सहसा विदधीत न क्रिया /sahsa vida dhit na kriya shloka niti

 सहसा विदधीत न क्रिया /sahsa vida dhit na kriya shloka niti

सहसा विदधीत न क्रिया /sahsa vida dhit na kriya shloka niti

सहसा विदधीत न क्रियामविवेकः परमापदां पदम् ।

वृणुते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वयमेव सम्पदः ||८||


प्रसंग:- विचारपूर्वककृतस्य कार्यस्यैव सफलत्वं निर्धारयति-


अन्वयः- क्रिया सहसा न विदधीत, अविवेकः परमम् आपदां पदम् (भवति) हि गुणलुब्धाः सम्पदः विमृष्यकारिणं स्वयम् एव वृणुते ।।८।।


व्याख्या- क्रियाम्=किमपि कार्यम्, सहसा-हठात् (अविचार्येवेत्यर्थः) न विदधीत= न कुर्वीत, अविवेकः अविचारिता, आपदां विपत्तीनां परमं =उत्कृष्टं पदं स्थानं भवति । गुणलुब्धाः गुणपक्षपातिन्यः सम्पदः सम्पत्तयः, विमृश्यकारिणं विचार्यकर्मकर्तारं स्वयम् एव वृणुते भजन्ते, हि-निश्चयेन।।८।।


भाषा - सहसा कोई काम नहीं कर बैठना चाहिये, विचार किये बिना किया हुआ काम आपत्ति का कारण बनता है। गुणों पर मुग्ध होने वाली सम्पति विचारपूर्वक काम करने वाले को स्वयं जयमाल पहनाती हैं ।।८||

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