तानीन्द्रियाण्य विकलानि /tani indriyani viklani shloka niti

 तानीन्द्रियाण्य विकलानि /tani indriyani viklani shloka niti

तानीन्द्रियाण्य विकलानि /tani indriyani viklani shloka niti

तानीन्द्रियाण्यविकलानि तदेव नाम,

सा बुद्धिरप्रतिहता वचनं तदेव ।

अथोष्मणा विरहितः पुरुषः स एव,

त्वन्यःक्षणेन भवतीतिविचित्रमेतत।।६६।।


प्रसंग:- अर्थ विना सर्वं व्यर्थं भवतीति निरूपयति-


अन्वयः- अविकलानि तानि एव इन्द्रियाणि, तदेव नाम, सा एव अप्रतिहता बद्धिः तदेव वचनम, स एव परुषः अर्थोष्मणा विरहित: क्षणेन त अन्यः भवतीति एतद्विचित्रम् ।।६६ ।।


व्याख्या- यानीन्द्रियाणि पूर्वं सधनावस्थायामासन् तानि एव इन्द्रियाणि चक्षुरादीनि अविकलानि-दोषरहितानि, साम्प्रंत निर्धनावस्थयामपि वर्तन्ते, यन्नाम यदभिधानं सम्पत्समये आसीत् तदेव नाम इदानीं विपत्समयेऽपि वर्तते, अप्रतिहता-अकुण्ठिता, तदानीन्तनी एव बुद्धिः इदानीमपि वर्तते, तदेव-तथाविध मेव वचनं परन्तु एवम्भूतः स एव पुरुषः यदा अर्थोष्मणा-धनोष्मणा विरहितः परित्यक्तः भवति तदा सः क्षणेन–क्षणमात्रादेव, अन्य इव-पृथग्जन इव तिरस्कार्यो भवति। एतत्-इदं विचित्रं महादाश्चर्यम् ।।६६ ।।


भाषा-आज भी वे ही इन्द्रियाँ अच्छी अवस्था में हैं जो पहले सधन अवस्था में थीं, सम्पन्न अवस्था में जो नाम था वही आज विपदस्था में हैं, जो दूरदर्शिनी बुद्धि पहले थी वही आज भी है और जो बात पहले थी आज भी वही बात है, परन्तु धन की गर्मी निकल जाने पर पुरूष की दशा क्षणमात्र में ही बदल जाती है, और वह साधारण जन की तरह हो जाता है, यह कैसा आश्चर्य है।।६६ ।।

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