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शिव पुराण हिंदी में shiv puran hindi men -49

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शिव पुराण हिंदी में shiv puran hindi men -49

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 शिव पुराण हिंदी में shiv puran hindi men

   शिव पुराण कथा भाग-49  

shiv puran pdf शिव पुराण हिंदी में

यह देखकर रति को परम आनंद की प्राप्ति हुई । कामदेव ने सदाशिव को प्रणाम किया, प्रसन्न होकर भगवान शंकर बोले मैं तुम दोनों पर प्रसन्न हूँ मनचाहा वर मांग लो । इतना सुनकर कामदेव बोला-
देवदेव महादेव करुणासागर प्रभो।
यदि प्रसन्नः सर्वेश ममानन्द करो भव।। 51-20
देव महादेव यदि आप प्रसन्न है तो मुझे आनंद प्रदान कीजिए, मैंने पूर्व समय में जो अपराध किया है उसे क्षमा कीजिए । आप के भक्तों में मेरा प्रेम हो और आपके चरणों में मेरी भक्ति हो बस यही वरदान दीजिए ।

कामदेव के वचन सुनकर सदाशिव कहने लगे कामदेव मैं तुम पर प्रसन्न हूँ तुम निर्भय होकर विचरण करो । कामदेव को जीवित देखकर सभी देवता प्रसन्न हुए । सब भगवान शिव की जय-जयकार करने लगे ।
बोलिए महादेव भगवान की जय
उसके बाद भगवान शंकर ने पार्वती के साथ बैठकर भोजन किया एवं हिमाचल से आज्ञा पाकर सदाशिव वहाँ से जनवासे को गए।

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( बारातियों को भोजन व शिव शयन )
हिमाचल ने अपना आंगन साफ कराया लिपवाया। उसके बाद अपने पुत्र एवं अन्य पर्वतों को भगवान शंकर के पास भेजा। वे जाकर कहने लगे परमेश्वर आप कृपा करके विष्णु ब्रह्मा आदि सभी देवता एवं ऋषि-मुनियों को साथ लेकर भोजन के लिए पधारें।

इस प्रकार सभी देवताओं के साथ सदाशिव भोजन करने पधारे। हिमाचल ने आए हुए सभी देवताओं व भगवान शंकर का आदर सत्कार किया । भोजन के लिए बिठाया और नाना प्रकार के व्यंजन परोसे , भोजन करने की प्रार्थना की।

सभी देवता प्रसन्न होकर भोजन किए फिर आचमन आदि करके अपने विश्राम स्थान पर चले गए। इधर मैना की आज्ञा से सभी पतिव्रता स्त्रियां भक्ति पूर्वक शिव से प्रार्थना कर वास नामक परमानन्द दायक निवास ग्रह में ले गयीं।
वहां पर मैना के द्वारा दिए हुए मनोहर रत्न के सिंहासन पर बैठ कर प्रशन्नता पूर्वक शिवजी वासग्रह को देखने लगे । वहां सैकड़ों दीपक जगमगा रहे थे एवं रत्न जड़ित कुम्भ तथा पात्रादि स्थापित थे। इस प्रकार के सुंदर भवन को देखकर, शंकर जी वहां रत्न जड़ित पलंग पर सो गए।

जब प्रातः काल हुई तो अनेक प्रकार के बाजे बजने लगे, सारे देवता उठे वे आनंदित होकर अपनी अपनी सवारियां सजाकर कैलाश चलने की तैयारी में लग गए । तब भगवान शंकर के पास विष्णु जी ने धर्म को भेजा। वो सदाशिव से प्रार्थना करने लगे- महेश्वर कृपा करके आप जनवासे में पधारें, देवतागण आपकी बाट देख रहे हैं।

इतना सुनकर सदाशिव धर्म से कहने लगे- तुम जाओ मैं अभी आ रहा हूं और महादेव अपने मन में जाने की इच्छा करने लगे। भगवान शंकर ने अपना प्रातः काल का नित्य कर्म करके मैना से आज्ञा मागकर जनवासै में गमन किया वहां ऋषि-मुनियों को प्रणाम कर बैठ गए।

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( शिव यात्रा )
ब्रह्माजी बोले- नारदजी उसके बाद विष्णू आदि देवता एवं ऋषियों ने अपना-अपना आवश्यक कर्म करके हिमाचल से विदा करने के लिए कहने लगे । तब हिमाचल जनवासे में जाकर सदाशिव से बोले-
कियद्दिनानि सन्तिष्ठ मदगेहे सकलैः सह।
ईश्वर प्रार्थना यह है कि इन सभी बारातियों के साथ आप यहां कुछ दिन निवास करें ,आपके दर्शन कर हम आनंदित होंगे । हिमाचल के इस प्रकार आग्रह करने पर महादेव जी देवताओं के साथ बोले-
धन्यस्त्वं गिरिशार्दूल तव कीर्तिर्महीयसी।
हे गिरिराज आप धन्य हैं और आपकी कीर्ति महान है ,त्रिलोकी भर में आप के समान कोई नहीं। देवताओं ने कहा तुम्हारे द्वार पर परम ब्रम्ह शंकर अपने दासों के साथ पधारे हैं उन्हें सब प्रकार से पूज कर पसन्न किया आपने ।

तब भगवान शंकर हिमालय की प्रसन्नता के लिए रुक जाते हैं , प्रत्येक दिन राजा हिमालय भगवान शंकर के साथ सभी देवताओं के लिए उत्तमोत्तम व्यवस्था करते हैं और खूब सत्कार करते। जब भगवान शिव सहित ब्रह्मा विष्णु देवता भोजन करते तब-
तदानीं पुरनार्यश्च गालीदानं व्यधुर्मुदा।
नगर की नारियां हंसती हुई एवं उन सभी की ओर यत्न से देखती हुई मधुर वाणी में गालियां देने लगीं। इस प्रकार एक-एक दिन करते हुए हिमाचल ने कई दिनों तक बड़े आदर के साथ ठहराया।

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इस प्रकार जब बहुत दिन बीत गए तब देवताओं ने हिमालय के पास सप्तर्षियों को भेजा, उन्होंने गिरिराज तथा मैना को यथोचित बात कहकर समझाया । तब हिमालय ने स्वीकार कर लिया, फिर शिवजी विदा होने के लिए देवताओं सहित हिमालय के घर गए।

इधर जब मैंना ने यह सुना कि सदाशिव आज ही कैलाश जाने का निश्चय कर चुके हैं , तब मैंना तो अत्यंत व्याकुल हो गई और
उच्चैः रुरोद सा मेना तमुवाच कृपानिधिम्।
बड़े उच्च स्वर से रुदन करती हुई सदाशिव से बोली प्रभो कृपानिधे मेरी प्रार्थना है कि यह पुत्री पार्वती आपकी जन्म जन्मांतरों से दासी है । आपकी सेवा करेगी इसका पालन करते रहना।
ऐसा कह कर के मैंना उन्हें अपनी पुत्री को समर्पित कर जोर जोर से रुदन करके उन दोनों के सामने मूर्छित हो गई। तब शंकर जी ने मैना को समझा करके और उनसे तथा हिमालय से आज्ञा लेकर देवगणों के साथ महोत्सव पूर्वक यात्रा की।

इसके बाद सभी देवताओं ने हिमालय के कल्याण की कामना करते हुए प्रभु तथा अपने गणों के साथ मौन हो प्रस्थान किया। कुछ दूर जाकर हर्षित देवता हिमालय की पुरी के बाहर बगीचे में ,शिवजी सहित आनंद पूर्वक ठहर गए और शिवा के आगमन की प्रतीक्षा करने लगे।

उसके बाद सप्तर्षियों ने हिमालय से कहा आज गिरिजा के विदाई के लिए उत्तम मुहूर्त है ,आप अपनी पुत्री पार्वती की विदाई कर दीजिए। यह बात सुनकर पर्वतराज अत्यंत व्याकुल हो गए। फिर कुछ काल के अनंतर चेतना प्राप्त होने पर ऐसा ही होगा, यह कहकर उन्होंने मैना को संदेश भेजा।

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शैलराज का संदेश सुनकर मैना हर्ष तथा शोक से युक्त हो गई और गिरजा को विदा कराने को उद्यत- तैयार हो गई। हिमाचल प्रिया उन मैना ने प्रथम वेद तथा अपने कुल की रीति संपन्न की, फिर पार्वती को उनके रत्नों तथा श्रेष्ठ वस्त्रों से और राजकुलोचित शृगांरो तथा उत्तमोत्तम द्वादश आभरणों से अलंकृत किया।

मैना के मन की बात जानकर एक पतिव्रता ब्राह्मण पत्नी गिरिजा को श्रेष्ठ पतिव्रत धर्म का उपदेश करने लगी-
गिरिजे शृणु सुप्रीत्या मद्वचो धर्मवर्धनम्।
हे गिरिजे तुम प्रेम पूर्वक मेरा यह वचन सुनो मेरे ये वचन स्त्रियों को इस लोक तथा परलोक में सुख देने वाले हैं , तथा इनके सुनने से भी स्त्रियों का कल्याण हो जाता है।
धन्या पतिव्रता नारी नान्या पूज्या विशेषतः।
पावनी सर्वलोकानां सर्वपापौघ नाशिनी।। 54-9
इस जगत में पतिव्रता नारी ही धन्य है, इसके अतिरिक्त और कोई नारी पूजा के योग्य नहीं है । वह सब लोगों को पवित्र करने वाली तथा समस्त पापों को दूर करने वाली है।

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