रामायण की सर्वश्रेष्ठ चौपाई ramayan best chaupai
'यतो वाचो निवर्तन्ते अप्राप्य मनसा सह' (तैत्तिरीय० २।९),
'मन समेत जेहि जान न बानी । तरकि न सकहिं सकल अनुमानी ॥' (मानस १ । ३४१ । ४) ।
जहाँ वर्णन है, वहाँ तत्त्व नहीं है और जहाँ तत्त्व है, वहाँ वर्णन नहीं है।
उस तत्त्वकी तरफ लक्ष्य नहीं है, इसलिये केवल उसका लक्ष्य करानेके लिये ही उसका वर्णन किया जाता है। परन्तु जब उसका लक्ष्य न करके कोरा सीख लेते हैं, तब वर्णन-हीवर्णन होता है, तत्त्व नहीं मिलता। उसका लक्ष्य रखकर वर्णन करनेसे वर्णन तो नहीं रहता, पर तत्त्व रह जाता है।
उस तत्त्वकी तरफ लक्ष्य नहीं है, इसलिये केवल उसका लक्ष्य करानेके लिये ही उसका वर्णन किया जाता है। परन्तु जब उसका लक्ष्य न करके कोरा सीख लेते हैं, तब वर्णन-हीवर्णन होता है, तत्त्व नहीं मिलता। उसका लक्ष्य रखकर वर्णन करनेसे वर्णन तो नहीं रहता, पर तत्त्व रह जाता है।
तात्पर्य है कि उसका वर्णन करते-करते जब वाणी रुक जाती है, उसका चिन्तन करते-करते जब मन रुक जाता है, तब स्वतः वह तत्त्व रह जाता है और प्राप्त हो जाता है। वास्तवमें वह पहलेसे ही प्राप्त था, केवल अप्राप्तिका वहम मिट जाता है ।
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