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संपूर्ण शिव महापुराण कथा sampoorna shiv mahapuran katha -17

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संपूर्ण शिव महापुराण कथा sampoorna shiv mahapuran katha -17

संपूर्ण शिव महापुराण कथा  sampoorna shiv mahapuran katha -17

 संपूर्ण शिव महापुराण कथा  sampoorna shiv mahapuran katha

   शिव पुराण कथा भाग-17  

shiv puran pdf शिव पुराण हिंदी में

थोड़ी देर बाद स्वयं विष्णु भगवान भी वहां आ पहुंचे परंतु उनका विष्णु रूप किसी को दिखाई नहीं दिया, तब कन्या प्रसन्न होकर जयमाला भगवान के गले में डाल दी और विष्णु भगवान भी तुरंत उस कन्या को लेकर अपने लोक को चले गए ।

तब सारे राजा भी नारद जी सहित निराश होकर वहां से उठ गए। उस समय ब्राम्हण रूप धारी उन दोनों रूद्र गणों ने आकर कहा- नारद जी आप कामदेव की माया से मोहित हो इसी कारण आप कन्या को बरने की व्यर्थ अभिलाषा कर रहे हो।

आपका वानर जैसा भयंकर मुख है जरा उसको तो देखो! यह सुनते ही नारद जी ने दर्पण में अपना मुख देखा तो अपना वानर जैसा रूप देखकर एकदम क्रोध में भर गए ।

अपने सामने खड़े हुए दोनों रुद्रगणों को शाप दे डाला, कि तुम दोनों ने ब्राह्मण रूप होकर मेरी हंसी उड़ाई है इसलिए तुम ब्राह्मण कुल में पैदा होकर राक्षस बन जाओ । रूद्र गणों ने श्राप को शिरोधार्य कर लिया और नारद जी से कुछ भी नहीं कहा।

संपूर्ण शिव महापुराण कथा  sampoorna shiv mahapuran katha

( नारद जी का विष्णु को शाप देना )
ऋषि बोले- हे सूतजी रूद्र गणों के चले जाने पर कामासक्त नारद जी कहां गए और क्या किया?
सूतजी बोले- हे ऋषियों नारदजी क्रोधित होते हुए तालाब पर आए और वहां जल में अपनी परछाई देखी तो उन्हें पूरी वानर जैसी आकृति दिखाई दी । तब तो नाराज हो अत्यंत क्रोध में भरकर सीधे विष्णु भगवान से बोले-
हे हरे त्वं महादुष्टः कपटी विश्वमोहनः।
परोत्साहं न सहसे मायावी मलिनाशनः।। रु•सृ•4-6

हे हरि तुम बड़े दुष्ट हो अपने कपट से विश्वभर को मोहने वाले तुम दूसरों को सुखी होता नहीं देख सकते , तभी तो तुमने सिंधु मंथन के समय मोहिनी रूप धारण कर दैत्यों से अमृत का कलश छीन लिया था और उन्हें अमृत की जगह वारुणी मदिरा पिला कर पागल बना दिया था।

यदि उस समय शंकर भगवान दया करके विषपान ना करते तो तुम्हारा सारा कपट जाल प्रकट हो जाता।

देखिए वेद ब्राह्मणों को उच्च कहते हैं इस बात को आज मैं प्रत्यक्ष करके दिखा दूंगा। जिससे तुम फिर कभी ब्राह्मणों को ना सता सकोगे।

संपूर्ण शिव महापुराण कथा  sampoorna shiv mahapuran katha

हे विष्णु तुमने स्त्री क्लेश से मुझे दुखित किया है और स्वयं ने कपट से राजा का रूप धारण किया था। अतएव जाओ तुम इसी रूप में मनुष्य राजा होवोगे और इसी तरह-
त्वं स्त्री वियोगजं दुःखं लभस्व पर दुःखदः।
मनुष्यगतिकः प्रायो भवाज्ञान विमोहितः।। रु•सृ• 4-17
तुम भी स्त्री वियोग भागोगे जिस तरह मैं भोग रहा हूं । तुमने बानरों जैसे मेरी आकृति की है, वे बानर ही आकर तुम्हारी सहायता करेंगे और तुम मनुष्यों की तरह स्त्री वियोग में दुखित रहोगे।
इस प्रकार का श्राप सुनकर विष्णु भगवान ने श्राप को अगींकार कर लिया और विष्णु भगवान के साथ जो राजकुमारी ( माया ) दिखाई दे रही थी वह अदृश्य हो गई। तब तो विष्णु जी और नारद जी दोनों अपने वास्तविक रूप में आ गए। इस प्रकार से नारद जी की माया से लुप्त हुआ ज्ञान फिर से आ गया ।

तब तो नारद जी बहुत पछताने लगे और अपने को धिक्कारते हुए भगवान के चरणों में गिरकर कहने लगे - हे भगवन मुझे क्षमा कर दो मैंने जो अज्ञान बस आप को श्राप दिया है वह मिथ्या हो जाए, नहीं तो मैं घोर नरक में पडूंगा ।

हे भगवान कोई ऐसा उपाय कीजिए जिससे मैं इस पाप से मुक्त हो जाऊं। क्योंकि मैं आपका दास ही हूं, मुझे इस नरक यातना से बचा लो ।
तब विष्णु भगवान ने चरणों में पड़े हुए नारदजी को उठाकर गले से लगाते हुए कहा- हे नारद चिंता मत करो, तुम परम धन्य हो। तुमने अहंकार वस शिव की आज्ञा का पालन नहीं किया था , इसलिए उन्होंने ही तुम्हारा गर्व नष्ट किया है, यह मेरे वचन सत्य समझो।

संपूर्ण शिव महापुराण कथा  sampoorna shiv mahapuran katha

क्योंकि वह परम ब्रम्ह सच्चिदानंद सत रज तम से परे तथा निर्गुण और निर्विकार हैं। हे नारद जी वह ब्रह्मा विष्णु और रूद्र इन तीनों रूपों में अपनी माया द्वारा ही प्रकट होते हैं।
न खेदं कुरु मे भक्त वरस्त्वं नात्र संशयः।
इसलिए अब आप सब शोक एवं संदेहों को त्यागकर केवल उन्हीं शिव का गुणगान करो-
जपहुं जाइ संकर सत नामा। होइहिं हृदय तुरत विश्रामा।।
और उन्हीं के शतनाम स्तोत्र का पाठ करो इससे तुरंत ही तुम्हारे सब पाप नष्ट हो जाएंगे ।
सूतजी बोले-
अन्तर्हिते हरौ विप्रा नारदो मुनि सत्तमः।
विचचार महीं पश्यन शिवलिङ्गानि भक्तितः।। रु•सृ• 5-1

महर्षियों भगवान श्री हरि के अंतर्ध्यान हो जाने पर मुनिश्रेष्ठ नारद जी शिवलिंगो का भक्ति पूर्वक दर्शन करते हुए पृथ्वी पर बिचरने लगे। भक्ति मुक्ति देने वाले अनेकों शिवलिंग के दर्शन किए।
वहां पर जब रूद्र गणों ने नारदजी को देखा तो वे दोनों गण अपने शाप मुक्ति के लिए उनके पास आकर चरणों में गिर पड़े और बोले मुनि नाथ आप हम पर प्रसन्न होकर हमारा उद्धार करें।

नारद जी बोले- रूद्रगणों उस समय शिव की इच्छा से मेरी बुद्धि भ्रष्ट हो चुकी थी इसलिए मैंने मोहवश होकर आप लोगों को शाप दे डाला ।

किंतु मेरा वचन कभी मिथ्या नहीं हो सकता, परंतु अब मैं तुम्हें उस शाप से मुक्त होने का कुछ उपाय बताता हूं उसे सुनो । तुम दोनों मुनि के तेज द्वारा एक राक्षसी के गर्भ से जन्म लोगे । परंतु वहां तुम्हारा प्रताप बल एवं वैभव दिनों दिन बढ़ता जाएगा और तुम दोनों शिव के परम भक्त होवोगे। तब भगवान शिव अपने दूसरे रूप से तुम्हारा उद्धार करेंगे ।

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सूतजी कहते हैं- इस प्रकार नारद जी के कथन को सुनकर वे दोनों रूद्रगण प्रसन्न होते चले गए, तब नारदजी भी शिव तीर्थों का भ्रमण करते हुए ही शीघ्र ब्रह्मलोक आ पहुंचे और वहां ब्रह्मा जी को नमस्कार करके उनकी स्तुति की।

इसके बाद हांथ जोड़कर बोले पितामह आप तो परम ब्रह्म का स्वरूप भली-भांति जानते हो आपकी कृपा द्वारा ही मैंने श्री विष्णु भगवान के स्वरूप को समझा था परंतु शिवतत्व को मैं नहीं सुन सका अब मैं शिव पूजन एवं उनके अनेक सुंदर चित्रों को सुनना चाहता हूं।

वे सृष्टि के आदि में किस रूप में रहते हैं तथा सृष्टि के मध्य में उनकी लीला कैसी होती है और अंत में अर्थात प्रलय काल में वे सदाशिव महेश्वर कहां निवास करते हैं ? वे सदाशिव किस प्रकार प्रसन्न होते हैं और वे प्रसन्न होने पर क्या प्रदान करते हैं ?

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ब्रह्माजी बोले- हे ब्रह्मन जिसके सुनने से संपूर्ण लोकों के समस्त पापों का क्षय हो जाता है उस अनामय शिव तत्व का मैं आपसे वर्णन करता हूं।
शिवतत्वं मया नैव विष्णुनापि यथार्थतः।
ज्ञातं च परमं रूपंमद्भुतं च परेण न।। रु•सृ•6-3
शिव तत्व का स्वरूप बड़ा ही उत्कृष्ट और अद्भुत है। जिसे यथार्थ रूप से ना तो मैं जान पाया हूं , ना विष्णु ही जान पाये और अन्य कोई दूसरा भी नहीं जान पाया ।

shiv puran pdf शिव पुराण हिंदी में -1

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