॥ स्वस्तिवाचनम् ॥ मन्त्र अर्थ सहित swasti vachan meaning in hindi

 ॥ स्वस्तिवाचनम् ॥ मन्त्र अर्थ सहित swasti vachan meaning in hindi

॥ स्वस्तिवाचनम् ॥

स्वस्ति का तात्पर्य है कल्याणकारी, वाचन अर्थात् वचन बोलना । सभी के कल्याण की कामना करते हुये प्रत्येक परिजन दायें हाथ में अक्षत, पुष्प, जल लें, बायाँ हाथ नीचे लगायें । मन्त्र पूरा हो जाने पर माथे से लगाकर पूजा की तश्तरी पर रख लें |

ॐ गणानां त्वा गणपति गुंग हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपति गुंग  हवामहे निधीनां त्वा निधिपति गुंग  हवामहे वसो मम । आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम् ॥ 23.19

अर्थात्- हे गणों के बीच रहने वाले सर्वश्रेष्ठ गणपते! हम आपका आवाहन करते हैं। हे प्रियों के बीच रहने वाले प्रियपते! हम आपका आवाहन करते हैं निधियों के बीच रहने वाले सर्वश्रेष्ठ निधिपते! हम आपका आवाहन करते हैं हे जगत् को बसाने वाले! आप हमारे हों । आप समस्त जगत् को गर्भ में धारण करते हैं, पैदा ( प्रकट) करते हैं, आपकी इस क्षमता को हम भली प्रकार जानें ।

ॐ स्वस्ति नऽ इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः । स्वस्तिनस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु -25.19

अर्थात्- महान् ऐश्वर्यशाली, इन्द्रदेव हमारा कल्याण करें, सब कुछ जानने वाले पूषादेवता हमारा कल्याण करें, अनिष्ट का नाश करने वाले गरुड़ देव हमारा कल्याण करें तथा देवगुरु बृहस्पति हम सबका कल्याण करें ।

ॐ पयः पृथिव्यां पय ऽ ओषधीषु पयो दिव्यन्तरिक्षे पयो धाः । पयस्वतीः प्रदिशः सन्तु मह्यम् ॥-18.36

अर्थात्- हे अग्ने! आप इस पृथ्वी पर समस्त पोषक रसों को स्थापित करें। ओषधियों में जीवन रूपी रस को स्थापित करें | धुलोक में दिव्य रस को स्थापित करें । अन्तरिक्ष में श्रेष्ठ रस को स्थापित करें । हमारे लिए ये सब दिशाएँ एवं उपदिशाएँ अभीष्ट रसों को देने वाली हों ।

ॐ विष्णो रराटमसि विष्णोः श्रप्त्रेस्थो विष्णोः स्यूरसि विष्णोध्रुवोऽसि वैष्णवमसि विष्णवे त्वा I-5.21

अर्थात्- भगवान् विष्णु (सर्वव्यापी परमात्मा) का प्रकाश फैल रहा है, उन (विष्णु) के द्वारा यह जगत् स्थिर है तथा विस्तार को प्राप्त हो रहा है, सम्पूर्ण जगत् परमात्मा से व्याप्त है, उन (विष्णु) के द्वारा यह जड़-चेतन दो प्रकार का जगत् उत्पन्न हुआ है, उन्हीं भगवान् विष्णु के लिए यह देवकार्य किया जा रहा है ।

ॐ अग्निर्देवता वातो देवता सूर्यो देवता चन्द्रमा देवता वसवो देवता रुद्रा देवता Sदित्या देवता मरुतो देवता विश्वेदेवा देवता बृहस्पतिर्देवतेन्द्रो देवता वरुणो देवता ॥ - 14.20

अर्थात्- अग्निदेवता, वायुदेवता, सूर्यदेवता, चन्द्रमादेवता, आठों वसु देवता, ग्यारह रुद्रगण, बारह आदित्यगण, उनचास मरुद्गण, नौ विश्वेदेवागण, बृहस्पतिदेवता, इन्द्रदेवता और वरुणदेवता आदि सम्पूर्ण दिव्य शक्तिधाराओं को हम अभीष्ट प्रयोजन की पूर्ति के लिए स्थापित करते हैं ।

ॐ द्यौः शान्तिरन्तरिक्ष गुंग  शान्तिः पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः । वनस्पतयः शान्तिर्विश्वेदेवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः सर्व गुंग शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सामा शान्तिरेधि ॥ 36.17

द्युलोक (स्वर्ग), अर्थात्अन्तरिक्षलोक तथा पृथिवीलोक हमें शान्ति प्रदान करे । जल शान्ति प्रदायक हो, ओषधियाँ तथा वनस्पतियाँ शान्ति प्रदान करने वाली हों । विश्वेदेवागण शान्ति प्रदान करने वाले हों । ब्रह्म (सर्वव्यापी परमात्मा) सम्पूर्ण जगत् में शान्ति स्थापित करे, शान्ति ही शान्ति हो, शान्ति भी हमें परम शान्ति प्रदान करे।

ॐ विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परा सुव । यद्भद्रं तन्न ऽ आ सुव । ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः || सर्वारिष्टसुशान्तिर्भवतु 1-30.3

अर्थात्- हे सर्व-उत्पादक सवितादेव! आप हमारी समस्त बुराइयों (पाप कर्मों) को दूर करें तथा हमारे लिए जो कल्याणकारी हो, उसे प्रदान करें ।

 ॥ स्वस्तिवाचनम् ॥ मन्त्र अर्थ सहित swasti vachan meaning in hindi

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