यस्य नाहङ्कतो भावो बुद्धिर्यस्य bhagavad gita in hindi shlok
यस्य नाहङ्कतो भावो बुद्धिर्यस्य न लिप्यते । हत्वापि स इमॉल्लोकान्त्र हन्ति न निबध्यते ॥ (गीता १८ | १७)
कारकोंमें कर्ता, कर्म, करण और अधिकरण-ये चारों तो क्रियामें विकृत (परिणत) होते हैं, पर सम्प्रदान और अपादान क्रियामें विकृत नहीं होते, प्रत्युत क्रियामें सहायकमात्र होते हैं, इसलिये इनमें कर्मकर्तृप्रयोग नहीं होता।
जैसे, 'सुपात्रको दान दिया' – यह सम्प्रदान कारक है। दान देनेसे दान लेनेवालेमें कोई विकृति नहीं आती। यदि कोई लेनेवाला न हो तो दान सिद्ध नहीं होता, इसलिये दानमें सहायक होनेसे इसको कारक कहा गया है। ऐसे ही 'गाँवसे आया' - यह अपादान कारक है। गाँवसे आनेपर गाँवमें कोई विकृति नहीं आती। परन्तु आनेमें सहायक होनेसे इसको कारक कहा गया है।
कर्म चार प्रकारके होते हैं-उत्पाद्य, विकार्य, संस्कार्य और आप्य [ कहीं-कहीं निर्वर्त्य, विकार्य और प्राप्य – ये तीन प्रकार बताये गये हैं ] । इनमेंसे 'आप्य' कर्ममें भी कोई विकृति नहीं आती; जैसे- 'मैंने धन प्राप्त किया' तो धनमें कोई विकृति नहीं आयी।
कर्म चार प्रकारके होते हैं-उत्पाद्य, विकार्य, संस्कार्य और आप्य [ कहीं-कहीं निर्वर्त्य, विकार्य और प्राप्य – ये तीन प्रकार बताये गये हैं ] । इनमेंसे 'आप्य' कर्ममें भी कोई विकृति नहीं आती; जैसे- 'मैंने धन प्राप्त किया' तो धनमें कोई विकृति नहीं आयी।
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