ददाति प्रतिगृह्णाति /dadati prati grahnati shloka niti

 ददाति प्रतिगृह्णाति /dadati prati grahnati shloka niti

ददाति प्रतिगृह्णाति /dadati prati grahnati shloka niti

ददाति, प्रतिगृह्णाति, गुह्यं वक्ति श्रृणोति च।

भुङ्क्ते भोजयते चैवं षड्विधं प्रीतिलक्षणम् ।।५६।।


प्रसंग:- षड्विधं प्रीतिलक्षणं प्रस्तौति-


अन्वयः- ददाति, प्रतिगृह्णाति, गुह्यं वक्ति, श्रृणोति च, भुङक्ते, भोजयते च, एवं षडविधं, प्रीतिलक्षण


व्याख्या- यः = यः पुरूषः, ददाति = वितरति, प्रतिगृहणाति = स्वयंच आददाति, गुह्यं = स्वकीयं रहस्य, वक्ति = कथयति, श्रृणोति = अन्यदीयं च रहस्यं ससहानुभूतिपूर्वकम् आकर्णयति, भुङक्ते = सुहृदो गृहे भोजनं करोति, भोजयते = भोजनं करायति च, एवम् = इत्थं, षड्विधं = षट्प्रकार, प्रीतिलक्षण = प्रीतिस्वरूपं वर्तते इति शेषः । ।५६ ।।


भाषा- क्योंकि जो मनुष्य दिया लिया करता है, अपने रहस्य को बताया करता है और दूसरे के रहस्य को सहानुभूति के साथ सुनता है। स्वयं प्रेम यहां भोजन करता है एवं अपने यहां कराता है इस तरह के छ: प्रकार प्रीति के लक्षण कहे गये है।।५६ ।।

नीति संग्रह- मित्रलाभ: के सभी श्लोकों की लिस्ट देखें नीचे दिये लिंक पर क्लिक  करके। -clickNiti Sangrah all Shloka List

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