अविभक्तं च भूतेषु विभक्त - bhagavad gita in hindi shlok
उसके जान लेनेके बाद ज्ञात- ज्ञातव्य, प्राप्त प्राप्तव्य होकर कृतकृत्यता हो जाती है, अर्थात् न कुछ जानना बाकी रह जाता है और न पाना बाकी रहता है, न करना ही बाकी रहता है। वह ज्ञेय-तत्त्व -
अविभक्तं च भूतेषु विभक्तमिव च स्थितम् ।
भूतभर्तृ च तज्ज्ञेयं प्रसिष्णु प्रभविष्णु च ॥
१३ । १६) -
अनेक आकारोंके विभक्त प्राणियोंमें अविभक्त है अर्थात् विभागरहित एक ही तत्त्व विभक्तकी तरह प्रतीत होता है। अनेक व्यक्तियोंमें सत्ता स्फूर्ति प्रदान करनेवाला एक ही तत्त्व विद्यमान है। वही जगत्की उत्पत्ति करनेवाला होनेके कारण ब्रह्मा कहलाता है, पालन करनेवाला होनेके कारण विष्णु कहलाता है और संहार करनेवाला होनेके कारण महादेवरूपसे विराजमान हैं।
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