F सेवेव मानमखिलं /seveva man makhilam shloka niti - bhagwat kathanak
सेवेव मानमखिलं /seveva man makhilam shloka niti

bhagwat katha sikhe

सेवेव मानमखिलं /seveva man makhilam shloka niti

सेवेव मानमखिलं /seveva man makhilam shloka niti

 सेवेव मानमखिलं /seveva man makhilam shloka niti

सेवेव मानमखिलं /seveva man makhilam shloka niti

सेवेव मानमखिलं ज्योत्स्नेव तमो जरेव लावण्यम्।

हरिहरकथेव दुरितं गुणशतमप्यर्थिता हरति ।।७२।।


प्रसंग :- याचना किं हरतीति सोदाहरणं प्रतिपादयति।


अन्वय :- सेवा अखिलं मानम् इव, ज्योत्स्ना तम इव, जरा लावण्यम् इव, हरिहरकथा दुरितम् इव, अर्थिता गुणशतमपि हरति । ७२।।


व्याख्या- सेवा अखिलं = संपूर्ण मानम् इव = यथा हरति, ज्योत्स्ना = चन्द्रिका तमः = अन्धकारम् इव = यथा हरति, जरा = वृद्धत्वं लावण्यं = सौन्दर्यम्, इव = यथा हरति, हरिहरकथा = भागवतकथा, इव = यथा, दुरितं = पापं हरति तथैव अर्थिता यांचना गुणानां शतम् अपि हरति ।।७२।।


भाषा- जैसे सेवा से गौरव, चांदनी से अधंकार, बुढ़ापे से सौन्दर्य और भागवत् की कथा से पाप नष्ट होता है उसी प्रकार याचना करने से अनन्त गुण भी नष्ट हो जाते हैं।

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 सेवेव मानमखिलं /seveva man makhilam shloka niti


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