shiv puran pdf शिव पुराण हिंदी में
य
इदं शृणुयाद्भक्त्या कीर्तयेद्वा समाहितः।
स भुक्त्वा विपुलान् भोगानन्ते मुक्तिमवाप्नुयात्।। मा-5-60
जो कोई इस पवित्र कथा को श्रद्धा पूर्वक सुनता है एवं कीर्तन करता है, वह इस लोक में सुखों को भोगकर अंत में मुक्ति को प्राप्त कर लेता है ।
शौनक जी बोले- हे सूत जी! आप परम
शैवी हैं इसलिए कृपा कर शिव पुराण के श्रवण की विधि भी कहिए जिससे श्रोतागण
सम्पूर्ण फल को प्राप्त कर सकें।
सूत जी बोले- हे शौनक जी अब
संपूर्ण फल की प्राप्ति के लिए शिव पुराण के श्रवण विधि सुनिए। सर्वप्रथम ज्योतिषी
से पुराण निर्विघ्नं समाप्ति के हेतु शुभ मुहूर्त निकलवाए, फिर उसके अनुसार
देश विदेश में पत्र भिजवा कर अपने इष्ट मित्रों व बंधु बांधव को आमंत्रण दें।
शिव पुराण के आयोजन स्थल दिव्य
बनवाएं- शिवालय, तीर्थ, वन अथवा घर में ही वह कथा मंडप बनवाएं वह
मंडप को ध्वजा पताका आदि से सुसज्जित करें और शोभायमान बनाएं ।
विवाहे
यादृशं वित्तं तादृशं कार्यमेव ही।
अन्या चिन्ता विनिर्वार्या सर्वा शौनक लौकिकी।। मा-6-19
विवाह उत्सव में जैसे उल्लासपूर्ण
मनः स्थिति होती है वैसे ही कथा उत्सव में रखनी चाहिए । सब प्रकार की लौकिक दूसरी
चिंताओं को भूल जाना चाहिए ।
विवाहे
यादृशं वित्तं तादृशं परिकल्पयेत्।
और जैसे विवाह आदि में प्रसन्नता
पूर्वक धन खर्च करते हैं, वैसे ही कथा महोत्सव में भी प्रसन्न होकर बिना कंजूसी के धन खर्च करना
चाहिए ।
shiv puran pdf शिव पुराण हिंदी में
क्योंकि धन और जीवन इनका धर्म व
उपकार में लगाना ही सार्थकता है- कहा भी गया है शास्त्रों में की-
धनानि
जीवितन्चैव परार्थे प्राज्ञ उसृजेत।
सन्निमित्ते
वरं त्यागो विनाशे नियतं सती।।
धन और जीवन को धर्म में लगाना ही
सार्थक है क्योंकि ना चाहने पर भी यह दोनों का नाश एक दिन निश्चित ही है । सज्जनों
हमारी वास्तविक यात्रा जन्म के बाद से प्रारंभ नहीं होती जन्म से लेकर मृत्यु तक
वह हमारे लिए एक अवसर होता है कि हम अपने वास्तविक यात्रा को उत्तम बना सकें।
धर्म रूपी धन एकत्रित कर सकें, हम अज्ञान वश माया में पडकर के जो मैं और मेरा के असद आग्रह में पडकर सारा जीवन भगवत भजन के बिना समाप्त कर देते हैं ,वलेकिन अंत समय सब यहीं छूट जाता है ।
धनानि
भूमौ पशवश्च गोष्ठे
नारि
गृहद्वारि जनाश्मसाने।
देहश्चितायां
परलोक मार्गे
धर्मानुगो
गच्छति जीव एकः।।
सारा जीवन जिस धन के लिए समाप्त कर
देते हैं, वह धरा का धरा रह जाता है। पशु खूंटे पर बंधे ही रह जाते हैं, पत्नी द्वार तक रह जाती है, स्वजन संबंधी शमशान तक
जाते हैं, देह चिता तक जाता है और फिर जीव की वास्तविक
यात्रा शुरू होती है और जीव के साथ सिर्फ- धर्मानुगो गच्छति जीव एकः। केवल धर्म
ही , उसका भजन ही, सत्कर्म ही उसके साथ
जाता है और सद्गति कराता है।
तो प्रेम पूर्वक इस पावन शिव
महापुराण की कथा का श्रवण करें और उसका मनम भी करें, जो नराधम भक्ति भाव से हीन होकर इस
कथा को सुनते हैं उन्हें कोई फल नहीं मिलता और वे जन्म जन्म दुख पाते हैं।
shiv puran pdf शिव पुराण हिंदी में
जो पुराण
की पूजा यथाशक्ति भेंटों के द्वारा ना करके इस कथा को सुनते हैं वह मूर्ख दरिद्री
होते हैं। जो वक्ता को प्रणाम किए बिना बैठ जाते हैं कथा सुनने के लिए वे-
असम्प्रणम्य
वक्तारं कथां शृण्वन्ति ये नराः।
भुक्त्वा
ते नरकान सर्वांस्ततः काका भवन्ति हि।। मा-6-46
वे सब घोर नरक भोगने के बाद अर्जुन वृक्ष बनते हैं ।
तथा श्रोता को चाहिए कि उच्च आसन
पर बैठकर कथा श्रवण ना करें। जो जन इस पवित्र कथा को अपने जीवन में नहीं श्रवण
करते वे करोड़ों जन्म तक नरक की यातना भोग कुकर कुकर बनते हैं ।
( श्रोताओं के पालन करने योग्य नियम)
शौनक जी बोले- हे सूत जी! आपने यह
परम पवित्र और अद्भुत कथा तो सुना दी अब आप कृपा करके लोक कल्याणार्थ शिवपुराण के
श्रोताओं के नियम सुनाइए ?
सूत जी बोले- हे शौनक जी! दीक्षा
रहित लोगों को कथा श्रवण करने का अधिकार नहीं है ,इसलिए श्रोताओं को पहले वक्ता से
दीक्षा लेनी चाहिए।
श्रौतुकामैरतो
वक्तुर्दीक्षा ग्राह्य च तैर्मुने। मा-7-4
कथा वृती को ब्रम्हचर्य, भूमि पर शयन करना
चाहिए, शुद्ध होकर भक्ति पूर्वक शिवपुराण सुनते हुए उपवास
करके एक ही समय भोजन करें ।
घृतपान, दुग्धपान अथवा
फलाहार करते हुए कथा अवधि तक एक बार ही भोजन करें और तामसी वस्तु खाना वर्जित है ।
श्रोता को चाहिए कि नित्य प्रति
कथा मंडप पर बने सभी मंडल वेदियों का पूजन करे, शिव पुराण का पूजन करे, पुराण वक्ता एवं कथा में वर्णित सभी आचार्य का पूजन करके यथाशक्ति दक्षिणा
प्रदान कर प्रणाम करे।
shiv puran pdf शिव पुराण हिंदी में
शिवपुराण की कथा पूर्ण होने पर विरक्त है तो गीता का पाठ करे, श्रोता यदि गृहस्ती है तो शुद्ध हवि के द्वारा हवन करे। यथाशक्ति ब्राह्मण भोजन कराए एवं शिव पुराण सब पुराण में शिरोमणि है ।
जो प्राणी इस जगत में सदाशिव का
ध्यान करते हैं और उनकी वाणी सदैव उनकी स्तुति करती रहती है, वे इस अपार भव
सागर से सहज ही तर जाते हैं ।
( बोलिए शिव महापुराण की जय )
सांब
सदाशिव भगवान की जय
विश्वेश्वर संहिता
तीर्थराज प्रयाग में मुनियों का
समागम-
व्यास जी
बोले-
धर्मक्षेत्रे
महाक्षेत्रे गंगा कालिन्दि सगंमे।
प्रयागे
परमे पुण्ये ब्रह्म लोकस्य वर्त्मनि।। वि-1-1
माघ मकर गत रवि जब
होई। तीरथ पतिहिं आन सब कोई।।
एक समय गंगा और यमुना के संगम प्रयाग में जब मुनियों ने एक विराट सम्मेलन किया, तब परम पौराणिक सूत जी के आने पर सभी लोगों ने अपने अपने आसनों से उठकर उनकी यथोचित अभ्यर्थना की पूजा सत्कार किया।
और सभी ने
हाथ जोड़कर यह प्रार्थना की- हे मुनीश्वर कलयुग में सभी प्राणी पाप, ताप से पीड़ित हो
सत कर्मों से रहित, पर निंदक, चोर,परस्त्रीगामी, दूसरों की हत्या करने वाले, देहाभिमानी, आत्मज्ञान से रहित, नास्तिक, माता-पिता के द्वेषी और स्त्रियों के दास
हो जाएंगे।
चारों वर्णों के लोग अपना अपना
धर्म भूल जाएंगे, पथभ्रष्ट हो जाएंगे प्रायः इस प्रकार स्त्रियों में भी धर्म का नाश हो
जायेगा। वे तमोगुणी, पति से विमुखी, भक्ति
से रहित हो जाएंगी। हे सूत जी-