सिद्धिः साध्ये सतामस्तु /sidhi sadhye satamastu niti shloka

 सिद्धिः साध्ये सतामस्तु /sidhi sadhye satamastu niti shloka

सिद्धिः साध्ये सतामस्तु /sidhi sadhye satamastu niti shloka

 सिद्धिः साध्ये सतामस्तु प्रसादात्तस्य धूर्जटेः ।

जाहवीफेनलेखेव यन्मूर्ध्नि शशिनः कला ।।१।।


प्रसंग:- ग्रन्थादौ आशीर्वादात्मकं मण्डलं करोति-


अन्वयः- यन्मूर्ध्नि, शशिनः कला, जाहनवीफेनलेखा, इव (अस्ति) तस्य धूर्जटेः प्रसादात् सतां साध्ये, सिद्धिः अस्तु ।।१।।


- व्याख्या- यस्य मूर्धा यन्मूर्द्धा तस्मिन् । यन्मूर्ध्नि = यन्मस्तके, शशिनः = चन्द्रस्य कला = षोडशभागरूपा.)जह्नोः अपत्यं कन्या जिाहवी = गंगा तस्याः फेनस्य लेखा इव = फेनरेखा इव विराजते = शोभते), (तस्य = तथाभूतस्योधू: = भाररूपा नटिः = जटा यस्य तस्य भूर्जटे = शंकरस्य) जटिर्जटेति, द्विरूपकोश प्रसादात् = अनुग्रहाते सतां = सज्जाना, साध्ये = साधयितुं योग्य)

(साध्यं तस्मिन् साध्ये = अभीप्सितविषये, सिद्धिः = साफल्यमस्तु ।।१।।


- भाषा- जिनके मस्तक पर चन्द्रमा की कला गंगाजी के फेन की रेखा के समान शोभित हो रही है, उन शंकर की कृपा से सज्जनों के कार्यों में सफलता प्राप्त हो ।।१।।

 नीति संग्रह- मित्रलाभ: के सभी श्लोकों की लिस्ट देखें नीचे दिये लिंक पर क्लिक  करके। -clickNiti Sangrah all Shloka List

 सिद्धिः साध्ये सतामस्तु /sidhi sadhye satamastu niti shloka


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