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शिव पुराण कथा हिंदी में-6 shiv puran ki katha hindi mein

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शिव पुराण कथा हिंदी में-6 shiv puran ki katha hindi mein

शिव पुराण कथा हिंदी में-6 shiv puran ki katha hindi mein

 शिव पुराण कथा हिंदी में-6 shiv puran ki katha hindi mein

शिव पुराण कथा हिंदी में-6 shiv puran ki katha hindi mein

विष्णु जी उस बात को सत्य मानकर ब्रह्मा को स्वयं प्रणाम किया और उनका षोडशोपचार पूजन किया। उसी समय कपटी ब्रह्मा को दंडित करने के लिए उस प्रज्वलित स्तंभ लिंग से महेश्वर प्रगट हो गए-
विधिं प्रहर्तुं शठमग्निलिङ्गतः
स ईश्वरस्तत्र बभूव साकृतिः।
समुत्थितः स्वामिविलोकनात पुनः
प्रकम्प पाणिः परिगृह्य तत्पदम्।। वि-7-29


महेश्वर को प्रगट हुआ देखकर विष्णु उठ खड़े हुए और कांपते हुए हाथों से उनका चरण पकड़ कर कहने लगे- हे करुणाकर, आदि और अंत से रहित शरीर वाले आप परमेश्वर के विषय में मैंने मोह बुद्धि से बहुत विचार किया किंतु कामनाओं से उत्पन्न वह विचार सफल नहीं हुआ हमें क्षमा करें यह सब आपकी ही लीला से हुआ है।

ईश्वर बोले- हे वत्स मैं तुम पर प्रसन्न हूं तुम सत्यवादी हो अतः मैं तुम्हें अपनी समानता प्रदान करता हूं ।

नंदिकेश्वर बोले- महादेव जी ने ब्रह्माजी पर क्रोधित हो अपनी भौहों के मध्य से भैरव को प्रकट किया। जिसने नमस्कार कर उनसे आज्ञा मांगी, शिवजी ने आज्ञा दी कि तुम अपनी तलवार से ब्रह्मा की पूजा करो ।

यह आज्ञा पाते ही भैरव जी ने ब्रह्मा के सिर के केस जा पकड़े , ब्रह्मा थर थर कांपने लगे । ब्रह्मा जी का पांचवा मिथ्याभि सर काट डाला । भैरव जी ने और जब सिर काटना चाहा तब ब्रह्माजी भैरव के चरणों में गिर गए यह देखकर विष्णु जी ने भी भगवान शिव का आश्रय लिया और हाथ जोड़कर प्रार्थना की।

कि आरंभ में आपने ही कृपा करके इन्हें सिर प्रदान किया था अतः इन्हें क्षमा करें । शिव जी की आज्ञा से भैरव ने ब्रह्मा जी को छोड़ दिया। शिवजी बोले तुमने अपनी प्रतिष्ठा और ईशत्व पाने के लिए छल किया था, झूठ बोला था इसलिए तुम सत्कार स्थान और उत्सव से बिहीन किए जाते हो।

इसलिए संसार में तुम्हारा सत्कार नहीं होगा और तुम्हारे मंदिर तथा पूजन उत्सव आदि नहीं होंगे । ब्रह्मा जी बोले हे महा विभूति संपन्न स्वामी आप मुझ पर प्रसन्न होइए मैं आपकी कृपा से अपने सिर के काटने को भी आज श्रेष्ठ समझता हूं ।

विश्व के कारण भगवान शिव को नमस्कार है। भगवान शिव बोले- हे पुत्र मैं जगत की स्थिति को ना बिगड़ने दूंगा, जो अपराधी हैं उन्हें तुम दंड दो और लोक मर्यादा का पालन करो। मैं तुम्हें वरदान देता हूं-

वरं ददामि ते तत्र गृहाण दुर्लभं परम्।
वैतानिकेषु गृह्येषु यज्ञेषु च भवान गुरुः।। वि-8-13

आज से तुम गणों के आचार्य हुए । अतः तुम्हारे बिना कोई भी यज्ञ पूर्ण ना होगा ।

ऐसा कहकर भगवान शिव केतकी के पुष्प से बोले अरे मिथ्या भाषी दुष्ट केतकी तू तुरंत यहां से भाग जा । तू मेरी पूजा के योग्य नहीं है। जब शिव गणों ने उसे दूर भगा दिया तब केतकी शिव जी की प्रार्थना करने लगा । हे नाथ मुझे कुछ तो सफल कीजिए तथा मेरे पापों को दूर कीजिए।

शिवजी ने कहा मेरा वचन मिथ्या नहीं होता तू मेरे भक्तों के योग्य है और इस प्रकार तेरा भी जन्म सफल हो जाएगा और मेरी मंडल रचना का सिरमौर तू ही बनेगा ।


( शिव जी का ज्ञानोपदेश)

नंदीकेश्वर बोले- हे सनत कुमार ब्रह्मा विष्णु हाथ जोड़कर शिवजी के अगल-बगल में जा बैठे और उनका पूजन करने लगे। तब शिव जी प्रसन्न हो उनसे कहने लगे हे वत्सों तुम्हारी पूजा से मैं अत्यंत प्रसन्न हूं।

इसी कारण यह दिन परम पवित्र और महान से महान होगा-
दिनमेतत्ततः पुण्यं भविष्यति महत्तरम्।
शिवरात्रिरिति ख्याता तिथिरेषा मम प्रिया।। वि-9-10

आज की यह तिथि शिवरात्रि के नाम से विख्यात होकर मेरे लिए परम प्रिय होगी । शिवरात्रि के दिन जो मेरे लिंग बेर (शिव की पिंडी) की पूजा करेगा वह सृष्टि विधायक तक होगा ।

यदि कोई निराहार रहकर जितेन्द्रिय एक वर्ष तक निरंतर मेरी पूजा करेगा उसका जितना फल है वह मात्र एक दिन यह शिवरात्रि के पूजन करने पर प्राप्त हो जाएगा।

भगवान शिव ने कहा-
मद्धर्मवृद्धि कालोयं चन्द्रकाल इवाम्बुधेः। वि-9-14
जैसे- पूर्ण चंद्रमा उदय समुद्र की वृद्धि का अवसर है, उसी प्रकार यह शिवरात्रि तिथि मेरे धर्म की वृद्धि का समय है।

हे वत्सो पहले जब मैं ज्योतिर्मय स्तंभ रूप से प्रगट हुआ था उस समय मार्गशीर्ष मास में आद्रा नक्षत्र था। जो पुरुष मार्गशीर्ष में आर्द्रा नक्षत्र होने पर मुझ उमापति का दर्शन करता है अथवा मेरी मूर्ति या लिंग की झांकी का दर्शन करता है वह मेरे लिए कार्तिकेय से भी अधिक प्रिय है।

उस शुभ दिन मेरे दर्शन मात्र से पूरा फल प्राप्त होता है और दर्शन के साथ-साथ अगर पूजन भी किया जाए तो उसके फल का वर्णन वाणी द्वारा नहीं किया जा सकता। इस रणभूमि में मैं लिंग रूप से प्रकट होकर बहुत बड़ा हो गया था उस लिंग के कारण यह भूतल लिंग स्थान के नाम से प्रसिद्ध होगा।

हे पुत्रों जगत के लोग इसका दर्शन और पूजन कर सकें इसके लिए यह अनादि और अनंत ज्योति स्तंभ अत्यंत छोटा हो जाएगा । यह लिंग सब प्रकार के भोगों को सुलभ कराने वाला और भोग तथा मोक्ष का एकमात्र साधन होगा ।

इसका दर्शन स्पर्श तथा ध्यान प्राणियों को जन्म और मृत्यु से छुटकारा दिलाने वाला होगा। अग्नि के पहाड़ जैसा जो यह शिवलिंग यहां प्रकट हुआ है इसके कारण यह स्थान अरुणाचल नाम से प्रसिद्ध होगा । यहां अनेक प्रकार के बड़े-बड़े तीर्थ प्रगट हो जाएंगे। इस स्थान में निवास करने या मरने से जीवो का मोक्ष हो जाएगा।

ब्रह्मा विष्णु के युद्ध में जितनी सेना मारी गई थी उन सबको शिव जी ने अमृत वर्षा कर जीवनदान प्रदान किया और उन दोनों की परस्पर शत्रुता को यह कह कर समाप्त कर दिया कि मेरे ही शकल और निष्कल दो स्वरूप हैं और किसी के नहीं ।

बड़ा आश्चर्य है कि तुम लोग अज्ञान वश अपने को ईश्वर मान लिया था उसे नष्ट करने के लिए ही मैं युद्ध भूमि में आया था । अतः तुम अहंकार त्याग कर मेरी आराधना करो, मैं ही परम ब्रह्म हूँ और मेरी ही सब कलाएँ हैं।

मुझ गुरुदेव के वाक्य ही तुम्हारे लिए सदा प्रमाण है यह मैंने तुम्हारी प्रीति देख कर के ही कहा है । पहले मेरी ब्रह्म रूपता का बोध कराने के लिए निष्कल लिंग प्रकट हुआ था फिर तुम दोनों को अज्ञात ईश्वरत्व का स्पष्ट साक्षात्कार कराने के लिए मैं साक्षात जगदीश्वर ही शकल रूप में तत्काल प्रगट हो गया ।

अतः मुझ में जो ईशत्व है उसे ही मेरा शकल रूप जानना चाहिए तथा जो यह मेरा निष्कल स्तंभ है वह मेरे ब्रह्म स्वरूप का बोध कराने वाला है ।

हे पुत्रों लिंग लक्षण युक्त होने के कारण ये मेरा ही लिंग चिन्ह है, तुम लोगों को यहां रहकर प्रतिदिन इस का पूजन करना चाहिए। यह मेरा ही स्वरूप है और मेरे समीप्य की प्राप्ति कराने वाला है।

महत्पूज्यमिदं नित्यमभेदा ल्लिङलिग्ङिनोः।। वि-9-43
लिंग और लिंगी में नित्य अभेद होने के कारण मेरे इस लिंग का महान पुरुषों को भी पूजन करना चाहिए। जहां जहां जिस किसी ने मेरे लिंग को स्थापित कर लिया वहां मैं अप्रतिष्ठित होने पर भी प्रतिष्ठित हो जाता हूं।

मेरे लिंग की स्थापना करने का फल मेरी समानता की प्राप्ति बताया गया है । एक के बाद दूसरे शिवलिंग की स्थापना कर दी गई तब फल रूप से मेरे साथ एकत्व ( सायुज्य मोक्ष ) रूप फल प्राप्त होता है ।

प्रधानतया शिवलिंग की ही स्थापना करनी चाहिए । मूर्ति की स्थापना उसकी अपेक्षा गौण है। शिवलिंग के अभाव में सब ओर से मूर्ति युक्त होने पर भी वह स्थान क्षेत्र नहीं कहलाता।

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