अवशेन्द्रियचित्तानां /avshendriya chittanam shloka niti

 अवशेन्द्रियचित्तानां /avshendriya chittanam shloka niti

अवशेन्द्रियचित्तानां /avshendriya chittanam shloka niti

अवशेन्द्रियचित्तानां हस्तिस्नानमिव क्रिया।

दुर्भगाभरणप्रायो ज्ञानं भारः क्रियां विना।।६।।


प्रसंग :- इन्द्रियाधीनानां सर्वकार्यणि निष्फलानीति प्रतिपादयति।


अन्वयः- अवशेन्द्रियचित्तानां क्रिया हस्तिस्नानम् इव (निष्फला भवति) क्रियां विना ज्ञानं दुर्भगाभरणप्रायः भारः (भवति)।।६।।


व्याख्या-अवशानि इन्द्रियाणि = चित्तादीनि येषान्ते, तेषाम अवशेन्द्रियचित्तानाम् = इन्द्रियपरवशानाम, क्रिया = धर्मकर्मादिक्रिया हस्तिस्नानमिव व्यर्था भवति। क्रिया = विधिविहताचरणं विना ज्ञानं = शास्त्रध्ययनजन्या प्रज्ञा (निष्फलं भवति) यथा दुर्भाग्याः = पतिसौभाग्यहीनायाः विधवाया इत्यर्थः आभरणं = अलंकारः प्रायः, भार एव भवति।।६।।


भाषा- इन्द्रियाँ और चित्त जिसके वश में नहीं हैं उसके सभी कर्म गजस्नान के समान व्यर्थ होते हैं, जो लोग ज्ञान या विद्या प्राप्त करके भी उसके अनुसार आचरण नहीं करते उनका वह ज्ञान विधवा स्त्री के आभूषणों के समान भारमात्र ही होता है।।६।।

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