श्री राम कथा हिंदी ram katha hindi mein
* मंगलाचरण के श्लोक*
अस्मद गुरुभ्यो नमः , अस्मत परम गुरुभ्यो
नमः, अस्मत सर्व गुरुभ्यो नमः , श्री
राधा कृष्णाभ्याम् नमः, श्रीमते रामानुजाय नमः
लम्बोदरं
परम सुन्दर एकदन्तं,
पीताम्बरं त्रिनयनं परमंपवित्रम् ।
उद्यद्धिवाकर
निभोज्ज्वल कान्ति कान्तं, विध्नेश्वरं सकल विघ्नहरं नमामि।।
अखंड
मंडलाकारं व्याप्तम येन चराचरम । तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः।।
नारायणं
नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम् । देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत् ।।
जयतु जयतु
देवो देवकीनन्दनोऽयं
, जयतु जयतु कृष्णो वृष्णिवंशप्रदीपः ।
जयतु जयतु
मेघश्यामलः कोमलाङ्गः,
जयतु जयतु पृथ्वीभारनाशो मुकुन्दः॥
बर्हापीडं
नटवरवपुः कर्णयोः कर्णिकारं, बिभ्रद् वासः कनककपिशं
वैजयन्तीं च मालाम् ।
रन्ध्रान्
वेणोरधरसुधया पूरयन गोपवृन्दैः, वृन्दारण्यं स्वपदरमणं
प्राविशद् गीतकीर्तिः ।।
श्रीराम
राम रघुनंदन राम राम,
श्री राम भरताग्रज राम राम ।
श्रीराम रण
कर्कश राम राम,
श्रीराम राम शरणम् भव राम राम ।।
श्रीरामचंद्रचरणौ
मनसा स्मरामि श्रीरामचंद्रचरणौ वचसा गृणामि ।
श्रीरामचंद्रचरणौ
शिरसा नमामि श्रीरामचंद्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ।।
माता रामो
मत्पिता रामचंद्रः
, स्वामी रामो मत सखा रामचंद्रः ।
सर्वस्वं
मे रामचंद्रो दयालु,
र्नान्य जाने नैव जाने न जाने ।।
रामाय
रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे
रघुनाथाय
नाथाय सीताया पतये नम:।।
ध्यायेन्नित्यं
महेशं रजतगिरिनिभं चारुचन्द्रावतंसं,
रत्नाकल्पोज्ज्वलांगं
परशुमृग वराभीतिहस्तं प्रसन्नम्।
पद्मासीनं
समन्तात् स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानं
विश्वाद्यं
विश्वबीजं निखिलभयहरं पंचवक्त्रं त्रिनेत्रम्।।।।७।।
अंजना
नंदनं वीरं जानकी शोक नाशनं! कपीश मक्ष हंतारं – वंदे लंका भयंकरं ॥
मूकं करोति
वाचालं पङ्गुं लङ्घयते गिरिं । यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्द माधवम् ॥
भक्त भक्ति
भगवंत गुरु चतुर नाम बपु एक। इनके पद वंदन कीएँ नासत विध्न अनेक ।।
( भूमिका
)
अखिल हिय प्रत्ययनीय परमात्मा, पुरुषोत्तम
गुण गुण निलय , कौशल्या नंदनंदन परम ब्रह्म , परम सौंदर्य माधुर्य लावण्य सुधा सिंधु , परम आनंद
रस सार सरोवर समुद्भूत पंकज, कौशल्या आनंद वर्धन अवध नरेंद्र
नंदन श्री रघुनंदन , विदेह वनस् वैजयंती जनक नरेंद्र नंदनी,
भगवती भास्वती परांबा जगदीश्वरी माँ सुनैना की आंखों की पुत्तलिका ,
विदेहजा जनकजा जनकाधिराज तनया, जनक राज किशोरी
वैदेही मैथिली श्री राम प्राण वल्लभी श्री जानकी जी |
इन दोनों युगल श्री सीता रामचंद्र
भगवान के चरण कमलों में कोटि-कोटि नमन
नतमस्तक वंदन एवं अभिनंदन,
चारों भैया और चारों मैया को कोटि-कोटि प्रणाम ,अनंत बलवंत गुणवंत श्री हनुमान जी महाराज के चरणों में बारंबार नमस्कार
समुपस्थित भगवत भक्त श्रीरामकथानुरागी सज्जनों आप सभी को भी कोटि-कोटि नमन |
सज्जनों हम सब अत्यंत भाग्यशाली हैं
जो कि वेद रूपी बाल्मीकि रामायण श्री राम कथा को सुनने का पावन संकल्प अपने हृदय
में धारण किए हैं |कयी कयी जन्मों के हमारे पूण्य जब उदय होते हैं तब जाकर हमको यह भगवान की
सुंदर कथा सुनने को पढ़ने को प्राप्त होती है |
आइये हम सब कथा यात्रा में प्रवेश
करें,
भगवान की यह कथा हम सबको प्राप्त हो रही है, यह
कथा कब प्राप्त होती है? जब कृपा में भी कृपा हो जाती है उसे
कहते हैं विशेष कृपा। भगवान शंकर ने भी मैया पार्वती से यही कहा है।
अति
हरि कृपा जाहि पर होई। पांव देइ एहि मारग सोई।।
एक होती है सामान्य कृपा सामान्य
कृपा से संसार मिलता है संसार का सुख वैभव मिलता है, घर द्वार मिलता है,
सामान्य कृपा से रुपया पैसा मिलता है, सामान्य
कृपा से पद प्रतिष्ठा मिलता है। लेकिन प्रभु की कथा नहीं मिलती कथा तो केवल भगवान
की विशेष कृपा से मिलती है और हम सबका यह सौभाग्य है कि हम पर भगवान की विशेष कृपा
हुई है।
प्रभु श्री राम की यह पावन कथा की
बड़ी महिमा है-
मंगल करनि
कलिमल हरनि,
तुलसी कथा रघुनाथ की।
गति कुर
कविता सरित की,
ज्यों सरित पावन पाथ की।।
श्री रघुनाथ जी की कथा कल्याण करने
वाली और कलयुग के पापों को हरण करने वाली है। प्रभु की कथा अनंत है-
चरितं
रघुनाथस्य शतकोटि प्रविस्तरम्। एकैक मक्षरं पुंसां महापातक नाशनम्।।
राम चरित्र के प्रत्येक अक्षर में
महापातक को विनाश करने की शक्ति निहित है। संसार में राम जी से बढ़कर सत्य मार्ग
पर आरूढ़ कोई दूसरा है ही नहीं।
रामायण का अर्थ है- श्री रामस्य चरितान्वितम् अयनं शास्त्रम्। रामचरित्र से
संयुक्त शास्त्र का नाम रामायण है। रामायण का सीधा अर्थ है- श्री राम जी का अयन
(घर) है। इसलिए श्री राम जी सपरिकर नित्य निवास करते हैं।
श्री
रामः अय्यते प्राप्यते येन तद् रामायणम्।
जिसके द्वारा श्री राम जी की
प्राप्ति हो उसे रामायण कहते हैं। प्रभु श्री राम जी की कथा का फल क्या है?
सर्व
पाप प्रशमनं दुष्ट ग्रह निवारणम्।
यह सभी पापों को नष्ट करने वाली तथा
समस्त पाप ग्रहों की बाधा को निर्वृत्त करने वाली है। ग्रहों की संख्या नव है
जिसमें कुछ शुभ ग्रह कुछ दुष्ट (पाप) ग्रह हैं। इन ग्रहों के अतिरिक्त एक और अनोखा
मंगलमय परम कृपालुग्रह है। वह ग्रह जब स्वीकार कर लेता है तब अन्य ग्रहों की कुछ
भी नहीं चलती। इस ग्रह का नाम है राम ग्रह, कृष्ण गृह। राम कथा का
उत्स है- चरित्र निर्माण।
कथा शब्द का अर्थ- का अर्थात आनंद और
था माने स्थापना जो आनंद की स्थापना करे वही कथा है। संसार में रहकर भी कैसे आनंद
से जिया जाए यह राम कथा बताती है। जो भक्तजन श्रद्धा पूर्वक इस कथा को सुनते हैं
वह चिंता मुक्त,
रोग मुक्त, शोक मुक्त और गर्व मुक्त होकर जीवन
जीते हैं।
वह उस वैराग्य भाव से परिचित हो जाते
हैं जो श्री राम जी में था जिसे धारण करके 14 वर्ष के वनवास काल को
उन्होंने प्रसन्नता से ऐसे बिता दिय जैसे 14 दिन बीते हों।
कर्म मनुष्य को तभी बंधन में बांधता
है जब उसमें स्वामित्व की भावना हो। राम जी ने अपने पिता के राज्य को इस प्रकार
त्याग दिया जैसे राहगीर किसी भी वस्तु में राग नहीं रखता।
राजीव लोचन
राम चले। तजि बाप को राजबराउ की नाईं।।
राम कथा के श्रोता को यह ध्यान देना
होगा कि जो चेतना संसार की विषयों की ओर दौड़ रही है उसे अंतर्जगत की ओर मोड़ना
है।
परम पूज्य गोस्वामी जी मंगलाचरण के
सात श्लोकों में क्रमशः सात कांडों की कथाओं के बीच बोये हैं। यह सात कांडों के
क्रमशः नाम हैं- बालकांड, अयोध्या कांड, अरण्यकांड, किष्किंधा कांड, सुंदरकांड,
लंका कांड, उत्तरकांड।
यह राम कथा सभी दुखों और संशयों को
समाप्त कर देती है। सज्जनों जीवन में दुखों का आना स्वाभाविक है। शिवजी भी पत्नी
वियोग से दुखी होते हैं तो फिर सामान्य व्यक्ति को दुख तो झेलना ही पड़ेगा।