अर्थनाशं मनस्तापं /artha nasham manastapam shloka niti

 अर्थनाशं मनस्तापं /artha nasham manastapam shloka niti

अर्थनाशं मनस्तापं /artha nasham manastapam shloka niti

अर्थनाशं मनस्तापं गृहे दुश्चरितानि च।

वञ्चनं चापमानं च मतिमान्न प्रकाशयेत् । ७१।।


प्रसंग:- मतिमता किं न प्रकाश्यमिति उत्तरयति-


अन्वयः- मतिमान् अर्थनाशं, मनस्तापं, गृहे दुश्चरितानि च, वञ्चनं च, अपमानं च न प्रकाश्येत् । ७१।।


व्याख्या- मतिमान् = बुद्धिमान्, अर्थस्य = धनस्य, नाशः = क्षयः त, मनसः = अन्तःकरणस्य तापं = दुःखं तं मनस्तापम गहे यानि दुश्चरितानव्यभिचारादिदराचरणानि तानि, वंचनं = दृष्टै: प्रतारणम, अपमान = तिरस्कार चन प्रकाश्येत् । ७१।।


भाषा-बुद्धिमान् मनुष्य अपने धन का नाश, हृदय का दुःख, घर में नेवाला दुराचार, किसी के द्वारा ठगा जाना और किसी के द्वारा तिरस्कार या अपमान किया जाना, इन्हें प्रकाशित न करें।।७१।।

नीति संग्रह- मित्रलाभ: के सभी श्लोकों की लिस्ट देखें नीचे दिये लिंक पर क्लिक  करके। -clickNiti Sangrah all Shloka List

 अर्थनाशं मनस्तापं /artha nasham manastapa3m shloka niti


0/Post a Comment/Comments

आपको यह जानकारी कैसी लगी हमें जरूर बताएं ? आपकी टिप्पणियों से हमें प्रोत्साहन मिलता है |

Stay Conneted

(1) Facebook Page          (2) YouTube Channel        (3) Twitter Account   (4) Instagram Account

 

 



Hot Widget

 

( श्री राम देशिक प्रशिक्षण केंद्र )

भागवत कथा सीखने के लिए अभी आवेदन करें-


close