दुर्जनः परिहर्तव्यो /durjana parihartavyo shloka niti

 दुर्जनः परिहर्तव्यो /durjana parihartavyo shloka niti

दुर्जनः परिहर्तव्यो /durjana parihartavyo shloka niti

दुर्जनः परिहर्तव्यो विद्ययालंकृतोऽपि सन्।

मणिना भूषितः सर्पः किमसौ न भयंकरः? ||५२ ।।


प्रसंग :- दुर्जनस्य सर्वथा परित्याज्यतां निर्दिशति-


अन्वयः- विद्यया अलंकृतः सन् अपि दुर्जनः परिहर्तव्यः, मणिना भूषितः असौ सर्पः किं भयंकरः न? (भवति) ।।२।।


व्याख्या- विद्यया अलंकृतः सन्नपि = शास्त्रज्ञानभूषितो भवन्नपि, स यदि दुर्जनः, तदा परिहर्तव्यः = वर्जनीयः । मणिना = मस्तकस्थितेन रत्नेन, भूषितः = अलंकृतः असौ = दृष्टान्ततयोपस्थापितः सर्पः किं न भयंकरः न भयावहः आप तु सर्वथा भयंकर एवेति भावः।।२।।


भाषा- यदि दुजर्न विद्या से अलंकृत हो तो भी उसको त्याग देना चाहिये। जैसे–मणि अलंकृत सांप क्या भयदायक नहीं होता? ।।२।।

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