F दीपनिर्वाण गन्धञ्च /deep nirvana gandhancha shloka niti - bhagwat kathanak
दीपनिर्वाण गन्धञ्च /deep nirvana gandhancha shloka niti

bhagwat katha sikhe

दीपनिर्वाण गन्धञ्च /deep nirvana gandhancha shloka niti

दीपनिर्वाण गन्धञ्च /deep nirvana gandhancha shloka niti

 दीपनिर्वाण गन्धञ्च /deep nirvana gandhancha shloka niti

दीपनिर्वाण गन्धञ्च /deep nirvana gandhancha shloka niti

दीपनिर्वाणगन्धञ्च सुहद्वाक्यमरुन्धतीम्।

न जिघ्रन्ति न श्रृण्वन्ति न पश्यन्ति गतायुषः ।।४४।।

प्रसंग :- आसन्नमरणस्य लक्षणं निरूपयति अन्वयः- गतायुषः दीपनिर्वाणगन्धं न जिघ्रन्ति, सुहृद्वाक्यं न श्रृण्वन्ति, अरुन्धतीं च न पश्यन्ति ।।४४।।


व्याख्या - गतम् आयुः येषान्ते गतायुषः = आसन्नमृत्यवः नराः, दीपस्य निर्वाणं तेन तत्समये वा यो गन्धः दीपनिर्वाणगन्धः तं दीपनिर्वाणगन्धम = दीपनिर्वाणकालीनगन्धविशेषं न जिघ्रन्ति = नानुभवन्ति, सुहृद्वाक्यं मित्रवचनं च न श्रणवन्ति एवं च अरुन्धती = ताराविशेषं च न पश्यन्ति ।।४४।।


भाषा - जिनकी मृत्यु निकट आ गयी है उनको दीपक बुझते समय का । गन्ध नहीं मालूम पड़ता है वे अपने मित्रों के वचनों को भी नहीं सुनते और अरु ती नाम के तारा भी नहीं देख सकते।।४४।।

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