रहस्यभेदो याच्या च/rahasya bhedo yachya cha shloka niti

 रहस्यभेदो याच्या च/rahasya bhedo yachya cha shloka niti

रहस्यभेदो याच्या च/rahasya bhedo yachya cha shloka niti

रहस्यभेदो याच्या च नैष्ठ्यं चलचितता।

क्रोधो निःसत्यता द्यूतमेतन्मित्रस्य दूषणम् । ।५६ ।।


प्रसंग:- मित्रदूषणानि निर्दिशति-


अन्वयः- रहस्यभेदः याच्या नैष्ठ्यं चलचित्तता क्रोधः निःसत्यता, चूत च एतत मित्रस्य दूषणम् अस्ति । ५६ ।।


व्याख्या- रहस्यभेदः - गुप्तमन्त्रस्य प्रकाशनं याच्चा द्रव्याचा साचन नैष्ठर्य = निर्दयता, चलचित्तता = चित्तचांचल्यं, क्रोधो = कोपः, निःसत्यता - मिथ्याभाषित्वं, बूतंः = द्यूतक्रीड़ा च, एतत् = पूर्वकथिततेतत्सर्वं मित्रस्य टषणम। यत्रैते दोषास्तिष्ठन्ति तत्र मित्रताया नामापि न ग्राहयमिति भावः । ।५६ ।।


भाषा- और भी-गुप्त बातों को प्रकाशित करना, धनादि मांगना, निर्दयता, चित्त की चंचलता, क्रोध और झूठ बोलना तथा जुआ खेलना ये सब मित्र के दोष हैं। ।५६ ।।

नीति संग्रह- मित्रलाभ: के सभी श्लोकों की लिस्ट देखें नीचे दिये लिंक पर क्लिक  करके। -clickNiti Sangrah all Shloka List

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