shiv puran pdf शिव पुराण हिंदी में -8

 shiv puran pdf शिव पुराण हिंदी में 

   शिव पुराण कथा भाग-8  

shiv puran pdf शिव पुराण हिंदी में

ऐसा निश्चय करके दोनों वीर उसकी परीक्षा लेने के लिए बहुत ही शीघ्र वहां से चले । भगवान विष्णु ने शूकर का रूप धारण किया और स्तम्भ के जड़ की खोज में चले। ब्रह्मा भी हंस का रूप धारण करके उसका अंत खोजने के लिए चल पड़े।

विष्णु जी पाताल में बहुत दूर तक चले गए परंतु स्तंभ का अंत ना मिला तब वह पुनः युद्ध भूमि में लौट आए।

इधर आकाश मार्ग से जाते हुए ब्रह्मा जी ने मार्ग में अद्भुत केतकी (केवड़ा) के पुष्प गिरते देखा, अनेक वर्षों से गिरते रहने पर भी वह ताजा और सुगंध युक्त था।

ब्रह्मा विष्णु के विग्रह पूर्ण कृत्य को देखकर भगवान शंकर हंस पड़े जिसके कंपन के कारण उनका मस्तक हिला और वह श्रेष्ठ केतकी पुष्प उन दोनों के ऊपर कृपा करने के लिए गिरा था ।

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ब्रह्माजी उससे पूछा- हे पुष्पराज तुम्हें किसने धारण कर रखा था और तुम क्यों कर रहे हो ? केतकी ने उत्तर दिया इस पुरातन और अप्रमेय स्तम्भ के बीच से मैं बहुत समय से गिर रहा हूं फिर भी इस के मध्य को ना देख सका अतः आप अंत देखने की आशा छोड़ दें।

ब्रह्मा जी ने कहा मैं तो हंस का रूप लेकर इसका अंत देखने के लिए यहां आया हूं। अब हे मित्र मेरा एक अभिलाषित काम तुम्हें करना पड़ेगा । विष्णु के पास मेरे साथ चलकर तुम्हें इतना कहना है कि ब्रह्मा ने इस स्तंभ का अंत देख लिया है । हे अच्युत मैं इसका साक्षी हूं ।

इधर ब्रह्मा केतकी के साथ युद्ध स्थल में आए और कहा हे हरे मैंने इस स्तंभ का अग्रभाग देख लिया है इसका साक्षी यह केतकी का पुष्प है। तब केतकी ने भी झूठा समर्थन कर दिया।

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विष्णु जी उस बात को सत्य मानकर ब्रह्मा को स्वयं प्रणाम किया और उनका षोडशोपचार पूजन किया। उसी समय कपटी ब्रह्मा को दंडित करने के लिए उस प्रज्वलित स्तंभ लिंग से महेश्वर प्रगट हो गए-
विधिं प्रहर्तुं शठमग्निलिङ्गतः
स ईश्वरस्तत्र बभूव साकृतिः।
समुत्थितः स्वामिविलोकनात पुनः
प्रकम्प पाणिः परिगृह्य तत्पदम्।। वि-7-29


महेश्वर को प्रगट हुआ देखकर विष्णु उठ खड़े हुए और कांपते हुए हाथों से उनका चरण पकड़ कर कहने लगे- हे करुणाकर, आदि और अंत से रहित शरीर वाले आप परमेश्वर के विषय में मैंने मोह बुद्धि से बहुत विचार किया किंतु कामनाओं से उत्पन्न वह विचार सफल नहीं हुआ हमें क्षमा करें यह सब आपकी ही लीला से हुआ है।

ईश्वर बोले- हे वत्स मैं तुम पर प्रसन्न हूं तुम सत्यवादी हो अतः मैं तुम्हें अपनी समानता प्रदान करता हूं ।

नंदिकेश्वर बोले- महादेव जी ने ब्रह्माजी पर क्रोधित हो अपनी भौहों के मध्य से भैरव को प्रकट किया। जिसने नमस्कार कर उनसे आज्ञा मांगी, शिवजी ने आज्ञा दी कि तुम अपनी तलवार से ब्रह्मा की पूजा करो ।

यह आज्ञा पाते ही भैरव जी ने ब्रह्मा के सिर के केस जा पकड़े , ब्रह्मा थर थर कांपने लगे । ब्रह्मा जी का पांचवा मिथ्याभि सर काट डाला । भैरव जी ने और जब सिर काटना चाहा तब ब्रह्माजी भैरव के चरणों में गिर गए यह देखकर विष्णु जी ने भी भगवान शिव का आश्रय लिया और हाथ जोड़कर प्रार्थना की।

कि आरंभ में आपने ही कृपा करके इन्हें सिर प्रदान किया था अतः इन्हें क्षमा करें । शिव जी की आज्ञा से भैरव ने ब्रह्मा जी को छोड़ दिया। शिवजी बोले तुमने अपनी प्रतिष्ठा और ईशत्व पाने के लिए छल किया था, झूठ बोला था इसलिए तुम सत्कार स्थान और उत्सव से बिहीन किए जाते हो।

इसलिए संसार में तुम्हारा सत्कार नहीं होगा और तुम्हारे मंदिर तथा पूजन उत्सव आदि नहीं होंगे । ब्रह्मा जी बोले हे महा विभूति संपन्न स्वामी आप मुझ पर प्रसन्न होइए मैं आपकी कृपा से अपने सिर के काटने को भी आज श्रेष्ठ समझता हूं ।

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विश्व के कारण भगवान शिव को नमस्कार है। भगवान शिव बोले- हे पुत्र मैं जगत की स्थिति को ना बिगड़ने दूंगा, जो अपराधी हैं उन्हें तुम दंड दो और लोक मर्यादा का पालन करो। मैं तुम्हें वरदान देता हूं-

वरं ददामि ते तत्र गृहाण दुर्लभं परम्।
वैतानिकेषु गृह्येषु यज्ञेषु च भवान गुरुः।। वि-8-13

आज से तुम गणों के आचार्य हुए । अतः तुम्हारे बिना कोई भी यज्ञ पूर्ण ना होगा ।

ऐसा कहकर भगवान शिव केतकी के पुष्प से बोले अरे मिथ्या भाषी दुष्ट केतकी तू तुरंत यहां से भाग जा । तू मेरी पूजा के योग्य नहीं है। जब शिव गणों ने उसे दूर भगा दिया तब केतकी शिव जी की प्रार्थना करने लगा । हे नाथ मुझे कुछ तो सफल कीजिए तथा मेरे पापों को दूर कीजिए।

शिवजी ने कहा मेरा वचन मिथ्या नहीं होता तू मेरे भक्तों के योग्य है और इस प्रकार तेरा भी जन्म सफल हो जाएगा और मेरी मंडल रचना का सिरमौर तू ही बनेगा ।

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( शिव जी का ज्ञानोपदेश)

नंदीकेश्वर बोले- हे सनत कुमार ब्रह्मा विष्णु हाथ जोड़कर शिवजी के अगल-बगल में जा बैठे और उनका पूजन करने लगे। तब शिव जी प्रसन्न हो उनसे कहने लगे हे वत्सों तुम्हारी पूजा से मैं अत्यंत प्रसन्न हूं।

इसी कारण यह दिन परम पवित्र और महान से महान होगा-
दिनमेतत्ततः पुण्यं भविष्यति महत्तरम्।
शिवरात्रिरिति ख्याता तिथिरेषा मम प्रिया।। वि-9-10

आज की यह तिथि शिवरात्रि के नाम से विख्यात होकर मेरे लिए परम प्रिय होगी । शिवरात्रि के दिन जो मेरे लिंग बेर (शिव की पिंडी) की पूजा करेगा वह सृष्टि विधायक तक होगा ।

यदि कोई निराहार रहकर जितेन्द्रिय एक वर्ष तक निरंतर मेरी पूजा करेगा उसका जितना फल है वह मात्र एक दिन यह शिवरात्रि के पूजन करने पर प्राप्त हो जाएगा।

भगवान शिव ने कहा-
मद्धर्मवृद्धि कालोयं चन्द्रकाल इवाम्बुधेः। वि-9-14
जैसे- पूर्ण चंद्रमा उदय समुद्र की वृद्धि का अवसर है, उसी प्रकार यह शिवरात्रि तिथि मेरे धर्म की वृद्धि का समय है।

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