लोभेन बुद्धिश्चलति /lobhena budhi chalati shloka niti

 लोभेन बुद्धिश्चलति /lobhena budhi chalati shloka niti

लोभेन बुद्धिश्चलति /lobhena budhi chalati shloka niti

लोभेन बुद्धिश्चलति लोभो जनयते तृषाम् ।

तृषार्तो दुःखमाप्नोति परत्रेह च मानवः । ७४ ।।


प्रसंग:-लोभस्य सर्वदुःखकारणतां निर्धारयति ।


अन्वयः- लोभेन बुद्धिः चलति, लोभः तृषां जनयते, तृषार्तः मानवः परत्र इह च दुःखम् आप्नोति।।७४।।


व्याख्या - लोभेन बुद्धिः चलति = सत्यमार्गात्परिभ्रश्यति, लोभः तुषाम = अभीष्टान भीष्टवस्तुविषयकपिपासां, जनयते = उत्पादयति, तृषार्तः = पिपासापीडितः, इह = इह लोके, परत्र = परलोके च दुःखं = क्लेशम, आप्नोति = प्राप्नोति, अनुभवतीति भावः ।।७४।।


भाषा - लोभ से बुद्धि सत्य मार्ग को छोड़ देती है, लोभ से तृष्णा उत्पन्न होती है, तथा तृष्णा में पीड़ित मनुष्य इस लोक और परलोक में दुःख पाता है।।७४।।

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