श्री राम कथा हिंदी part-2 ram katha hindi
दुखी भयउँ
वियोग प्रिय तोरे।
सती वियोग से अर्थात दुख से मुक्त
शिवजी तभी हुए जब उन्होंने राम कथा श्रवण की तब उन्हें शांति मिली।
नाना भाँति
राम अवतारा। रामायन सत कोटि अपारा।।
संसार में राम कथा की कोई सीमा नहीं
है, कथाएं अनंत हैं। 100 करोड़ कहें अथवा अपार रामायण है
फिर भी तुलसी राम कथा लिख रहे हैं क्योंकि कोई तो कारण होगा, रामचरित मानस की रचना करने का निर्देश उन्हें भगवान शिव से मिला।
( श्री रामायण जी का उद्गम- प्रादुर्भाव )
एक समय योगीराज नारद जी दूसरों पर
कृपा करने के लिए समस्त लोकों में बिचरते हुए सत्यलोक पहुंचे वहां मूर्तिमान वेदों
से घिरे हुए सभा भवन में मारकंडेय आदि मुनि जनों से बारंबार स्तुति करते हुए ब्रह्मा जी को साष्टांग प्रणाम किया और भक्ति
भाव से स्तुति की। नारद जी ने ब्रह्मा जी
से कहा कि है अब घोर कलयुग के आने पर मनुष्य पुण्य कर्म छोड़ देंगे और सत्य भाषण
से विमुख होकर दुराचार में प्रवृत्त हो जाएंगे। वे दूसरों की निंदा में तत्पर
रहेंगे,
दूसरों के धन की इच्छा करेंगे अतः इन नष्ट बुद्धियों का परलोक किस
प्रकार सुधरेगा वह आप बतलाइए?
ब्रह्मा जी तब बोले- पूर्व काल में
भक्त वत्सल पार्वती जी ने श्री राम तत्व की जिज्ञासा से भगवान शंकर से विनय पूर्वक
प्रश्न किया था। तब अपनी प्रिया से महादेव जी ने इस गूढ रहस्य का वर्णन किया था।
वह उत्तम रामायण नाम से प्रसिद्ध है-
रचि
महेश निज मानस रखा। पाइ सुसमय सिवा सनभाषा।।
तुलसीदास जी महाराज जिनके द्वारा आज
जगत में वही चरित्र प्रकाशित होकर लोगों को श्री राम सम्मुख कर रहा है। शिव जी ने
इसे रचकर अपने मन में रखा और सुअवसर पाकर पार्वती से कहा।
इसीलिए मैं हृदय से प्रसन्न होकर
इसका नाम रामचरितमानस रखता हूं। मानस की इस परंपरा को आगे बढ़ाते हुए तुलसीदास जी
कहते हैं। शिव जी ने सर्वप्रथम कथा पार्वती को सुनाएं।
यह श्रवण ज्ञान के ज्ञाता तथा श्रोता
के लिए था। भक्ति के रूप में उन्होंने यही चरित्र काक भूसुंडी को सुनाया तथा बाद
में काकभुसुंडी जी ने याग्यवल्क को सुनाया। याज्ञवल्क्य ने इसे भारद्वाज ऋषि को
सुनाया। तुलसी कहते हैं यह परंपरा आगे भी जारी रहेगी।
औरउ
जे हरि भगत सुजाना। कहहिं सुनहिं समुझहिं बिधि नाना।।
और भी जो हरि भक्त सज्जन हैं वह इस
चरित्र को नाना प्रकार से कहते सुनते समझते हैं।
भगवान की कथा में इतने सौभाग्य का
दर्शन हो रहा है इसका प्रमाण क्या है? प्रमाण अगर हम भागवत
महापुराण से देखें- जब राजा परीक्षित को सुखदेव भगवान भागवत कथा सुनाने जा रहे थे
गंगा के पावन तट शुकताल में।
उस समय देवता स्वर्ग का अमृत लेकर के
उनके पास आए और कहने लगे सुखदेव जी राजा परीक्षित को मृत्यु का भय है तो यह स्वर्ग
का अमृत लो इनको पिला दो और बदले में इसके हमको यह कथा अमृत पिला दो। देवताओं ने
यह प्रस्ताव रखा स्वर्ग का अमृत दे दीजिए राजा परीक्षित को और हमको बदले में कथा
अमृत दे दीजिए। सुखदेव जी ने कहा देवताओं से कहा अरे तुम ठगने आए हो हमको और वहां
से भगाया। कहा कि कहां कांच का टुकड़ा और कहाँ मणि। तुम्हारा स्वर्ग का अमृत कांच
का टुकड़ा है और यह भगवान की कथा अमृत मणि से बढ़कर है।
विनिमय लेन देन सामान्य की मूल
वस्तुओं में होता है। तुम कह रहे हो स्वर्ग के अमृत से कथा अमृत का अदला-बदली कर
लें। तुम्हारा स्वर्ग का अमृत दो कौड़ी के कांच के टुकड़े के समान है और यह भगवान
की कथा बहुमूल्य हीरे जवाहरात मणि के समान है इसकी कोई तुलना नहीं है। इसलिए यह
लेनदेन नहीं हो सकता है और देवताओं को वहां से भगा दिया। तो यह हम सब का परम
सौभाग्य है। मनुष्य योनि में जब परमात्मा की विशेष कृपा होती होती है तब यह कथा
यात्रा में हम सबको यात्री बनने का अवसर मिलता है।
इस कलयुग में आप एक चर्चा पूरे
दुनिया में सुनेंगे जहां भी सनातनी रहता है। क्योंकि हिसाब किताब वही करता है।
बाकी लोग हिसाब किताब करते नही हैं। बाकी दुनिया लोग खाओ पियो मौज करो के सिद्धांत
पर चलते हैं। सनातनी जहां भी रहता है वह हिसाब किताब रखता है की जो हम कर्म करते
हैं उसका हिसाब किताब हमको चुकाना पड़ेगा। भोगना पड़ता है।
इस कलयुग में एक चर्चा सर्वत्र चलती
है क्या?
अरे भाई कलयुग है भजन इतना आसान नहीं है । कलयुग है जप तप इतना आसान
नहीं है। प्रत्येक युग में साधना की पद्धति बदल जाती है। सतयुग में लोग ध्यान के
द्वारा भगवान को पाते थे। त्रेता आया तो त्रेता यज्ञ प्रधान युग है त्रेता में
बड़े-बड़े यज्ञ होते थे। द्वापर पूजा प्रधान है। अब कलियुग चल रहा है। कलयुग में
व्रत साधन बहुत कठिन है। बाबा गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी लिखा है-
एहि
कलिकाल ना साधन दूजा। जोग जग्य जप तप व्रत पूजा।।
योग, यज्ञ, जप, तप, व्रत, पूजा यह छयो काम करना कलयुग में बहुत कठिन है। बाबा तुलसी तो युग दृष्टा
संत थे 500 साल पहले उन्होंने लिख दिया था। जो लोग यह जप तप
यज्ञ वृत पूजा करते हैं वह यह जानते हैं कि यह कितना कठिन है। बहुत कठिन है। हो भी
पा रहा है तो बहुत कठिनाई से हो पा रहा है। तो किसी ने पूछा कि करना क्या चाहिए
कलयुग के प्राणियों को? बाबा तुलसीदास जी कह रहे हैं-
रामहि
सुमिरिय गाइय रामहिं। संतत सुनिय राम गुन ग्रामहिं।।
कलयुग में सबसे सरल साधन है भव पार
होने के लिए कि राम को ही सुमिरिये और राम को ही गाइये। आइए हम राम कथा गाने व
सुनने की महिमा को जानते हैं क्योंकि यह कथा के प्रथम दिवस में नियम है। कथा की
महिमा का गायन होना चाहिए। कथा क्यों सुनें, क्यों गायें, क्यों करें, क्यों करवायें, लाभ
क्या है, प्रयोजन क्या है, उद्देश्य
क्या है, कारण क्या है? बहुत सारे
लोगों के मन में यह विचार उठता है बार-बार तो एक ही कथा सुनते हैं इससे होगा क्या?
रामायण की इतनी बड़ी पोथी है, वह रामायण तो एक
ही श्लोक में पूरी किया जा सकती है।
आदौ
राम तपो वनादि गमनं हत्वा मृगं काञ्चनम्
बैदेही हरणं जटायुमरणं सुग्रीव सम्भाषणम्।
बाली निर्दहलं समुद्र तरणं लंकापुरी दाहनम्
पश्चाद्रावण कुम्भकर्ण हननमेतद्धि रामायणम्।।
हो गई रामायण। एक श्लोक में हो सकती
है फिर 9-9
दिन, वर्ष में कई बार, जीवन
में कई बार क्यों ? बार-बार क्यों ? कौन
सी ऐसी कथा है इसमें जो हम नहीं जानते और क्यों सुनें दोनों बात।
इस बात को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से
समझते हैं क्योंकि यह वैज्ञानिक युग है। इस युग में विज्ञान परक जितनी बात होती
हैं उसको व्यक्ति बहुत प्रमाणिक मानता है। यदि विज्ञान का आधार दिया जाता है तो
उसको प्रामाणिक माना जाता है। मानस में बाबा तुलसी ने मंगलाचरण में सबसे बड़े
विज्ञानी को प्रणाम किया है।
वन्दे
विशुद्ध विज्ञानौ कवीश्वर कपीश्वरौ।
यहां पर उन्होंने विज्ञानी बस नहीं
विशुद्ध विज्ञानी कहा है। विशुद्ध विज्ञानी हैं आदिकवि वाल्मीकि जी। फिर भी हम
लौकिक व्यवहार से अगर देखे तो विज्ञान का एक नियम है। शरीर विज्ञान का। मुख से जो
प्रवेश होता है वह मल द्वार से बाहर निकलता है पहला सिद्धांत। दूसरा सिद्धांत कान
से जो प्रवेश करता है वह मुख मार्ग से निकलता है।
प्रश्न था कथा क्यों श्रवण करें? तो
देखिए अगर भगवान की कथा कानों से श्रवण करेंगे तो वही हमारे मुख से भी भगवान का
नाम निकलेगा। अगर हम संसार का प्रपंच कानों से श्रवण करेंगे तो वही हमारे मुख से
भी प्रपंच निकलेगा। उदाहरण के लिए हम कोई अभद्र फिल्मी गाने को सुन लेते हैं वही
मुख से गुनगुनाते हैं वही निकलता है।
और हम भगवान की कथा सुनते हैं तो भगवान का नाम मुख से निकलता है
इसीलिए कथा सुनना चाहिए जो भी भगवान की कथा सुन लेता है जो गा लेता है वह अमर हो
जाता है।
( भजन- जय जय राम कथा जय श्री
राम कथा )
बंधुओं
माता बहनों भगवान की कथा सुनने का परिणाम अगर देखे तो- सुनतहिं सीता कर दुख भागा। कथा सुनने से दुख जाता नहीं दुख भागता
है। क्योंकि दोनों में अंतर है- जाया जाता है धीरे-धीरे, लेकिन
भागा कैसे जाता है एकदम तेज से तो भगवान की कथा सुनने से दुख भी भागा जाता है। पल
भर में गायब हो जाता है।
और जिस संसार में हम रहते हैं उसका
नाम है दुख्खालय- दुखों का घर यहां तो सभी दुखी हैं। अगर भगवान की कथा सुनने से वह
दुख भाग जाए तो इससे बढ़कर के क्या बात हो सकती है सजनो। रामचरितमानस पढ़ा नहीं
जाता गया जाता है। यह गायन का ग्रंथ है। बाबा तुलसी ने मानस में जो भी लिखा है
चाहे वह संस्कृत के श्लोक हों, चाहे वह चौपाई हो, चाहे वह छंद हो, चाहे वह सोरठा हो, वह सब छंदबद्ध है। लयबद्ध है। राग रागनी में गाने योग्य है। यह गायन का
ग्रंथ है आपके मन में यह प्रश्न उठ सकता है कि हमको तो गाना आता ही नहीं है यहां
पर यह विचार ही नहीं करना है कि आता है कि नहीं आता है फिर आप विचार करेंगे कि
हमको तो सही गलत का डर लगता है तो इसको तो सोचा भी नहीं है क्योंकि बाबा जी लिखते
हैं-
भांय
कुभाय अनख आलसहू। नाम जपत मंगल दिसि दसहुँ।।
भगवान का नाम चाहे किसी भी प्रकार
लिया जाए भाव से अथवा को बिना भाव से आलस से चाहे जिस भी प्रकार भगवान का नाम मंगल
ही करता है। बाबा जी ने यहां पर जो लिखा है आलस में भी तो इसका एक तात्पर्य यह भी
है की कथा सुनने में नींद बड़ी प्यारी आती है। कथा सुनने के लिए अगर बैठ जाया जाए
तो वह बढ़िया नींद आती है कि कहना क्या। उसके भी कई कारण है नींद आने के। पहले तो
यह की कथा स्थल का जो वातावरण रहता है वह बड़ा दिव्य और शाश्वत रहता है और कथा के
बीच में नींद इसलिए भी ज्यादा आती है कि जो हमारे पाप होते हैं वह कथा को सुनने
में बाधा डालते हैं। तो भगवान का नाम आलस में भी लिया जाए तो वह कल्याणकारी है।
राम
राम कहि जे जमुहांयी। तिनहिं पाप पुंज समुहांयी।।
राम-राम कहता हुआ जो उबासी लेता है
उसके तरफ पाप कभी आते भी नहीं सोते- उठते बैठते जागते राम नाम का उच्चारण करना
चाहिए। तन के मैल को धोने के लिए तो कई उपकरण बनाए गए हैं साबुन शैंपू इत्यादि।
लेकिन मन के मैल को धोने के लिए केवल और केवल भगवान का नाम ही साधन है।
रघुबंस
भूषन चरित यह नर कहहि सुनहि जे गावहि।
कलिमल मनोमल धोइ बिनु श्रम राम धाम सिधावही।
सत पंच चौपाई मनोहर जानि जो नर उर धरै।
दारुण अबिद्या पंच जनित बिकार श्री रघुबर हरै।
जो मनुष्य रघुवंश के भूषण श्रीरामजी
का यह चरित्र कहते है,सुनते है और गाते है,वे कलियुग के पाप और मल को धोकर
बिना ही परिश्रम श्री रामजी के परमधाम को चले जाते है।(अधिक क्या)जो मनुष्य पांच
सात चौपाइयों को भी मनोहर जानकर(अथवा रामायण की चौपाइयो को श्रेष्ठ
पंच(कर्तव्याकर्तव्य का सच्चा निर्णायक)जानकर उनको)हृदय में धारण कर लेता है,उसके भी पांच प्रकार की अविद्या से उत्पन्न विकारो को श्रीरामजी हरण कर
लेते है।(अर्थात सारे राम चरित्र की बात ही क्या है,जो पांच
सात चौपाइयो को भी समझ कर उनका अर्थ हृदय में धारण कर लेते है,उनके भी अविद्या जनित सारे क्लेश श्री रामजी हर लेते है)।