अर्थेन तु विहीनस्य /arthena tu vihinasya shloka niti

 अर्थेन तु विहीनस्य /arthena tu vihinasya shloka niti

अर्थेन तु विहीनस्य /arthena tu vihinasya shloka niti

अर्थेन तु विहीनस्य पुरुषस्याल्पमेधसः।

क्रियाः सर्वाः विनश्यन्ति ग्रीष्मे कुसरितो यथा ।।६७।।


प्रसंग:- धनहीनस्य सर्वकर्मनाशः भवतीति निर्दिशति-


अन्वयः- अर्थेन तु विहीनस्य अल्पमेधसः पुरुषस्य सर्वाः क्रियाः ग्रीष्मे कुसरितः यथा विनश्यन्ति ।।६७ ।।


व्याख्या- तु, अर्थन-धनेन विहीनस्य-रहितस्य, अल्पा मेधा यस्य स तस्य अल्पमेधसः बुद्धिहीनस्य पुरुषस्य सर्वाः क्रियाः तथैव नष्टाः भवन्ति यथा ग्रीष्मे-ग्रीष्मकाले कुसरित: छुद्रनद्यः विनश्यन्ति नश्यन्ति ।।६७।।


भाषा- धनहीन, अल्पबुद्धिवाले पुरुष के सभी कार्य वैसे ही नष्ट हो जात है जैसे-ग्रीष्मऋतु में सूख जाने वाली छोटी-छोटी नदियाँ नष्ट हो जाता हैं।।६७।।

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 अर्थेन तु विहीनस्य /arthena tu vihinasya shloka niti

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