shiv puran pdf शिव पुराण हिंदी में
शिव पुराण कथा भाग-4
जब कथा समाप्त हो गई और श्रोता गण
भी चले गए तब वह डरती हुई शिवभक्त कथावाचक के पास जा करके बोली हे महाराज-
त्वमेव
मे गुरुर्ब्रह्मस्त्वं माता त्वं पितासि च।
उद्धरोद्धर
मां दीनां त्वामेव शरणं गताम्।। मा-3-56
आप ही मेरे गुरु हैं, आप ही माता और आप
ही पिता हैं आपकी शरण में आई हुई मुझ दीन अबला का उद्धार कीजिए। उद्धार कीजिए ।
ब्राह्मण बोले- मुझे प्रसन्नता है
कि तुझे समय पर ज्ञान हो गया, यह सब सदाशिव की ही कृपा है। अब तू भयभीत न हो शिव जी की
कृपा से तेरे सब पाप नष्ट हो जाएंगे । शिव कथा के श्रवण से तुम्हारी ऐसी सुबुद्धि
हुई है जो विषयों से बैराग्य हुआ है ।
पश्चाताप संयुक्त तुम्हारी मति
शुद्ध हो गई । इस शिव महापुराण की कथा के श्रवण से जैसा हृदय पवित्र होता है वैसा
अन्य उपायों से नहीं होता है और हृदय के पवित्र हो जाने पर शिव पार्वती उसके हृदय
में आकर विराजमान हो जाते हैं । तब वह शुद्धात्मा शिव के परम पद को पाता है।
इसलिए सभी वर्ण इस कथा को सुनें
क्योंकि शिव जी ने स्वयं इसकी रचना की है।
सर्वेषां
श्रेयसां बीजं सत्कथा श्रवणं नृणाम् । मा-4-5
इस उत्तम कथा का श्रवण समस्त
मनुष्यों के लिए कल्याण का बीज है । शिव भक्ति से विमुख माया मोह में पड़े हुए
मनुष्य को बिना पूंछ का पशु ही जानना चाहिए।
तृणं
न खादन्नपिजीवमानस्तद्भागदेयं परमं पशूनाम्।
बिना घास खाए जीवित रहता है यह
पशुओं के लिए भाग्य की बात है ।
हे ब्राह्मणी तू भी परम पवित्र कथा
सुनकर विषयों से मन को हटाले, शंकर भगवान की कथा के श्रवण से तेरा हृदय पवित्र हो जाएगा
तब तुझे मुक्ति प्राप्त होगी ।
सूत जी बोले- यह कहकर दयालु
ब्राम्हण शिव ध्यान में मग्न मौन हो गए। तब चंचुला प्रसन्न चित्त हो आंखों से आंसू
बहाती हुई हाथ जोड़कर ब्राह्मण के चरणों में गिर पड़ी और कहने लगी , हे भगवन आपने मुझे
कृतार्थ कर दिया।
हे शिव भक्त आप धन्य हैं, परोपकार परायण हैं,
श्रेष्ठ जनों में वर्णनीय हैं । हे साधु में नरक रूपी समुद्र में
गिर रही हूं मेरा उद्धार करो।
उसकी रुचि देखकर के पंडित जी उसे
शिवपुराण की कथा सुनाने लगे । इस प्रकार उस महा क्षेत्र में श्रेष्ठ ब्राह्मण से
शिवपुराण की उत्तम कथा उसने सुनी । भक्ति ज्ञान बैराग वर्धनी एवं मुक्ति दायिनी
कथा को सुनकर वह कृतार्थ हो गई।
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शिव की कृपा से शिव रूप का ध्यान
उसने प्राप्त कर लिया। नित्य प्रति तीर्थ जल में स्नान करती तथा जटा तथा वत्कल
धारण कर लिए थे, सारे अंगों पर भस्म रमाए रहती थी , रुद्राक्ष पहनती
थी , निरंतर शिव जी का ध्यान करती रहती।
समय पूरा होने पर भक्ति ज्ञान
वैराग्य से युक्त इसने बिना कष्ट के ही देह छोड़ दिया। तब शिव गणों से संयुक्त एक
शोभायमान दिव्य विमान स्वयं शिव जी ने भेजा वह विमान पर बैठ के दिव्य शिवलोक को गई
।
शिवपुरी में त्रिलोचन महादेव जी का
दर्शन किया, शिव करोड़ों सूर्यों के समान प्रभाव वाले थे । गणेश, भृगीं,नंदीश्वर ,वीरभद्र आदि
जिनकी उपासना कर रहे थे।वह महादेव नीलकंठ, पंचमुख ,त्रिलोचन ,चंद्रशेखर रूप से दर्शन दे रहे थे।
जिनके वामांग में विद्युत के समान
गौरा जी विराजमान थी
कर्पूर
गौरं गौरीशं सर्वालंकार धारिणम्।
ऐसा दिव्य स्वरूप देखकर चचुंला गौरी शंकर जी के चरणों में बार बार प्रणाम करती है । पार्वती जी ने तो उस चचुंला को दिव्य रूप देकर अपनी सखी बना लिया।
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वह परम सुखी हो गई उस ज्योति
स्वरूप सनातन लोक में उसने निवास प्राप्त कर लिया ।
सूत जी बोले- हे शौनक जी एक दिन चंचुला उमा देवी के पास जाकर प्रणाम कि और दोनों हाथ जोड़कर वह उनकी स्तुति करने लगी।
गिरिजे
स्कन्द मातस्त्वं सेवितां सर्वदा नरैः।
सर्वसौख्य
प्रदे शम्भुप्रिये ब्रह्मस्वरूपिणी।। मा-5-3
हे गिरिराज नंदनी, हे स्कंद माता
मनुष्यों ने सदा ही आपकी सेवा की है । समस्त सुखों को देने वाली हे शंभू प्रिये,
ब्रह्म स्वरूपणी आप विष्णु और ब्रह्मा आदि देवताओं द्वारा सेव्य हैं,
आपके चरणो में कोटि कोटि प्रणाम ।
वह चंचुला ऐसे स्तुति करते करते
चुप हो गई, उसके नेत्रों से प्रेमाश्रु बह चले । तब करुणा से भरी हुई शंकर प्रिया
भक्तवत्सला पार्वती देवी ने चंचुला से बड़े प्रेम पूर्वक बोलीं- हे सखी चंचुले मैं
तुम्हारी की हुई इस स्तुति से बहुत प्रसन्न हूं बोलो क्या वर मांगती हो?
किं
याचसे वरं ब्रूहि नादेयं विद्यते तव। मा-5-9
तुम्हारे लिए मुझे कुछ भी अदेय नहीं है । चचुंला बोली हे देवी मेरे पति बिंदुग इस समय पर कहां हैं, उनकी कैसी गति हुई है ?
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यह सुनकर पार्वती जी प्रसन्नता
पूर्वक बोली तेरा पति बिंदुग अपने बुरे पाप कर्मों के कारण मरकर नर्क में जाकर
अनेकों वर्ष दुख भोग अब पाप शेष से वह पापी विंध्याचल पर्वत पर पिशाच हुआ है।
वहां वायु भोजी अनेकों कष्ट भोग
रहा है । यह सुनकर चचुंला दुखी हो गई और भगवती से प्रार्थना करी कि आप मेरे पति का
भी उद्धार करिए ।
तब देवी ने कहा चचुंला यदि तुम्हारा
पति शिवपुराण की कथा सुने तो उसे अवश्य सद्गति प्राप्त हो जाएगी । गौरा जी के ऐसे
वचन सुनकर चंचुला बारंबार प्रणाम करने लगी।
देवी पार्वती ने शिव कीर्ति गायन
करने वाले तुम्बरू गंधर्व को बिंदुग के कल्याणार्थ विंध्याचल पर्वत को भेजा। वह
तुम्बरू और चचुंला विमान पर चढ़कर विंध्याचल पर्वत पर पहुंचे , वहां उन्होंने
बड़े विशाल शरीर वाले पिशाच को देखा, उस भयंकर पिशाच को
महाबली तुम्बरू ने बलपूर्वक पकड़कर पाशों से बांध दिया ।
उस दिन उस क्षेत्र में प्रसिद्ध हो गया कि गौरी माता की आज्ञा से पिशाच तारने निमित्त तुम्बरू गंधर्व विंध्याचल पर शिवपुराण की कथा करेंगे । सब लोकों में महान कोलाहल हो गया कथा सुनने के लिए वहां बड़ा भारी समाज एकत्रित होने लगा।
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सभी की कथा पर बड़ी रुचि थी, पासों से बंधे हुए
पिशाच को वहां बिठा दिया गया , तब तुम्बरू हाथ में वीणा लेकर
शिव कथा कीर्तन करने लगे। उन्होंने पहली संहिता से लेकर सातवीं संहिता तक महात्म्य
सहित शिव महापुराण की कथा सुनाई तो समस्त श्रोता गण सब पापों से मुक्त हो गए।
उस पिशाच ने अपना वह शरीर त्यागकर
दिव्य रूप प्राप्त किया। बिंदुग अपनी पत्नी सहित विमान पर बैठकर तुम्बरू के साथ
शिव गुणगान करता हुआ शिवलोक को चला गया।
तब भगवान शंकर ने पार्वती सहित
उसका बड़ा आदर सत्कार किया और उसे अपना गण बना लिया ।