शिव पुराण कथा Shiv Puran Kathanak
उनकी ऐसी स्तुति सुनकर स्वामी कार्तिकेय जी ने अपने वीरबाहु
नामक गण को उस ब्राह्मण के यज्ञ को पूर्ण करने के लिए आज्ञा दी। वह महावीर गण उसको
ढूंढने चला, लेकिन उसका मात्र उपद्रव ही सुनने में आता वह नहीं मिलता । तब
वह गण विष्णु लोक में गया वहां उसको उपद्रव मचाते देखा तभी उसे पकड़कर स्वामी
कार्तिकेय के पास लाया
तब वह सारे संसार का भार लिए उसके ऊपर चढ़ गए ,वह उन्हें लेकर त्रिलोक की परिक्रमा करने लगा एक ही मुहूर्त में वह
त्रिलोकी को घुमाकर आ गया। स्वामी उसकी पीठ से उतर अपने आसन पर जा विराजे । अज
वहीं खड़ा रहा। तब ब्राह्मण ने कहा आप मुझे दे दें मैं यज्ञ पूर्ण करूं।
कुमार ने कहा- हे विप्र यह अज वध के योग्य नहीं है । आप अपने घर
जाइए मैं प्रसन्नता से यह वर देता हूं कि आपका यज्ञ पूर्ण होगा।
शिव पुराण कथा Shiv Puran Kathanak
( युद्ध आरंभ वर्णन )
कार्तिकेय के इस चरित्र को देखकर विष्णु आदि देवताओं के मन में
विश्वास हो गया और वे परम प्रसन्न हो गए। शिवजी के तेज से प्रभावित होकर भी उछलते
तथा सिंहनाद करते हुए कुमार को आगे कर तारकासुर का वध करने हेतु चल पड़े।
महाबली तारकासुर ने भी देवताओं के उद्योग को सुनकर बड़ी सेना के साथ
देवताओं से युद्ध करने के लिए शीघ्र प्रस्थान किया। देव गणों ने तारकासुर की बहुत बड़ी
सेना देखकर अत्यंत बलपूर्वक सिंहनाद करते हुए आश्चर्यचकित कर दिया।
उसी समय ऊपर से बड़ी शीघ्रता के साथ शिव जी द्वारा प्रेरित आकाशवाणी
ने समस्त विष्णु आदि देवताओं से शीघ्र कहा-
कुमारं च पुरस्कृत्य सुरायूयं समुद्यताः।
दैत्यान् विजित्य संग्रामे जयिनोऽथ भविष्यथ।। रु-कु-7-6
हे देवगण आप लोग जो कुमार को आगे करके युद्ध करने के लिए उद्यत हैं। इससे आप
लोग संग्राम में दैत्यों को जीतकर विजयी होंगे। आकाशवाणी को सुनकर सभी देवताओं में
अत्यंत उत्साह भर गया और वह वीरों की भांति गर्जना करते हुए उस समय निर्भय हो गए।
इस प्रकार भय से रहित एवं युद्ध की इच्छा वाले वे सभी देवता कुमार
को आगे करके महीसागर संगम पर गए। बहुत से असुरों से घिरा हुआ वह तारक भी जहां
देवता थे वहां पर अपनी बहुत बड़ी सेना के साथ शीघ्र ही आ गया। बादलों के समान रण
दुन्दुभि तथा और भी वाद्य बजने लगे, पृथ्वी को कंपित करने
वाला देवताओं और तारक के दैत्यों का युद्ध आरंभ हुआ।
शिव पुराण कथा Shiv Puran Kathanak
चरण और जंघाओं में प्रहार होने लगे, इसी समय
दोनों पक्षों में भयानक युद्ध आरंभ किया। क्षण मात्र में पृथ्वी खंड मुंडो में
व्याप्त हो गई। सैकड़ों तथा हजारों वीर कट कट कर पृथ्वी पर गिरने लगे, कबन्ध नाचने लगे। रक्त की नदियां बहने लगी।
विष्णु जी से तारक का बहुत भीषण युद्ध हुआ लेकिन वह वीर तारक भयभीत
न हुआ, उस समय ब्रह्मा जी ने कार्तिकेय से कहा- हे देव मैंने
तारक को वर दिया है जिससे विष्णु आदि देवताओं से यह नहीं मारे मरेगा। अतः आप ही
इसका वध करो । तब कुमार तारक से युद्ध करने के लिए बढे। कुमार को देखकर तारकासुर
हंसने लगा और बोला-
कुमारो मेऽग्रतश्चाद्य भवद्भिश्च कथं कृतः।
यूयं गतत्रपा देवा विशेषाच्छक्र केशवौ।। रु-कु-9-16
हे देवगणों तुम लोगों ने इस बालक कुमार को मेरे आगे कैसे कर दिया ? तुम सब बड़े निर्लज्ज, इन्द्र और विष्णु तो विशेष
रूप से लज्जा से हीन हैं। तारकासुर कुमार से बोला- बालक मैं तुमको अवसर देता हूं
तुम प्राणों को बचा लो यहां से भाग जाओ ।
कुमार ने कहा- दुष्ट तूने बहुत अत्याचार कर लिया आज तू इस बालक के
द्वारा ही मारा जाएगा। तब तो तारकासुर और कुमार का भयानक युद्ध हुआ दोनों वीर हांथ
में शक्ति लेकर परस्पर युद्ध करने लगे। दोनों अंग प्रत्यंग से घायल हो गए, सब देवता और गंधर्व बैठकर संग्राम देखने लगे और आपस में कहने लगे कि देखते
हैं किसकी विजय होती है ?
शिव पुराण कथा Shiv Puran Kathanak
कार्तिकेय ने शीघ्र ही तारक की छाती पर अपनी शक्ति चला दी, इसके उत्तर में तारक ने भी कुमार पर अपनी शक्ति छोड़ी उसके आघात से शंकर
पुत्र मूर्छित हो गये । परंतु महर्षियों से प्रार्थित होते ही क्षण मात्र में ही
उठ बैठे । सिंह के समान गर्जना कर फिर उस पर अपनी शक्ति छोडी।
दोनों ने शक्ति से एक दूसरे को आघात पहुंचाया फिर कुमार ने माता
पार्वती और भगवान शंकर का ध्यान कर अपनी दूसरी प्रबल शक्ति से तारक के छाती में
प्रहार किया जिससे वह शीघ्र ही विदीर्ण होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा और उसका प्राणांत
हो गया ।
देवता विजई हुए तीनों लोकों में आनंद छा गया, विजयी
कुमार अपने गणों के साथ माता पार्वती के पास आए। पार्वती जी स्नेहपूर्वक कुमार को
अपनी गोद में बिठाकर स्नेह करने लगी। देवता लोग फूल बरसाकर अभिवादन किये। ढोल
नगाड़े मृदंग बजने लगे। देवताओं और गणों ने उनकी स्तुति की। फिर भगवान शंकर भवानी
के साथ कैलाश को चले गए ।
बोलिए शंकर भगवान की जय
( कार्तिकेय द्वारा बाण तथा प्रलम्ब आदि असुरों का वध )
ब्रह्माजी बोले- नारद जी इसी समय बाणासुर नामक दैत्य से पीड़ित
क्रौंच पर्वत ने कुमार के पास आकर उनकी स्तुति की और कहा हे प्रभो-
पाहि मां शरणापन्नं बाणासुरनिपीडितम्।
मुझे बाणासुर बड़ा कष्ट दे रहा है आप मेरी रक्षा कीजिए । तब क्रौंच
की स्तुति से प्रशन्न हो स्कन्द जी उन्हें सांत्वना दी और शिव जी का ध्यान कर वहीं
से बैठे-बैठे बाण के लिए एक शक्ति छोड़ी जो बांण को भस्म कर शीघ्र ही कुमार के पास
लौट आई ।
तब क्रौंच प्रशन्न होकर अपने घर लौट गया वहां जाकर उसने शंकर जी की
स्थापना की।
प्रतिज्ञेश्वर नामादौ कपालेश्वर मादरात्।
कुमारेश्वर मेवाथ सर्वसिद्धि प्रदं त्रयम्।। रु-कु-11-14
प्रथम का प्रतिज्ञेश्वर, दूसरे का नाम कपालेश्वर और तीसरे का नाम
कुमारेश्वर यह तीनों सभी सिद्धियां देने वाले हैं । एक बार देव गुरु बृहस्पति को
आगे कर सब देवताओं ने कैलाश में जाने कि इच्छा की तो वहां प्रलम्बासुर नामक दैत्य
उपद्रव करने लगा ।
उससे पीड़ित होकर शेष जी का पुत्र कुमुद कुमार की शरण आया। गिरजा
पुत्र की उसने बड़ी स्तुति की कुमार प्रसन्न हो शक्ति चलाकर प्रलम्ब का संघार कर
दिया। वह असुर अपने अनुचरों सहित मारा गया । शेष पुत्र कुमुद शिव पुत्र कार्तिकेय
की स्तुति कर अपने घर चला गया।
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( कार्तिक स्वामी का कैलाश जाना )
विष्णु आदि सब देवता परमोत्सव कर कुमार को कैलाश चलने की
प्रेरणा देने लगे । कुमार एक दिव्य विमान पर बैठकर शिव जी की जय जयकार करते हुए
उनके पास गए। तब शिव पार्वती कुमार को बहुत स्नेह किये और उनको अपने गोद में
बिठाकर दुलार करने लगे।
बोलिए शाम्ब सदाशिव भगवान की जय
( गणेश चरित्र )
सूत जी बोले- तारक के शत्रु कुमार के अद्भुत तथा उत्तम चरित्रों को
सुनकर प्रसन्न हुए नारद जी ब्रह्मा जी से प्रीति पूर्वक पूंछा-
अधुना श्रोतुमिच्छामि गाणेशं वृत्तमुत्तमम्।
तज्जन्मचरितं दिव्यं सर्वमंगलमंगलम्।। रु-कु-13-3
अब मैं गणेश जी का उत्तम चरित्र सुनना चाहता हूं ,उनका जन्म एवं चरित्र दिव्य तथा सभी मंगलों का भी मंगल करने वाला है। उन महा
मुनि नारद का यह वचन सुनकर ब्रह्मा जी प्रसन्न होकर शिवजी का स्मरण कर कहने लगे-
कल्पभेदाद् गणेशस्य जनिः प्रोक्ता विधेः परात्।
शनिदृष्टं शिरश्छिन्नं संचितं गाजमाननम्।। रु-कु-13-5
कल्पभेद से गणेश जी का जन्म ब्रह्मा जी से भी पहले कहा गया है। एक समय शनि की
दृष्टि पड़ने से उनका सिर कट गया और उन पर हाथी का सिर जोड़ दिया गया।
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