वाल्मीकि रामायण ज्ञानवर्धक श्लोक अर्थ सहित
सर्वे क्षयान्ता निचयाः पतनान्ताः समुच्छ्रयाः ।
संयोगा विप्रयोगान्ता मरणान्तं च जीवितम् ॥
(वाल्मीकि २।१०५ | १६)
'समस्त संग्रहोंका अन्त विनाश है, लौकिक उन्नतियोंका अन्त पतन है, संयोगोंका अन्त वियोग है और जीवनका अन्त मरण है।'
जिसका वियोग हो जायगा, उसके संयोगसे सुख कैसे लिया जाय ? उसके वियोगसे हम दुःखी क्यों हों ? न सुख रहनेवाला है और न दुःख रहनेवाला है। आप रहनेवाले हैं। रहनेवाला आने-जानेवालेसे सुखी- दुःखी होता है तो उसकी मूर्खता ही है।
जो कभी नष्ट नहीं होता और जो अभी मौजूद है, उस परमात्माकी प्राप्तिसे ही सदा रहनेवाला सुख मिलेगा। उस परमात्माके सिवाय मानमें, सम्मानमें, बड़ाईमें, आराममें, रुपये-पैसेमें, कुटुम्बमें, धनमें कहीं भी आप सन्तोष करेंगे तो आपके साथ विश्वासघात होगा।
जिसका वियोग हो जायगा, उसके संयोगसे सुख कैसे लिया जाय ? उसके वियोगसे हम दुःखी क्यों हों ? न सुख रहनेवाला है और न दुःख रहनेवाला है। आप रहनेवाले हैं। रहनेवाला आने-जानेवालेसे सुखी- दुःखी होता है तो उसकी मूर्खता ही है।
जो कभी नष्ट नहीं होता और जो अभी मौजूद है, उस परमात्माकी प्राप्तिसे ही सदा रहनेवाला सुख मिलेगा। उस परमात्माके सिवाय मानमें, सम्मानमें, बड़ाईमें, आराममें, रुपये-पैसेमें, कुटुम्बमें, धनमें कहीं भी आप सन्तोष करेंगे तो आपके साथ विश्वासघात होगा।
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