शंकाभिः सर्वमाक्रान्त /sankabhi sarva makranta shloka niti

 शंकाभिः सर्वमाक्रान्त /sankabhi sarva makranta shloka niti

शंकाभिः सर्वमाक्रान्त /sankabhi sarva makranta shloka niti

शंकाभिः सर्वमाक्रान्तमन्नं पानं च भूतले।

प्रवृतिः कुत्र कर्तव्या? जीवितव्यं कथं नु वा।।६।।


प्रसंग:- सर्वत्र शक्ङाकरणमनुचितमिति वदति-

अन्वयः- भूतले, अन्नं पानं च सर्वम् शंकाभिः आक्रान्तम् कुत्र प्रवृतिः कर्तव्या कथं नु वा जीवितव्यम् ।।६।।

व्याख्या- भूतले, अन्नं भोजनम् भक्ष्यं, पानं-पेयं, सर्वम् वस्तुजातं शंकाभिः, आक्रान्तं व्याप्तम्, कुत्र प्रवृतिः कर्तव्या =कुत्र प्रवर्तितव्यम् वा अथवा कत्र न प्रवर्तितव्यम्, कथं वा जीवितव्यम् भोजनभावे केन प्रकारेण वा प्राणितव्यमिति भावः ।


भाषा- क्योंकि पृथ्वी में भोज्य (भक्ष्य), पेय आदि सभी पदार्थ शंकाओं से व्याप्त हैं। ऐसी स्थिति में किसे ग्रहण किया जाय, किसे ग्रहण न किया जाय। यदि सभी पदार्थ छोड़ दिये जायें तो जीवित कैसे रह जाय।।६।।

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 शंकाभिः सर्वमाक्रान्त /sankabhi sarva makranta shloka niti

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