः त्रिभिः पक्षैः अथवा त्रिभिर्दिनैः अश्नुते = प्राप्नोति नर इति शेषः । ५१।।


भाषा-उत्कट पापों या पुण्यों का फल इसी जन्म से तीन वर्ष, तीन मास, तीनपक्ष या तीन दिन में उसके कर्ता को भोगना पड़ता है।।५१।।

नीति संग्रह- मित्रलाभ: के सभी श्लोकों की लिस्ट देखें नीचे दिये लिंक पर क्लिक  करके। -clickNiti Sangrah all Shloka List

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