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शिव पुराण कथा इन हिंदी -48

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शिव पुराण कथा इन हिंदी -48

शिव पुराण कथा इन हिंदी -48

 शिव पुराण कथा इन हिंदी

   शिव पुराण कथा भाग-48  

shiv puran pdf शिव पुराण हिंदी में

( ब्रह्मा जी का मोह होना )
ब्रह्माजी बोले- नारद! उसके बाद मेरी आज्ञा पाकर ब्राह्मणों ने अग्नि स्थापन कराया। फिर ऋग् यजु सामवेद के मंत्रों द्वारा शिव शंकर से हवन कराने लगे । उस समय पार्वती जी के भ्राता मैनाक ने आकर श्री पार्वती जी को खीलें दी।

फिर लोक मर्यादा के अनुसार अग्नि की परिक्रमा करने लगे। उस समय ब्रह्मा जी शिव माया से मोहित होकर पार्वती जी के चरणों को देखने लगे और उनका मन अत्यंत छुब्ध हुआ और उनका तेज पृथ्वी पर गिर पड़ा, तब वह अत्यंत लज्जा के कारण उसको अपने पैर से ढक लिए।
ब्रह्मा जी के इस कर्म को देखकर महादेव भगवान बडे कुपित हुए। तब समस्त देवता गण उनकी स्तुति किये। देवताओं की स्तुति से भगवान शंकर प्रशन्न होकर ब्रह्मा जी को अभय प्रदान किया।

ब्रह्मा जी के तेज के अनेकों कडों से हजारों बालखिल्य नामक ऋषि प्रगट हो गये और ब्रह्मा जी से कहने लगे- हे पिताजी हे पिताजी।तब नारद जी भगवान की इच्छा से क्रोध कर के कहने लगे ऋषियों-

गच्छध्वं सङ्गता यूयं पर्वतं गन्धमादनम्।
न स्थातव्यं भवद्भिश्च न हि वोत्र प्रयोजनम्।। 49-38
आप लोग एक साथ ही गंधमादन पर्वत पर चले जाइए । आप लोग यहां मत रुकिए, आप लोगों को का यहां कोई प्रयोजन नहीं है । वहां कठोर तपस्या करके आप लोग मुनीश्वर और सूर्य के शिष्य होंगे, मैंने यह बात शिव जी की आज्ञा से कई है । तब वह ऋषि गण भगवान शंकर को प्रणाम करके गंधमादन पर्वत पर चले गए।

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( शिव जी से हंसी )
इसके बाद ब्रह्माजी मुनियों के साथ शिवा शिव के विवाह के शेष कृत्यों का संपादन किया । उन दोनों के सिर पर आदर पूर्वक मांगलिक अभिषेक हुआ और ब्राह्मणों ने आदर के साथ उन्हें ध्रुव दर्शन कराया ।

उसके बाद हृदयालम्भन का कर्म तथा बड़े महोत्सव के साथ स्वस्तिवाचन हुआ ।
शिवा शिरसि सिन्दूरं ददौ शम्भुर्द्विजाज्ञया।
ब्राह्मणों की आज्ञा से शम्भू ने शिवा की मांग में सिंदूर लगाया ,उस समय गिरजा अत्यंत अद्भुत अवर्णनीय रूपवती हो गई। फिर शिवा शिव दोनों एक आसन पर विराजमान हुए और संस्रव प्राशन किया। विवाह यज्ञ विधिवत संपन्न हो जाने पर प्रभु शिव ने ब्रह्मा जी को पूर्ण पात्र का दान किया ।
इसके बाद शिवजी ने आचार्य को विधिपूर्वक गो दान दिया तथा मंगल प्रदान करने वाले जो अन्य महादान हैं, उन्हें भी बड़े प्रेम से दिया। उसके बाद उन्होंने कई ब्राह्मणों को स्वर्ण मुद्राएं, करोड़ों रत्न तथा अनेक प्रकार के द्रव्य दिए। चारों तरफ सदाशिव कि और भगवती शिवा की जय जयकार होने लगी।
बोलिए सांब सदाशिव भगवान की जय

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फिर सभी देवता मुनि गण तथा अन्य लोग हिमालय से आज्ञा लेकर अपने-अपने स्थान को गए। उस समय हिमालय के नगर की स्त्रियां प्रसन्न होकर शिवा एवं शिव को लेकर दिव्य कोहवर घर में गई।

वहां पर वे स्त्रियां आदर के साथ लौकिकाचार करने लगी, उसके बाद हिमालय के नगर के स्त्रियां समीप में आकर मंगल कर्म करके दंपति को घर में ले गई । वे जय जयकार कर ग्रंथि बंधन खोलने लगी, उस समय पर कटाक्ष करती हुई मंद मंद हंस रही थी और उनका शरीर रोमांचित हो रहा था ।

उस समय सोलह दिव्य नारियां बड़े आदर के साथ इन दंपति को देखने के लिए शीघ्र ही पहुंच गई। सरस्वती, लक्ष्मी, सावित्री, जानवी, अदिति, सची, लोपामुद्रा, अरुंधति, अहिल्या, तुलसी, स्वाहा, रोहिणी, वसुंधरा, सतरूपा, संज्ञा और रति यह देव स्त्रियां वहां स्थिति और भी देवकन्यायें व मुनि कन्यायें भी वहां पर आई ।

उनके द्वारा दिए गए रत्न के आसन पर शिवजी प्रसन्नता के साथ बैठ गए। इसके बाद सब देवियां क्रम से मंद मंद हंसते हुए उनसे मधुर वचन कहने लगी। सरस्वती बोली- हे महादेव अब प्राणों से भी अधिक प्यारी सती देवी आपको प्राप्त हो गई हैं ,इनके चंद्र मुख को देख देखकर संतप्त हृदय को शीतल करिए।

लक्ष्मी ने कहा- देवों के देव अब लज्जा काहे की सुंदर पार्वती जी को हृदय से लगाओ ,इसी के विरह में आप कष्ट पाते रहे हैं ,उस प्रियतमा के मिल जाने पर लज्जा कैसी?
सावित्री बोली- अब तो श्री पार्वती जी को भोजन कराकर ही भोजन करना होगा और तांबूल भी अर्पित करना होगा।

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जाह्नवी बोली- हे महादेव जी स्वर्ण जैसी सुंदर श्री पार्वती जी के केस धोना एवं श्रृंगार करना भी आपका कर्तव्य है।

सची बोलती है- हे सदाशिव जिनको पाने के लिए आप विलाप करते रात दिन गुजारते थे, अब उनको पा लेने पर हृदय से क्यों नहीं लगाते ? अरुंधति ने कहा- इस सती सुंदरी को मैंने आपको दिया अब उसे आनंदित सुंदर रति दें ।
अहिल्या बोली- शंकर जी आप वृद्धावस्था को त्याग कर जवानी में आ जाओ, जिससे मैना को भी मालूम हो कि आप पार्वती के आधीन हो । तुलसी ने कहा-

सती त्वया परित्यक्ता कामो दग्धः पुरा कृतः।
कथं तदा वसिष्ठश्च प्रभो प्रस्थापितोधुना।। 50-36
हे प्रभुो आपने पूर्व काल में सती का त्याग किया, उसके बाद कामदेव को जलाया, अब आप ने पार्वती को प्राप्त करने के लिए हिमालय के घर वशिष्ठ को कैसे भेजा?

स्वाहा ने कहा- हे महादेव अब आप स्त्रियों के वचन में स्थिर हो जाइए, क्योंकि विवाह में स्त्रियों की प्रगल्भता ( हंसी ) एक व्यवहार होता है।
ब्रह्माजी बोले- नारद जी भगवान शंकर इस प्रकार स्त्रियों के हास्य वचन सुनकर कहने लगे देवियों-
देव्यो न ब्रूत वचनं मेवंभूतं ममान्तिकम्।
जगतां मातरः साध्व्यः पुत्रे चपलता कथम्।। 50-43
आप लोग जगत माता होते हुए पुत्र के सामने इस प्रकार के चंचल तथा निर्लज्ज वचन क्यों कह रही हैं? तब तो समस्त स्त्रियां भगवान शंकर के वचन सुनकर शरमा गई।

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( शिव द्वारा कामदेव को जीवनदान )
उस समय रति शंकर जी के समीप आकर बोली आप तो पार्वती के पति बन गए किंतु मेरा पति तो आपने भस्म कर दिया । महादेव इस विवाह उत्सव में सभी लोग सुखी हैं केवल मैं ही अपने पति के बिना दुखी हूं, अब तो मुझे भी मेरा पति देकर मुझे सनाथ करो।

इस प्रकार कहकर रती कामदेव की भष्म पोटली श्री महादेव जी के सामने रखकर प्रार्थना करने लगी और रोने लगी। रति का रुदन सुनकर सरस्वती आदि सभी देव नारियां भी रुदन करती हुई शिव जी से प्रार्थना करने लगी।

दीनानाथ आप अवश्य काम को जीवित करें तभी तो आपको रति बिहार का सुख मिलेगा। प्रार्थना करने पर भगवान शंकर कृपा दृष्टि के द्वारा ज्यों ही उस भष्म पोटली की ओर देखा तो उसी समय कामदेव जीवित होकर बाहर निकल आया।

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