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शिव पुराण कथा Shiv Puran Kathanak 54

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शिव पुराण कथा Shiv Puran Kathanak 54

शिव पुराण कथा Shiv Puran Kathanak 54

 शिव पुराण कथा Shiv Puran Kathanak

   शिव पुराण कथा भाग-54  

shiv puran pdf शिव पुराण हिंदी में

अब मैं श्वेत कल्प में जिस प्रकार गणेश जी का जन्म हुआ था उसे कह रहा हूं। जिसमें कृपालु शंकर ने ही उनका शिरोछेदन किया था।
हे मुने शंकर जी सृष्टि कर्ता हैं इस विषय में संदेह नहीं करना चाहिए। वह सगुण होते हुए भी निर्गुण है। अब आदर पूर्वक चरित्र को सुनिए- शिवजी विवाह के उपरांत जब कैलाश पर गए तो कुछ समय व्यतीत होने पर गणेश का जन्म हुआ।

एक समय की बात है जया और विजया नामक पार्वती की दो सखियों ने परस्पर विचार कर पार्वती जी से कहा - कि शंकर जी के द्वार पर जो गण खड़े रहते हैं, उन पर अधिकार होते हुए भी कुछ अधिकार नहीं है हमारा । क्योंकि हमारा मन उनसे नहीं मिलता।

अतः हे भगवती एक हमारा भी कोई गण होना चाहिए, आप उसकी रचना करिए। देवी पार्वती को सखियों की यह बात प्रिय लगी और उन्होंने उसकी रचना की इच्छा की ।

जब एक समय पार्वती स्नान कर रही थी और नंदी द्वार पर बैठा हुआ था, तब उनके मना करने पर भी शिवजी हटात मंदिर में प्रवेश कर गए, जिससे लज्जित हो जगदंबिका तुरंत उठ बैठी । तब उन्हें अपनी सखी का वचन याद आया और परमेश्वरी ने अपना कोई एक अत्यंत श्रेष्ठ सेवक की आवश्यकता लगी।
उन्होंने सोचा कि मेरा कोई ऐसा सेवक हो जो मेरी आज्ञा से कभी विचलित ना हो। तब भगवती ने-
विचार्येति च सा देवी वपुषो मल संभवम्।
पुरुषं निर्ममौ सा तु सर्व लक्षण संयुतम्।। रु-कु-13-20
इस प्रकार विचार कर देवी ने अपने शरीर के मैल से सर्व लक्षण संपन्न समस्त सुंदर अंगों वाले पुत्र गणेश को प्रकट किया और पार्वती जी ने उसे अनेक प्रकार के वस्त्रों से सजा कर आशीर्वाद दिया कि तुम मेरे प्रिय पुत्र हो।

 शिव पुराण कथा Shiv Puran Kathanak

गणेश जी ने कहा माताजी मेरे लिए क्या आज्ञा है ? पार्वती जी ने कहा तुम मेरे द्वार रक्षक बनो, मेरी आज्ञा के बिना कोई कैसा भी क्यों ना हो घर के भीतर ना आने पावे। कितना भी कोई हट क्यों ना करे। ऐसा कह कर पार्वती जी ने गणेश जी के हाथ में एर लकड़ी दे दी और प्रेम पूर्वक द्वार पर बिठा दिया ।

वह लकड़ी ले गणेश जी माता के हितार्थ द्वार पर जा बैठे, तब पार्वती जी फिर जा स्नान करने लगी । इसी समय अनेक प्रकार की लीलाएं करने में प्रवीण वे शिव जी द्वार पर आ पहुंचे । तब गणेश ने उन शिवजी को बिना पहचाने कहा- हे देव इस समय माता की आज्ञा के बिना आप भीतर नहीं जा सकते, माता जी स्नान कर रही हैं और उन्हें रोकने के लिए द्वार में अपनी लाठी लगा दिए।

उसे देखकर शिवजी बोले तुम किसे मना कर रहे हो ? तुम मुझे नहीं जानते मैं शिव हूं कोई दूसरा नहीं। इस प्रकार शिवजी बोलकर हट पूर्वक अंदर जाने लगे तो, गणेश जी ने उन पर लाठी से प्रहार किया। तब लीला करने वाले शिवजी कुपित होकर पुत्र से कहा-
स्वगृहं यामि रे बाल निषेधसि कथं हि माम्।
हे बालक मैं तो अपने ही घर जा रहा हूं , तुम मुझे मना क्यों करते हो ? ऐसा बोलकर महादेव पुनः घर में प्रवेश करने के लिए बड़े तो, गणनायक गणेश ने क्रोध करते हुए पुनः डंडे से प्रहार किया।
तब महादेव क्रोधित होकर गणों से कहा-
को वायं वर्तते किं च क्रियते पश्यतां गणाः।
हे गणों देखो यह कौन है ? और यहां क्या कर रहा है ? वह गणेश जी की आज्ञा से वहां जाकर द्वारपाल से उसका परिचय पूछने लगे और कहने लगे यदि तू जीना चाहता है तो यहां से दूर हो जा। परंतु गणेश जी बोले तुम हट जाओ मैं नहीं हटने वाला ।

 शिव पुराण कथा Shiv Puran Kathanak

शिव जी के गण भगवान के पास लौट कर सब बात बताएं कि वह कहता है कि मैं पार्वती का पुत्र हूं कदापि नहीं हट सकता । तब शिवजी अपने गणों को भी डाटा कि तुम लोग जाकर उसे हटाओ शीघ्र। गण फिर से पहुंचकर गणेश जी को हटाने के लिए धमकाने लगे, इतने में द्वार पर हल्ला सुनकर पार्वती ने अपनी एक सखी को भेजा कि देख वहां क्या हो रहा है ?

सखी ने देखकर हर्षित हो पार्वती से सब वृत्तांत कहा और कहा अच्छा हुआ जो उन्होंने घर के अंदर आने नहीं दिया। अन्यथा शिवजी तो हमेशा बिना कहे सुने अंदर घुस आया करते थे।
देवी आपको अपना मान नहीं छोड़ना चाहिए । पार्वती जी ने कहा ठीक है, परंतु यह भी तो देखो सखी क्षण भर भी मेरे पुत्र को द्वार पर खड़े नहीं हुए हुआ कि आकर शिवगण उसे छेड़ने लगे, तो फिर मैं विनय और नम्रता क्यों अपनाउं ? जो होगा देखा जाएगा।

 शिव पुराण कथा Shiv Puran Kathanak

इधर बहुत प्रयास करने पर भी शिव गण गणेश जी को द्वार से ना हटा सके, तब वह लौटकर भगवान शंकर के पास गए। यह सुनकर शिवजी लौकिकी गति का आश्रय ले अपने गणों से बोले- वह अकेला गण तुम सबके आगे क्या पराक्रम दिखाएगा ?

हट करके पार्वती उसका फल अवश्य प्राप्त करेगी । इसलिए हे वीरो तुम सब मेरी बात सुनो, तुम लोग अवश्य युद्ध करो । जो होनी होनी होगी वह तो होकर ही रहेगी, ऐसा कह कर के महादेव चुप हो गए।

 शिव पुराण कथा Shiv Puran Kathanak

शिव पुराण कुमारखंड
( शिव गणों से गणेश का युद्ध )
ब्रह्मा जी बोले- हे नारद सभी शिवगण आदेश पाकर शिव जी का, गणेश से युद्ध करने को आ गए। इधर गणेश जी भी तैयारी कर रखे थे और उन्होंने शिव गणों से कहा- तुम लोग कई गण हो लेकिन मैं अकेला शिवा की आज्ञा का पालन करूंगा । आज तुम सब मुझ अकेले पार्वती पुत्र का बल देखो ?

यह सुन शिव जी के गण अनेक प्रकार के आयुध ले उन पर टूट पड़े, अकेले गणेश जी शिवजी के असंख्य गणों से युद्ध करने लगे। परंतु शिवजी का कोई भी गण उन्हें युद्ध में परास्त ना कर सका और उन अकेले ने ही सब को मार कर भगा दिया ।

गणेश जी लौटकर फिर द्वार पर खड़े हो गए । नारद जी की प्रेरणा से विष्णु आदि सभी देवता शिव जी के पास गए स्तुति कर युद्ध का कारण पूछा ? तब शिवजी ने कहा मेरे मंदिर के द्वार पर एक बलवान बालक हाथ में लकड़ी लिए उपस्थित है , जो घर में जाता है उसे वह जाने नहीं देता ।
यदि ब्रह्मा चाहे तो जाकर इस क्लेश को दूर करें- यह सुन शिवजी के माया से मोहित ब्रह्मा कुछ ऋषियों को साथ ले उस बालक के पास गए । ब्रह्मा जी को आते देख कर बालक गणेश क्रोध वश-
क्रोधं कृत्वा समभ्येत्य ममश्मश्रूण्य वाकिरत्।
ब्रह्मा बाबा के पास जाकर उनकी दाढ़ी नोचने लगे। तब ब्रह्माजी बोले-
क्षम्यतां क्षम्यतां देव न युद्धार्थं समागतः।
हे देव छमा कीजिए मैं युद्ध के लिए नहीं आया हूं, मैं ब्राह्मण हूं। मेरे ऊपर कृपा करो ऐसा बोल ही रहे थे कि गणेश जी ने मारने के लिए परिघ उठा लिया तब ब्रह्मा बाबा वहां से भागे और सारी घटना जाकर महादेव से कही। उसे सुन लीला विशारद शंकर को क्रोध हुआ उन्होंने इंद्र आदि देवताओं और अपने भूत बेताल आदि गणों को गणेश जी से युद्ध करने की आज्ञा दी।

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परंतु कार्तिकेय वीरों सहित शिवजी के सब गणों का प्रयास व्यर्थ रहा ,अकेले गणेश ने युद्ध कौशल से सब के छक्के छुड़ा दिए। तब सभी गण शिव जी के पास गए। तब क्रोधित हो महादेव स्वयं वहां आ गए और चक्रधारी विष्णु की भी संपूर्ण सेना उनके पीछे चली।
बीच मार्ग में नारद जी भी मिल गए बोले- महादेव जैसे भी हो देवताओं और शिव गणों की मर्यादा रखिए। ऐसा कह वे वहीं अंतर्ध्यान हो गए।

( गणेश जी का सिर कटना )
इधर विष्णू आदि देवताओं के साथ महादेव स्वयं युद्ध करने आ गए, शिव जी अपनी सेना के साथ बहुत काल तक उस बालक से युद्ध करते रहे। गणेश जी ने देवताओं पर परिघ अस्त्र का प्रयोग किया, तब वह त्रिशूल लेकर शिव जी गणेश को मारने के लिए दौड़े।

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