दुर्जनः प्रियवादी च /durjana priya vadi cha shloka niti
दुर्जनः प्रियवादी च नैतद्विश्वासकारणम।
मधु तिष्ठति जिह्वाग्रे हृदि हालाहलं विषम् ।।१०।।
प्रसंग:- दुर्जनस्य प्रियवादिता विश्वासकारणं न भवतीति ब्रूते-
अन्वयः- दुर्जन प्रियवादी च तत् विश्वासकारणं न । जिह्वाग्रे मधु तिष्ठति, हृदि तु हालाहलं विषम् (तिष्ठति)।।५० ।।
व्याख्या- दुर्जनः = खलः, प्रियवादी च एतत् = इदमस्य प्रियवादित्वं विश्वासहेतुः, न = नास्ति, यतः तस्य जिह्वाग्रभागे मधु तिष्ठति, हृदि = हृदये तु हालाहालं = विषं तिष्ठतीति शेषः । ।५० ।।
भाषा- दुर्जन का प्रियवादी होना यह उसके विश्वास का कारण नहीं है, क्योंकि उसके मुख में तो अमृत और हृदय में हालाहल विष भरा रहता है।।५०।।
एक टिप्पणी भेजें
आपको यह जानकारी कैसी लगी हमें जरूर बताएं ? आपकी टिप्पणियों से हमें प्रोत्साहन मिलता है |