F संपूर्ण शिव महापुराण कथा sampoorna shiv mahapuran katha -19 - bhagwat kathanak
संपूर्ण शिव महापुराण कथा sampoorna shiv mahapuran katha -19

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संपूर्ण शिव महापुराण कथा sampoorna shiv mahapuran katha -19

संपूर्ण शिव महापुराण कथा  sampoorna shiv mahapuran katha -19

 संपूर्ण शिव महापुराण कथा  sampoorna shiv mahapuran katha

   शिव पुराण कथा भाग-19  

shiv puran pdf शिव पुराण हिंदी में

ब्रह्माजी बोले- श्रीमन्नारायण के शयन करने पर शिवजी की इच्छा से नाभि में से कमल की उत्पत्ति हुई जिसकी अनंत योजन की ऊंचाई थी। पार्वती सहित शिव जी ने मुझे उत्पन्न किया मेरे चार मुख, लाल मस्तक पर त्रिपुंड लगा था, मैंने उस कमल के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं देखा।

कुछ क्षण पश्चात मुझे बुद्धि प्राप्त हुई और कमल के नीचे मैं अपने कर्ता को ढूंढने लगा, तब एक एक नाल को पकड़ता हुआ सौ वर्ष तक नीचे को चला किंतु वहां मैंने कमल की जड़ को ना पाया। फिर मैं कमल के ऊपर जाने की इच्छा करने लगा।

हे मुने- जब इस कमल नाल के मार्ग द्वारा मैं ऊपर आया वहां मुझे तप करने की मंगलमय वाणी सुनाई पड़ी । आकाशवाणी को सुनकर मैं अपने पिता के दर्शन की इच्छा से फिर तप करने लगा बारह हजार वर्षों तक घोर तप किया ।

मुझ पर अनुग्रह करने के लिए भगवान प्रकट हुए-
शङ्खचक्रायुधकरो गदापद्म धरः परः।
घमश्यामल सर्वाङ्गः पीताम्बर धरः परः।। रु•सृ• 7-8

चार भुजा धारी सुंदर नेत्र वाले भगवान को देखकर मैं बड़ा प्रसन्न हुआ और शिव की माया बस अपने पिता को ना जान कर उससे बोला तुम कौन हो ?

विष्णु भगवान ने कहा तुम निर्भय हो जाओ मैं तुम्हारी संपूर्ण कामनाओं को पूर्ण करूंगा, तब उन मुस्कुराते हुए विष्णु जी से ऐसे वचन सुनकर रजोगुण से विरोध मानकर मैंने जनार्दन से कहा कि- निष्पाप क्या तुम नहीं जानते मैं सब के संहार का कारण हूं , मैं साक्षात जगत का कर्ता, प्रकृति का प्रवर्तक आद्य, ब्रह्मा और विष्णु से उत्पन्न होने वाला और विश्व की आत्मा हूं।

 संपूर्ण शिव महापुराण कथा  sampoorna shiv mahapuran katha

हे नारद जब मैंने ऐसा कहा तो रमापति भगवान मुझ पर क्रुद्ध हुए। बोले कि मैं तुम्हारा ईश्वर हूं तुम मेरी शरण में आ जाओ । तब मैंने और हरी ने आपस में युद्ध प्रारंभ कर दिया । मेरे और उनके बीच लिंग प्रकट हुआ तब हम दोनों ने उनको नमस्कार करके युद्ध बंद कर दिया हम दोनों ने उनकी स्तुति की।

तब महेश्वर प्रसन्न होकर बोले मेरी यह आज्ञा है कि तुम और ब्रह्मा चराचर जगत का पालन करो ! तुमने जो मेरी बड़ी भारी स्तुति की थी , उसे मैं सत्य करूंगा।

तुम्हारे अंग से जो मेरा रूप प्रकट होगा वह रूद्र कहलायेगा और मेरा अंश होने से सामर्थ में वह मेरे सदृश होगें। हे ब्रह्मण आप इस सृष्टि के निर्माता बने और श्रीहरि इसका पालन करने वाले होंगे । मेरे अंग से प्रगट जो रुद्र हैं वे इसका प्रलय करने वाले होंगे ।

यह जो उमा नाम से विख्यात परमेश्वरी प्रकृति देवी हैं इन्हीं की शक्ति भूता वाग्देवी ब्रह्मा जी का सेवन करेंगी। पुनः इन प्रकृति देवी से वहां जो दूसरी शक्ति प्रकट होगी वह लक्ष्मी रूप में भगवान विष्णु का आश्रय लेंगी।

तदनंतर पुनः काली नाम से जो तीसरी शक्ति प्रकट होगीं वह निश्चय ही मेरे अंशभूत रुद्रदेव को प्राप्त होंगी। वे कार्य की सिद्धि के लिए वहां ज्योति रूप से प्रकट होंगी, इस प्रकार मैंने देवी के शुभ स्वरूपा पराशक्तियों को बता दिया ।

त्वं च लक्ष्मीमुपाश्रित्य कार्यं कर्तुमिहार्हसि।
ब्रह्मंस्त्वं च गिरां देवीं प्रकृत्यं शामवाप्य च।। रु•सृ• 9-50
हे हरे आप लक्ष्मी का सहारा लेकर कार्य कीजिए । हे ब्रह्मा आप प्रकृति की अंशभूता वाग्देवी को प्राप्त कर मेरी आज्ञा अनुसार सृष्टि कार्य संचालन करें। मैं अपनी प्रिया की अंशभूता परात्पर काली का आश्रय लेकर रूद्र रूप से प्रलय संबंधी उत्तम कार्य करूंगा ।

 संपूर्ण शिव महापुराण कथा  sampoorna shiv mahapuran katha

हे विष्णु मेरा दर्शन से जो फल प्राप्त होगा वह आपके दर्शन होने पर भी प्राप्त होगा। मैंने आपको आज यह वर दिया है-
ममैव हृदये विष्णुर्विष्णोश्च हृदये ह्यहम्।
मेरे हृदय में विष्णु हैं और विष्णु के हृदय में मैं हूं । हे विष्णु आप मेरी आज्ञा से इन सृष्टि कर्ता पितामह का प्रसन्नता पूर्वक पालन कीजिए, ऐसा करने से आप तीनों लोगों में पूजनीय होंगे । यह रूद्र आपके और ब्रह्मा के सेव्य होंगे क्योंकि त्रैलोक्य के लयकर्ता ये रूद्र शिव के पूर्ण अवतार हैं । पाद्मकल्प में पितामह आपके पुत्र होंगे उस समय आप मुझे देखेंगे और वह ब्रह्मा भी मुझे देखेंगे ।

ब्रह्मा विष्णु और रुद्र की आयु- महादेव जी बोले- हे विष्णु तुम सर्वदा सब लोकों में पूज्य और मान्य होओगे। ब्रह्मा के बनाए लोकों में कभी दुख उत्पन्न होगा उसे तुम ही समाप्त करोगे । अनेकों अवतार धारण करके जीवों का कल्याण करोगे ।
अब तुम तीनों देवताओं के आयुर्बल सुनो-
चतुर्युग सहस्त्राणि ब्रह्मणो दिनमुच्यते।
रात्रिश्च तावती तस्य मानमेतत्क्रमेण ह।। रु•सृ• 10-16

एक हजार चतुर्युग को ब्रह्मा का एक दिन कहा जाता है और उतनी ही उनकी रात्रि होती है । इस प्रकार क्रम से यह ब्रह्मा के एक दिन और एक रात्रि का परिमाण है । और ऐसे दिनों में उनकी आयु सौ वर्ष कही गई है ।
ब्रह्मणो वर्षमात्रेण दिनं वैष्णव मुच्यते।।
ब्रह्मा के एक वर्ष के बराबर विष्णु का एक दिन होता है, वह विष्णु भी अपने सौ वर्ष के प्रमाण तक जीवित रहते हैं ।
वैष्णवेन तु वर्षेण दिनं रौद्रं भवेद् ध्रुवम्।
विष्णु के एक वर्ष के बराबर रुद्र का एक दिन होता है ,भगवान रुद्र भी उस मान के अनुसार नर रूप में सौ वर्ष तक स्थित रहते हैं।

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( शिव पूजन )
ऋषियों के पूंछने पर सूत जी महाराज सदाशिव के पूजन की विधि का वर्णन करते हैं और फिर पुष्पों द्वारा आराधना किस प्रकार करना चाहिए यह बतलाते हैं।

रोग से मुक्त होने के लिए पचास कमल पुष्प , कन्या की इच्छा वाला पच्चीस हजार कमल पुष्प, विद्या के लिए घृत से पूजन करें, प्रताप के लिए आक के पुष्प चढ़ावें। जवा के पुष्प से पूजें तो शत्रु का नाश हो और कनेर के पुष्प से सब रोग दूर हों।
खम्पा और केतकी को छोड़कर समस्त पुष्प शिव जी पर चढ़ते हैं। यदि अपने घर में नित्य कलह होता है तो नित्य प्रति शिवजी को जलधारा चढ़ाएं ।

( सृष्टि की उत्पत्ति )
ब्रह्माजी बोले- नारद शब्दादि पंचभूतों द्वारा पंचकरण करके उनके स्थूल, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी, पर्वत ,समुद्र, वृक्षादिक और कालादि से युग पर्यन्त कालों को भी मैने रचना की तथा और भी सृष्टि के बहुत से पदार्थों को मैंने रचा ।

परंतु जब इससे भी मुझे संतोष नहीं हुआ तो मैंने अंबा सहित शिव जी का ध्यान करके सृष्टि के अन्य पदार्थों की रचना की और अपने नेत्रों से मरीच को, हृदय से भ्रुगू को, सिर से अंगिरा को , कान से मुनिश्रेष्ठ पुलह को, उदान से पुलस्त्य को, समान से वशिष्ठ को , अपान से कृतु को, कानों से अत्रि को, प्राण से दक्ष को और गोदी से तुम नारद को तथा अपनी छाया से कर्दम मुनि को प्रकट किया।

धर्म को मैंने संकल्प से उत्पन्न किया, इसके बाद मैंने अपना देह दो रूपों में किया। जिसमें स्वयंभू मनु और शतरूपा उत्पन्न हुए। देवी सतरूपा को ग्रहण कर मनु ने विवाह की विधि से मैथुन द्वारा सृष्टि को उत्पन्न किया।

shiv puran pdf शिव पुराण हिंदी में -1

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