शिव पुराण कथा Shiv Puran Kathanak
तब शिवजी को
इस रूप में अपनी ओर आते देख गणेश जी ने मन ही मन अपनी माता का ध्यान किया और अपनी
शक्ति उठा शिव के हाथों में प्रहार किया, जिससे
शिव जी के हाथों से उनका धनुष गिर गया। धनुष को गिरते देख शिवजी ने पिनाक उठा लिया,
परंतु गणेश्वर ने अपने परिघ के प्रहार से उसे भी धरती पर गिरा दिया
।
फिर गणेश जी ने हाथों में त्रिशूल लेकर शिवजी के पांचों हाथों में प्रहार
कर सब शस्त्रों को उनके काट दिया। शिवजी ने कहा वाह जब मेरी यह दशा है तो मेरे
गणों की क्या दशा रही होगी ?
गणेश जी के प्रहार से सभी गण व देवता भाग खड़े हुए। यह देख कर शिवजी
को बड़ा क्रोध आया और उन्होंने त्रिशूल से बालक का सिर काट दिया। देवताओं और गणों की
सेना निश्चिंत हो गई। उसी समय नारदजी जाकर यह बात देवी पार्वती से कह दी और यह कह
दिया कि आप अपना मान किसी प्रकार भी ना त्यागना।
शिव पुराण कथा Shiv Puran Kathanak
ब्रह्मा जी नारद जी से विनोद पूर्वक हंसते हुए बोले- ( नारद त्वं
कलिप्रियः ) हे नारद इस प्रकार कहकर कलहप्रिय आप अंतर्ध्यान हो गए।
अविकारी सदा शंभुर्मनोगति करो मुनिः।
आप विकार रहित हैं तथा शिवजी की इच्छा के अनुसार
चलने वाले मुनि हैं। गणेश जी को मार दिए जाने पर शिवजी के गणों ने मृदंग बजाकर
महान उत्सव किया । शिवजी भी गणेश का सिरोच्छेदन कर दुखी हो गए।
उस समय गिरजा देवी अत्यंत क्रोधित हो गई उन्होंने कहा-
मत्सुतो नाशितश्चाद्य देवैः सर्वैर्गणैस्तथा।
सर्वांस्तान्नाशयिष्यामि प्रलयं वा करोम्यहम्।। रु-कु-17-6
सभी देवताओं तथा गणों ने मेरे पुत्र को मार डाला
है अतः मैं उनका नाश कर दूंगी अथवा प्रलय कर दूंगी । इस प्रकार दुखी होकर पार्वती
ने सौ हजार शक्तियों की रचना कर डाली। तब वे शक्तियां जगदंबा को प्रणाम कर कहने
लगी हे माता क्या आज्ञा है ?
देवी ने कहा तुम लोग देवसेना में जाकर प्रलय कर डालो-
पार्वती जी की आज्ञा से शक्तियां हो गई क्रोध से लाल,
पकड़ पकड़ देवताओं के केस उनको लेती मुख में डाल।
ब्रह्मा विष्णु इंद्र और कांप उठे सारे दिगपाल,
हो शिवा क्रोध शांत कैसे स्वयं विचार में पड़े महाकाल।।
इधर उन शक्तियों ने देवताओं को भक्षण करना शुरू कर दिया उनके इस
कर्म को देख ब्रह्मा विष्णु महेश और इंद्र आदि देवताओं को अपने जीवन की आशा ना
रही। वह कहने लगे क्या देवी आज ही प्रलय कर डालेगी ? सब
देवता विचार किए कि अगर गिरजा देवी प्रसन्न हो जाएं तो सब कार्य बन जाएगा।
शिव पुराण कथा Shiv Puran Kathanak
लीला करते हुए भगवान शंकर भी दुखी हो सब को मोहने लगे, शक्तियों के आतंक से देवता निष्प्राण हो रहे थे । क्रोध में शिवा के मंदिर
में जाने का उनका साहस ही ना होता था । पार्वती का महा प्रकाशित तेज सभी को संतप्त
कर रहा था।
उसी समय नारद जी वहां आए और ब्रह्मा विष्णु एवं शंकर को प्रणाम कर
शांति स्थापना का विचार करने लगे । सब देवताओं ने कहा- नारद जी तुम्हें अग्रणी
बनाकर शिवा के पास चलने का विचार किया है ।
सबने भगवती के पास जाकर उनकी बहुत स्तुति कि उसे सुनकर वे देवी कुछ
ना बोलीं और क्रोध दृष्टि से उनकी ओर देखती रहीं, तब ऋषियों
ने कहा-
क्षम्यतां क्षम्यतां देवि संहारो जायतेधुना।
हे देवी क्षमा कीजिए क्षमा कीजिए। इस समय प्रलय होना चाहता है, अब सब का अपराध क्षमा कीजिए। इस प्रकार कहते हुए बड़े दीनता व व्याकुलता
से देवी के समक्ष सब देवता हाथ जोड़े खड़े रहे। तब भगवती करुणाकर देवताओं से बोली-
मत्पुत्रो यदि जीवेत तदा संहरणं न हि।
यथा हि भवतां मध्ये पूज्योयं च भविष्यति।। रु-कु-17-42
यदि मेरा पुत्र जीवित हो जाए और तुम लोगों के बीच प्रथम पूज्य हो तो यह संघार
नहीं होगा, भगवती के ऐसा कहने पर सब देवताओं ने शिव जी से इसके लिए
प्रार्थना करी। शिव जी ने कहा ठीक है हम लोगों को वही करना चाहिए जिसमें सब लोगों
का मंगल होवे।
शिव पुराण कथा Shiv Puran Kathanak
भगवान शिव ने आदेश दिया तुम सब लोग यहां से उत्तर दिशा में चले जाओ
और जो पहले मिले उसका सिर काटकर गणेश जी के शरीर पर जोड़ दो, यह जीवित हो जाएंगे। जब देवता गणेश जी को लेकर उत्तर दिशा की ओर गए तो
प्रथम उनको एक दांत वाला हाथी मिला उन्होंने उसका सिर काटकर गणेश जी के शरीर पर
जोड़ दिया।
फिर उन्हें अच्छी तरह स्नान कराकर उनकी पूजा की तथा विष्णु जी से
कहा कि अब जैसा उचित हो वैसे आप कीजिए? विष्णु जी ने वेद
मंत्रों के योग से अभिमंत्रित कर शिव को स्मरण कर गणेश जी पर जल छिड़का, जल छिडकते ही वह बालक शिवजी की इच्छा से जाग उठा।
शिव पुत्र को जीवित हुआ देख सबका दुख दूर हो गया। पार्वती देवी अपने
पुत्र को जीवित हुआ देख प्रसन्न हो गई ।
( गणेश गौरव )
जब देवी ने देखा कि मेरा पुत्र जीवित हो गया तो वह बहुत प्रसन्न
हुई और दोनों भुजाओं से पकड़कर को उसका आलिंगन करने लगी। अनेकों प्रकार के भूषण और
वस्त्र पहनाए और कहा हे पुत्र तुम्हारे मस्तक पर जो सिंदूरी रंग की आभा है,
इस कारण मनुष्य पुष्प चंदन आदि सहित तुम्हारी सिंदूर से पूजा करेंगे
।
तुमको सब सिद्धियां प्राप्त होंगी और तुम्हारी पूजा से निसंदेह सारे
विघ्न दूर हो जाएंगे। ऐसा वर दिया भगवती ने । शिवजी ने अपने कर कमलों को उसके सिर
पर फेर कर कहा कि यह मेरा दूसरा पुत्र है । गणेश जी ने उठकर शिव जी को प्रणाम किया
तथा सब देवताओं को प्रणाम करते हुए उनसे अपने अपराध की क्षमा मागी।
शिव पुराण कथा Shiv Puran Kathanak
त्रिदेवों ने कहा कि हे गजानन हम तुमसे बहुत प्रसन्न हैं और आपको यह
वरदान देते हैं कि आज से आप प्रथम पूज्य होंगे-
अस्मिन्नपूजिते देवाः परपूजा कृता यदि।
तदा तत्फलहानिः स्यान्नात्र कार्या विचारणा।। रु-कु-18-24
यदि कोई गणेश जी की पूजा किए बिना अन्य देवताओं की पूजा करेगा तो उसे पूजा का
फल प्राप्त नहीं होगा, इसमें संदेह नहीं है ।
फिर सबसे पहले शिव जी ने सभी मांगलिक वस्तुएं मगाकर गणेश जी की पूजा
की, फिर विष्णु ने फिर पार्वती उनके बाद अन्य सभी देवताओं ने
बड़े आदर से इनकी पूजा की। फिर सब देवताओं ने एक स्वर में गणेश जी को सर्वाध्यक्ष
बना कर अनेकों कर दिए।
ब्रह्मा जी बोले- उस समय भगवती इतनी प्रसन्न हुई कि उनकी प्रसन्नता
का वर्णन मैं चारों मुखों से भी नहीं कर सकता । सब देवता शिव पार्वती और गणेश जी
की बारंबार प्रशंसा करते हुए अपने अपने स्थान को गए।
पार्वती जी कोप हीन हो गई और शिव जी पूर्ववत उनके समीप जा बैठे ।
ब्रह्मा और विष्णु जी भी शंकर जी से आज्ञा लेकर अपने-अपने लोक को चले गए।
बोलिए गणेश भगवान की जय
( गणेश जी की परिक्रमा )
गणेश जी माता पिता के पालन करने से दिन-रात बढ़ने लगे और बड़ी
प्रीति से सर्वदा खेल-कूद करने लगे। कुमार भी साथ ही थे दोनों पुत्र भक्ति पूर्वक
माता पिता की सेवा करते हुए परस्पर प्रेम को प्राप्त करते। एक समय जब शिव पार्वती
प्रेम पूर्वक एकांत में बैठे शुभ विचार कर रहे थे कि-
विवाह योग्यौ संजातौ सुताविति च तावुभौ।
अब हमारे यह पुत्र विवाह के योग्य हो गए हैं, अब दोनों
पुत्रों का शुभ विवाह करा दिया जावे । तब माता-पिता की इस इच्छा को जानकर दोनों
कुमारों ने एक साथ ही विवाह की इच्छा प्रकट करते हुए कहा- कि पहले मैं विवाह
करूंगा! पहले मैं विवाह करूंगा ! ऐसा कह कर दोनों परस्पर विवाद करने लगे।
शिव पुराण कथा Shiv Puran Kathanak
जगतवंद्य शंकर पार्वती लोकाचार की दृष्टि से परम आश्चर्य चकित हुए ।
उन्होंने सोचा किस प्रकार दोनों का विवाह किया जावे ? यह
विचार कर दोनों ने एक अद्भुत युक्ति निकाली- एक समय शिवा शिव ने उन्हें बुलाकर कहा
देखो हमने तुम दोनों के सुख के लिए एक नियम किया है।
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