रामायण की सर्वश्रेष्ठ चौपाई ramayan best chaupai

 रामायण की सर्वश्रेष्ठ चौपाई ramayan best chaupai

अतः वह तत्त्व स्वयं ही स्वयंका ज्ञाता है— 

विषय करन सुर जीव समेता। सकल एक तें एक सचेता ॥ 
सब कर परम प्रकासक जोई। राम अनादि अवधपति सोई॥
(मानस १।११७१३) 

प्रकृतिके सम्बन्धके बिना तत्त्वका चिन्तन, मनन आदि नहीं हो सकता। अतः तत्त्वका चिन्तन करेंगे तो चित्त साथ में रहेगा, मनन करेंगे तो मन साथमें रहेगा, निश्चय करेंगे तो बुद्धि साथमें रहेगी, दर्शन करेंगे तो दृष्टि साथमें रहेगी, श्रवण करेंगे तो श्रवणेन्द्रिय साथमें रहेगी, कथन करेंगे तो वाणी साथमें रहेगी। 

ऐसे ही 'है' को मानेंगे तो मान्यता तथा माननेवाला रह जायगा और 'नहीं' का निषेध करेंगे तो निषेध करनेवाला रह जायगा । कर्तृत्वाभिमानका त्याग करेंगे तो मैं कर्ता नहीं हूँ' – यह सूक्ष्म अहंकार रह जायगा अर्थात् त्याग करनेसे त्यागी (त्याग करनेवाला) रह जायगा। 

इसलिये न मान्यता करें, न निषेध करें; न ग्रहण करें, न त्याग करें, प्रत्युत जैसे हैं, वैसे रहें अर्थात् 'है' में स्थिर होकर बाहर-भीतरसे चुप हो जायँ । चुप होना है- यह आग्रह (संकल्प) भी न रखें, नहीं तो कर्तृत्व आ जायगा; क्योंकि चुप स्वतः सिद्ध है।

रामायण की सर्वश्रेष्ठ चौपाई ramayan best chaupai

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