shiv puran katha notes in hindi
तुम दोनों ही पुत्र हमारे लिए एक समान हो इस कारण तुम्हारे
लिए हमने यह प्रतिज्ञा की है कि-
यश्चैव पृथिवीं सर्वां क्रान्त्वा पूर्वमुपाव्रजेत।
जो पहले समस्त पृथ्वी की परिक्रमा करके हमारे पास आ जाएगा उसका ही विवाह पहले
किया जावेगा। तब माता-पिता के यह वचन सुनकर महाबली कार्तिकेय जी तत्काल पृथ्वी
प्रदक्षिणा के लिए चल पड़े।
बुद्धिमान गणेश जी अब तक वहां स्थिर रहे और बार-बार बुद्धि से विचार
करने लगे कि क्या करूं ? कहां जाऊं ? यह
विचार कर गणेश जी अपने घर में जा स्नान ध्यान कर माता-पिता से बोले आप दोनों
सिंहासन पर बैठिए मैं पूजा करूंगा।
पार्वती शंकर गणेश की पूजा ग्रहण करने बैठे, गणेश
जी ने पूजा कर सात बार परिक्रमा की प्रणाम किया फिर हाथ जोड़कर बोले आप मेरा विवाह
करा दें अब। शिवा शिव ने कहा क्या तुम पृथ्वी की परिक्रमा करके आ गये हो? देखो गणेश कुमार गए हैं तुम भी जाओ शीघ्र परिक्रमा करके आओ ।
गणेश जी माता पिता के वचन सुनकर किंचित क्रोध से बोले- माताजी
पिताजी मेरी बात सुनिए जब मैंने आपकी सात बार परिक्रमा कर ली तब फिर आप यह कैसे कह
सकते हैं कि पृथ्वी की परिक्रमा कर आओ। शिवा शिव ने कहा हे पुत्र तुमने इस महान
पृथ्वी की परिक्रमा कब की है ?
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गणेश जी ने कहा जब मैंने आप दोनों की पूजा और परिक्रमा कर ली तो
समस्त पृथ्वी की परिक्रमा हो गई ।
अपहाय गृहे यो वै पितरौ तीर्थमाव्रजेत्।
तस्य पापं तथा प्रोक्तं हनने च तयोर्यथा।। रु-कु-19-40
पिताजी जो माता-पिता को घर में छोड़कर तीर्थ स्थान में जाता है, उसके लिए वह वैसा ही पाप कहा गया है जो उन दोनों के वध करने से लगता है ।
हे पिताजी और मेरी मां मेरी परिक्रमा वेद शास्त्र सम्मत हो तो आप भी माने अन्यथा
नहीं ।
वेद शास्त्र जो कहते हैं वही आपको भी कहना चाहिए अन्यथा शास्त्र
असत्य हो जाएगा। ऐसा कह बुद्धिमानों में श्रेष्ठ महा ज्ञानी पार्वती पुत्र चुप हो
गए। तब विश्व के माता पिता पार्वती शंकर गणेश जी के यह वचन सुनकर बड़े ही आश्चर्य
चकित हुए और पुत्र की विलक्षण बुद्धि की प्रशंसा कर बोले- हे पुत्र तुम्हारा कहना
यथार्थ है तुमने जो किया है उसको कोई भी नहीं कर सकता। तुम्हारी बात हम दोनों ने
मान ली।
ब्रह्माजी बोले- ऐसा कह कर वे दोनों बुद्धीसागर गणेश जी को आश्वस्त
कर उनका विवाह करने के लिए विचार करने लगे। इसी समय विश्वरूप प्रजापति ने शिवा शिव
के पास आकर अपनी सिद्धि और बुद्धि नामक दोनों कन्याओं के विवाह की बात कही।
शिवा शिव ने उनका प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और गणेश का विवाह
निश्चित हुआ, पार्वती शिव के विवाह के तरह ही सब देवता गणेश
जी के विवाह में आए विश्वकर्मा ने दिव्य आयोजन कर गणेश जी का विवाह संपन्न करवाया।
सब देवताओं ने बड़ी प्रसन्नता व्यक्त की गणेश जी भी बहुत प्रसन्न
हुए । कुछ समय बीतने के बाद गणेश जी की दोनों पत्नियों से दो सुंदर पुत्र उत्पन्न
हुए । गणेश जी की सिद्धि नामक पत्नी से छेम नामक पुत्र हुआ तथा बुद्धि से लाभ नामक
परम सुंदर पुत्र उत्पन्न हुआ।
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इसके बाद पृथ्वी प्रदक्षिणा करके कार्तिकेय जी भी आ गए, परंतु जब वह घर पहुंचने वाले थे कि उसके पहले ही उनको नारद जी से भेंट हो
गई। उन्होंने उनसे यह कह दिया कि अब घर क्या करने जाते हो ? तुम्हारे
माता-पिता ने जैसा किया है वैसा कोई भी इस लोक में नहीं कर सकता।
तुमको तो पृथ्वी प्रदक्षिणा के लिए भेज दिया, इधर
गणेश जी का सुंदर विवाह कर दिया । प्रजापति विश्वरूप की दो कन्याओं से। अरे अब तो
उनके पुत्र भी हो चुके हैं, इस प्रकार उन्होंने तुमको छला
है।
मेरी समझ से तुम्हारे माता-पिता ने तुम्हारे साथ यह अच्छा नहीं
किया। नारद जी की यह बात सुनते ही कुमार के क्रोध की सीमा ना रही। किसी प्रकार वे
घर तक तो पहुंचे किंतु माता-पिता को तुरंत प्रणाम कर उनके मना करने पर भी क्रौंच
पर्वत पर तप करने चले गए।
जब शिव पार्वती ने बहुत पूंछा तो कुमार ने यह कह दिया कि आप दोनों
ने मेरे साथ कपट का व्यवहार किया है। कुमार के विरह में पार्वती जी को बहुत दुख
हुआ और उन्होंने शिवजी से कार्तिकेय पुत्र के पास चलने के लिए कहा । तब उनको सुखी
करने के लिए शंकर जी स्वयं अपने अंश से क्रौंच पर्वत पर गए वहां मल्लिकार्जुन नामक
सुखदायक ज्योतिर्लिंग प्रतिष्ठित है ।
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शिवजी पार्वती के साथ आज भी वहां दिखाई पड़ते हैं, इधर पार्वती सहित शिव को आया हुआ जानकर कुमार विरक्त होकर वहां से अन्यत्र
जाने को उद्यत हो गए, तब देवता मुनियों के बहुत प्रार्थना
करने पर उस स्थान से तीन योजन दूर रहकर निवास करने लगे। अपने पुत्र को देखने के
लिए शिव पार्वती उस स्थान पर जाते रहते हैं।
अमावस्यादिने शंभुः स्वयं गच्छति तत्र ह।
पूर्णमासी दिने तत्र पार्वती गच्छति ध्रुवम्।। रु-कु-20-37
अमावस्या के दिन वंहा शिव जी स्वयं जाते हैं एवं पूर्णिमा के दिन पार्वती
निश्चित रूप से उनके स्थान पर जाती हैं । ब्रह्माजी बोले- हे मुनीश्वर आपने
कार्तिकेय तथा गणेश्वर का जो जो वृतांत मुझसे पूंछा मैंने वह श्रेष्ठ वृतांत आपसे
वर्णित किया।
एतच्छ्रुत्वा नरोश्रीमान् सर्वपापैः प्रमुच्यते।
शोभनां लभते कामानीप्सितान्सकलान्सदा।। रु-कु-20-39
इस कथा को सुनकर के बुद्धिमान मनुष्य समस्त पापों से छूट जाता है और अपनी
संपूर्ण अभिलाषा व शुभकामनाओं को प्राप्त कर लेता है ।
यः पठेत्पाठयेद्वापि शृणुयाच्छ्रावयेत्तथा।
सर्वान्कामा न वाप्नोति नात्र कार्या विचारिणा।। रु-कु-20-40
जो इस कथा को पड़ता है अथवा पढ़ाता है, सुनता है अथवा
सुनाता है वह सभी मनोरथ प्राप्त कर लेता है, इसमें संदेह
नहीं करना चाहिए ।
बोलिए सांब सदाशिव भगवान की जय
गणेश भगवान की जय
कार्तिकेय स्वामी की जय
( कुमारखंड विश्राम )
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( रूद्र संहिता- युद्ध खंड )
त्रिपुरासुर वध
नारद जी बोले- प्रभु अब शिव जी का वह चरित्र सुनाने की कृपा कीजिए
जिसमें उन्होंने दुष्ट दानवों का वध किया है? ब्रह्माजी
बोले- एक समय व्यास जी ने सनत कुमारों से यही बात पूछे थे , तब
उन्होंने जो कहा था वही कथा मैं कहता हूं।
सनत कुमार जी बोले-
शृणु व्यास महाप्राज्ञ चरितं शशिमौलिनः।
यथा ददाह त्रिपुरं बाणेनैकेन विश्वहृत।। रु-यु-1-6
हे व्यास जी आप शंकर के उस चरित्र को सुनिए, जिस
प्रकार विश्व का संघार करने वाले उन्होंने एक ही बाण से त्रिपुर को भस्म किया था ।
शिव पुत्र कार्तिकेय द्वारा तारकासुर के मारे जाने पर उनके तीन दैत्य पुत्र पृथ्वी
पर तपस्या करने लगे । उनमें तारकाक्ष जेष्ठ विद्युन्माली मध्यम तथा कमलाक्ष कनिष्ठ
था ।
यह तीनों समान बली जितेंद्रिय, दृढ़ चित्त,
महावीर और देवद्रोही थे इन तीनों ने ब्रह्मा जी को प्रसन करने के
लिए सुमेरु पर्वत की गुफा में जाकर बड़ा ही अद्भुत तप किया। वह सौ वर्ष तक एक पांव
से पृथ्वी पर खड़े होकर तप करते रहे, हजारों वर्षों तक
उन्होंने विभिन्न प्रकार से कठिन तपस्या की।
तब उनको इस प्रकार तप करते देखकर ब्रह्मा जी प्रसन्न हो उन्हें वर
देने आए और ब्रह्मा जी ने कहा- कि हे महादैत्यों मैं तुम पर प्रसन्न हूं जो इच्छा
हो वर मांगो । असुरों ने ब्रह्मा जी को प्रणाम किया और शनैः शनैः विचार कर कहा- हे
देवेश यदि आप हम पर प्रसन्न हैं तो हम सबको समस्त प्राणियों से अवध्य कीजिए। हमको
अमर कर दीजिए।