शिव पुराण कथा हिंदी में PDF
हे मुने- जिस
समय मुझ ब्रह्मा ने अत्रि, पुलह आदि प्रभुता
संपन्न मानस पुत्रों की सृष्टि की उसी समय मेरे मन से एक सुंदर रूप वाली श्रेष्ठ
युवती उत्पन्न हुई-
नाम्नां सन्ध्या दिवाक्षान्ता सायं संध्या जपन्तिका।
वह संध्या के नाम से प्रसिद्ध हुई जो प्रातः संध्या तथा सायं संध्या
के रूप में क्रमशः दिवक्षान्ता तथा जपन्तिका कही गई । उस कन्या को देखते ही उठ
करके उसे हृदय में धारण करने के लिए मैं मन में सोचने लगा।
दक्ष ,मरीचि आदि मेरे पुत्र भी सोचने लगे। उसी
समय एक अत्यंत अद्भुत एवं मनोहर मानस पुरुष उत्पन्न हुआ। हे तात वह पुरुष काले
बालों से युक्त, श्याम गज के समान स्थूल काया वाला और सुंदर
नीले वस्त्र पहने, कटाक्षपात से नेत्रों को घुमाते हुए मनोहर
प्रतीत होने वाला, सुगंधित स्वास से युक्त और श्रृंगार से
सेवित था।
उसे देखकर मेरे पुत्रों का मन शीघ्र ही विकृत हो गया तब वह पुरुष
मुझ ब्रह्मा को देखकर विनय भाव से सिर झुका कर प्रणाम करके मुझसे कहने लगा - मेरे
लिए किया गया है ?
ब्रह्मा जी ने कहा तुम सनातनी सृष्टि उत्पन्न करो , तुम पुष्पों के पांच बाणों से सभी स्त्री तथा पुरुषों को मोहित करोगे ।
मैं वासुदेव और सभी तुम्हारे बस में हैं । आज से तुम्हारा नाम पुष्पबाण होगा। बाद
में मरीच आदि मुनियों ने उसका अभिप्राय जानकर उसका नाम यथोचित रख दिया।
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उन्होंने कहा कि तुमने उत्पन्न होते ही ब्रह्मा का मन मन मंथन कर
दिया था इसलिए-
तस्मान्मन्मथनामा त्वं लोके ख्यातो भविष्यसि।
तुम लोक में मन्मथ नाम से प्रसिद्ध होओगे ,तुम्हारे सामान कोई सुंदर नहीं है इसीलिए हे मनोभव
काम नाम से भी तुम विख्यात होगे। तुम सभी को मदोन्मत्त करने के कारण मदन कहे
जाओगे।
अहंकार युक्त होकर दर्प से उत्पन्न हुए हो , इसलिए
तुम कंदर्प नाम से भी संसार में प्रसिद्ध होगे । तुम्हारे लिए प्रजापति दक्ष एक
सुंदर कामनी स्त्री देंगे ।
इतने में काम ने अपने पांचों बांणो का प्रयोग किया तो मोहन ने
ब्रह्मादिकों के मन को भी मोह लिया। सबके मन में विकार प्रगट हो गया और उनमें काम
की वृद्धि हो गई । मुझमें उनच्चासों भाव खड़े हो गए । संध्या में भी विकार हे़ो
आया तथा वह भी ऋषियों को कटाक्ष करने लगी ।
जब मुनियों और मुझे तथा संध्या को विकार प्राप्त हो गया तब काम को
अपने कार्य पर विश्वास हो गया। पिता और भाइयों की पाप की गति को देखकर धर्म को
बड़ा दुख हुआ और उसने धर्म रक्षक प्रभु शिवजी का स्मरण किया ।
तब मुझे देखकर आकाश से शिवजी हंसे और मुझे लज्जित करते हुए बोले हे
ब्रह्मण तुम्हें पुत्री को देखकर कैसे काम प्रगट हो गया ? सर्वदा
सूर्य का दर्शन करने वाले दक्ष, मरीच आदि एकांत वासी योगियों
का मन स्त्री को देखकर कैसे मलिन हो गया ?
ब्रह्मा जी कहते हैं कि जब लोक पितामह शिवजी ने इस प्रकार कहा तो
लज्जा के कारण क्षण भर के लिए मेरा सारा शरीर पसीने से लथपथ हो गया , उन पसीने के बूंदों से बर्हिषद नामक पितृ गणों की उत्पत्ति हुई।
सहस्त्राणां चतुः षस्ठि रग्निष्वत्ताः प्रकीर्तिताः।
षडतीति सहस्त्राणि तथा बर्हिषदो मुने।। रु•स• 3-50
चौंसठ हजार अग्निष्वात पितर और छियासी हजार बर्हिषद पितर कहे गए हैं
। हे नारद उसी समय शिवजी तो अंतर्ध्यान हो गए और मैं उनके वाक्यों से लज्जित होता
हुआ काम पर बहुत क्रोधित हुआ मेरे क्रुद्ध होते ही काम ने तुरंत अपना बाण खींच
लिया और मैं जलती हुई अग्नि के समान जलने लगा।
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उससे पीड़ित होकर मैंने तथा अन्य ऋषियों और प्रजापतियों ने काम को
यह श्राप दिया- जा तू शिवजी के नेत्राग्नि द्वारा भस्म हो जाएगा , यह सुनकर रति पति काम तुरंत अपना धनुष बाण फेंककर मेरे चरणों में आ गया और
बोला कि आपने मुझे ऐसा कठिन श्राप क्यूँ दे दिया ,आपने ही तो
कहा कि ब्रह्मा विष्णु सभी तुम्हारे बस में है तो मैंने उसकी परीक्षा कि, मैं निरपराध हूं ।
मुझे ऐसा कठोर श्राप क्यों देते हैं ? तब
ब्रह्मा जी ने काम को डांटते हुए कहा कि यह संध्या जो मेरी कन्या है इसको तुमने
काम से पीड़ित किया है इसी कारण मैंने श्राप दिया है ।
हे काम अब तुम शांत होकर सुनो कि जब तुम श्री महादेव जी के
नेत्ररूपी अग्निबाण से भस्म हो जाओगे तब फिर कुछ समय बाद इसी समान शरीर को प्राप्त
करोगे। जब शंकर जी विवाह करेंगे तब वे अनायास ही तुम्हें शरीर प्रदान करेंगे ।
काम से ऐसा कह मैं ब्रह्मा अंतर्ध्यान हो गया , मेरे सभी मानस पुत्र व कामदेव प्रसन्न हो अपने अपने घर को चले गए।
नारद जी बोले- हे ब्रह्मण इसके पश्चात फिर क्या हुआ ? वह भी आप कृपा करके मुझसे कहिए क्योंकि भगवान शंभू के सुंदर चरित्रों को
सुनने कि मेरी बड़ी ही अभिलाषा है।
ब्रह्मा जी बोले- हे नारद जब शिवजी अपने स्थान को चले गए और मैं
ब्रह्मा भी अंतर्ध्यान हो गया, तब दक्ष ने कन्दर्प से कहा-
हे कंदर्प तुम्हारे ही समान गुण वाली मेरी पुत्री को तुम अब पत्नी के रूप में
ग्रहण करो। ऐसा कहकर दक्ष ने अपनी देह के पसीने से एक स्त्री को रति नाम से प्रकट
करके उसे कंदर्प के आगे खड़ा कर दिया।
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इति
तां मदनो वीक्ष्य रतिं जग्राह सोत्सुकः।
रागादुपस्थितां लक्ष्मीं हृषीकेश इवोतमाम्।। रु•स• 4-29
इस प्रकार परम सुन्दरी रति को देखकर कामदेव ने इसे बड़ी प्रसन्नता से ग्रहण
किया, जिस प्रकार स्वयं राग से उपस्थित हुई महालक्ष्मी को भगवान नारायण ने ग्रहण
किया था।
दक्ष की उस परम सुंदरी कन्या से विवाह करके काम बड़ा प्रसन्न हुआ।
अपनी कन्या को प्रसन्न देखकर दक्ष भी बड़े प्रसन्न हुए ।
सूत जी बोले- ऋषियों जब ब्रह्मा जी ने इस प्रकार कहा तब नारदजी
बोले- हे ब्रह्मा जी जब आप अन्य सभी महान देवता तथा दक्ष प्रजापति भी अपनी पुत्री
संध्या को काम के अर्पित करके चले गए तब संध्या ने क्या किया ?
ब्रह्माजी बोले- जो पहले संध्या नाम से मेरे मन से ही पैदा हुई और
फिर तप करके अपना शरीर त्याग कर अरुंधति नाम से प्रसिद्ध हुइ उसे मेधातिथि ने
उत्पन्न किया था और वशिष्ठ जी ने पत्नी के रूप में उन्हें ग्रहण किया था ।
नारद जी ने पूछा कि उसे मेधातिथि ने कैसे उत्पन्न किया और वशिष्ठ जी
ने उसे कैसे ग्रहण किया ? ब्रह्मा जी ने कहा- जब मैं काम को
श्राप दे अन्तर्धान हो गया और शिवजी भी चले गए ।
तब सन्ध्या बहुत दुखी हो गई सोचने लगी कि भला मुझसे बढ़कर पापिनी और
कौन होगा जिसे देखकर पिता और भ्राता भी काम की इच्छा करते हों ।
करिष्याम्यस्य पापस्य प्रायश्चित्त महं स्वयम्।
आत्मानमग्नो होष्यामि वेदमार्गा नुसारतः।। रु•स• 5-28
अब मैं इस पाप का प्रायश्चित करूंगी और वेद मार्ग के अनुसार अपने
शरीर को अग्नि में हवन कर दूंगी। मैं इस भूतल पर मर्यादा स्थापित करूंगी , जिससे कि शरीर धारी उत्पन्न होते ही काम भाव से युक्त ना हो।