F दैवे पुरुषकारे चा /daive purusha kare cha shloka niti - bhagwat kathanak
दैवे पुरुषकारे चा /daive purusha kare cha shloka niti

bhagwat katha sikhe

दैवे पुरुषकारे चा /daive purusha kare cha shloka niti

दैवे पुरुषकारे चा /daive purusha kare cha shloka niti

दैवे पुरुषकारे चा /daive purusha kare cha shloka niti

दैवे पुरुषकारे चा /daive purusha kare cha shloka niti

दैवे पुरुषकारे चा स्थितमस्य बलाबलम्।

दैवं पुरुषकारेण दुर्बलं ह्युपहन्यते ।।१६।।


प्रसंग:- दैवापेक्षया पुरुषकारस्य प्राधान्यं वर्णयति -


अन्वयः- दैवे पुरुषकारे च अस्य बलाबलं स्थितम। हि परुषकारेण दुर्बलं दैवम् उपहन्यते ।।१६ ।।


व्याख्या- दैवे = भाग्ये, पुरुषं करोतीति पुरुषकारः तस्मिन् पुरुषकारे पौरुषे च अस्य बलञ्च अबलञ्च बलाबले तयोः समाहारः बलाबलं = दैवभागधेययोः मध्ये कस्य बलम अधिकं कस्य वा न्यूनमित्यर्थः, स्थितम = प्रतिष्ठितम् हि = यतः पुरुषकारेण = पौरुषेण, दुर्बलं = न्यूनबलं दैवम् = भाग्यम् उपहन्यते = हिंसितुं शक्यते।।१६।।


भाषा - भाग्य और पुरुषार्थ में इसका बलाबल विद्यामान है पुरूषकार के द्वारा दुर्बल भाग्य पराजित होता है ।।१६ ।।  

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दैवे पुरुषकारे चा /daive purusha kare cha shloka niti

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