राम कथा हिंदी में लिखी हुई-14 ram ki katha
मास
दिवस कर दिवस भा मरम न जानइ कोइ।
रथ समेत रबि थाकेउ निसा कवन बिधि होइ।।
महीने भर का दिन हो गया लेकिन इस
रहस्य को कोई नहीं जानता। सूर्य अपने रथ सहित वहीं रुक गए तो फिर रात किस तरह होती? अच्छा
एक बात और की सारी अयोध्या दर्शन कर रही है प्रभु श्री राघवेंद्र सरकार का। सब
बहुत प्रसन्न भी हैं रामलला सरकार का दर्शन हो रहा है। लेकिन एक व्यक्ति ऐसा है जो
बहुत दुखी है क्योंकि उसको दर्शन नहीं हो रहा है। वह कौन है? तो वह है चंद्रमा! क्योंकि सब दर्शन कर रहे हैं। सूर्य नारायण भी अपने
स्थान पर रुक गए हैं एक महीने का दिन हो गया है। चंद्रमा दुखी है कि हमको दर्शन
क्यों नहीं हो रहा है। जब तक सूर्य है तो चंद्रमा अ नहीं सकते। चंद्रमा के दर्शन न
होने के कारण सुनिए-
रथ
समेत रवि थाकेउ निसा कवन बिधि होइ।
भगवान सूर्य नारायण रथ हाकते हाकते
थक गए। एक महीने तक रुके हैं, रात्रि हो नहीं रही, चंद्रमा का आगमन हो नहीं रहा और चंद्रमा को दर्शन मिल नहीं रहा इसलिए वह
दुखी है। चंद्रमा दुखी होकर भगवान के पास जाकर निवेदन किया कि हे भगवान सारी
दुनिया दर्शन कर रही है हमको दर्शन नहीं हो रहा है। भगवान ने कहा क्यों क्या कारण
है? चंद्रमा ने कहा प्रभु जब सूर्य नारायण जाएंगे तब तो मैं
आऊंगा उनको कहिए वे जाएं।
भगवान ने कहा कि अरे चंद्र मैं सूर्य
नारायण से कैसे कहूं कि बे हट जाएं वह, क्योंकि मैं उन्हीं के वश
में आया हूं। वह हमारे पूर्वज हैं। चंद्रमा दुखी होकर कहने लगा कि प्रभु मुझे
दर्शन कैसे हो? तो भगवान ने कहा मैं तुमको वचन देता हूं कि
अभी तो मैं सूर्यवंश में आया हूं दिन के ठीक 12:00 बजे मध्य
दिवस। लेकिन अगले अवतार में मैं तुम्हारे वंश में आऊंगा चंद्र वंश में और मध्य
रात्रि में तब तुम जी भर के मेरा दर्शन करना। चंद्रमा ने कहा प्रभु अगले अवतार के
लिए तो एक युग की परीक्षा करना पड़ेगा। आप द्वापर में आएंगे तब तक मैं कैसे आपके
बिना रहूंगा? इतनी प्रतीक्षा मैं कैसे कर पाऊंगा? तो भगवान ने कहा कि मैं तुझे एक आधार दे देता हूं।
इतनी बड़ी प्रतीक्षा के लिए कोई एक
सहारा चाहिए। चंद्रमा ने कहा मैं किस सहारे आपके द्वापर युग तक प्रतीक्षा करूं आने
की? तो भगवान ने कहा कि मैं तुझे सहारा देता हूं! चंद्रमा ने पूछा कि भगवान
क्या सहारा देंगे आप? तो प्रभु श्री रामचंद्र जी ने कहा देखो
मैं सूर्यवंश में आया हूं लेकिन मुझे कोई राम सिंह नहीं रहेगा क्योंकि जो सूर्यवंशी
होते हैं वह सिंह लगाते हैं। मुझे आज से कोई भी राम सिंह नहीं कहेगा। चंद्रमा ने
कहा तो क्या कहेगा भगवन? श्री राम जी ने कहा कि आज से पूरी
दुनिया मुझे रामचंद्र कहकर के पुकारेगी। अपना नाम तेरे नाम के साथ जोड़ देता हूं,
तुम मेरे नाम के साथ प्रतीक्षा करना।
बोलिए श्री
रामचंद्र भगवान की जय
बंधु माताओं जिनको भगवान के नाम का
सहारा मिल जाता है उसको फिर अन्य किसी के सहारे की जरूरत नहीं पड़ती है। दुनिया
में अगर कोई सबसे महत्वपूर्ण तत्व है वह भगवान का नाम। श्री रघुनाथ जी की शरणागत
वत्सलता का स्मरण करते हुए गोस्वामी जी कहते हैं- जिनका स्मरण करने मात्र से अशुभ
होता है ऐसे बंदर और रीक्ष- भालू जाती के प्राणियों को श्री राम जी ने अपनाया तथा
परम पवित्र बना दिया। श्री रघुनाथ जी के स्नेहभाजन होने से ये तुक्ष प्राणी भी
बंदिनीय हो गए।
असुभ
होइ जिन्हके सुमिरे ते बानर रीछ बिकारी।
बेद बिदित पावन किये ते सब महिमा नाथ तुम्हारी।।
सभी प्राणियों को अपना मित्र और
सहयोगी बनाकर भगवान श्री राम ने जिस उदारता का परिचय दिया वैसा अन्य अवतारों में
नहीं हुआ। पेड़ की डोलियां पर उछल-कूद करने वाले बंदरों को श्री रघुनाथ जी ने अपने
समान शीलवान बना दिया। इस अद्भुत कार्य की चर्चा श्री रामचरितमानस में गोस्वामी जी
ने अनेक बार की है।
प्रभु
तरु तर कपि डार पर ते किए आपु समान।
तुलसी कहूँ न राम से साहिब शीलनिधान।।
भक्त प्रहलाद से पिता ने जब पूछा कि
तेरा राम कहां है तो उन्होंने उत्तर दिया-
अरे
पिता तुम बावरे, कहाँ बताऊँ राम।
मो में तो में खड्ग खंभ में जहँ देखो तहँ राम।।
अनन्य भाव से श्री राम की उपासना
करने पर ही राम तत्व का बोध होता है।
सजनो अयोध्या में भगवान श्री राम के प्राकट्य का महान उत्सव का लाभ
लेकर सभी बड़े प्रसन्न हुए। इस महोत्सव का दर्शन सभी ब्रह्मांड के दिव्यातिदिव्य
देवी देवताओं ने किया। मुनियों ने नागों ने और सब दर्शन करने के बाद अपने-अपने घर
को गए हैं। यहां पर दूसरा रहस्य भगवान शंकर प्रगट कर रहे हैं। भगवान शंकर ने कहा
माता पार्वती जी से कि हे देवी-
औरउ
एक कहउँ निज चोरी। सुनु गिरिजा अति दृढ मति तोरी।।
काकभुशुण्डि संग हम दोऊ। मनुजरूप जानइ नहिं कोऊ।।
तुम राम जी के चरित्र को सुनने में
बड़ी उत्सुक हो इसलिए मैं और अपनी एक चोरी की बात कहता हूं। जिसे मैं अभी तक आपसे
छुपा कर के रखा था सुनो। भगवान के जन्म महोत्सव पर मैं भी गया था। कागभूसुंडी और
मैं दोनों साथ-साथ गए थे परंतु हम अपना रूप बदलकर मनुष्य रूप में गए थे इसीलिए
हमको कोई वहां जान नहीं पाया।
राम जी के दर्शन करने के लिए अयोध्या
में लाइन लगी हुई थी उसी कतार में भोले बाबा लगे हुए थे मनुष्य रूप धारण करके और
उसी कतार में कागभूसुंडी जी भी मनुष्य रूप में लगे हुए थे उन्होंने देखते ही पहचान
लिया कि अरे भोलेबाबा जी यहां आप कहाँ से? भोले बाबा मुस्कुराने लगे
कहने लगे कि अपने प्रभु के बाल स्वरूप का दर्शन करने से मैं खुद को रोक नहीं पाया
जैसे आप आए वैसे मैं भी आया। जैसे ही प्रवेश करने लग गए भोलेनाथ और कागभुसुंडि जी
द्वारपालों ने रोक दिया। अरे कहां घुसे जा रहे हैं अभी आप नहीं जा सकते अंदर। भोले
बाबा विचार किया कि हम तो मनुष्य रूप में हैं ये क्यों अंदर नहीं जाने दे रहे?
उन्होंने कहा कि आप हमको दर्शन करने दीजिए सब कर रहे हैं। द्वारपाल
बोले हां सब कर रहे हैं लेकिन आप नहीं कर सकते, पहले
अयोध्यावासी दर्शन करेंगे। यह जो आ रहे हैं इनकी सबकी हमको पहचान है आपकी कोई
पहचान नहीं है पहले आप अपना परिचय पत्र लायें फिर आए।
अब भोलेनाथ और कागभुसुंडी दोनों सरजू
किनारे बैठकर के विचार करने लगे की अब हम अपने प्रभु का दर्शन किस भांति पा सकते
हैं? तब कागभूसुंडी जी ने भोलेनाथ से कहा कि प्रभु एक उपाय बताऊँ जिससे हम
दर्शन पा सकते हैं। भोलेनाथ ने कहा हां बताओ? काग भूसुंडी ने
कहा कि हे प्रभु आप ऐसा करिए आप बन जाइए ज्योतिषाचार्य और मैं बन जाऊं आपका चेला
आप तो वैसे भी देवों के देव महादेव हैं। त्रिकालज्ञ हैं सब कुछ जानने वाले हैं। तो
आप सबके हाथ देखिएगा और उनके भविष्यफल को कहिएगा। जिससे आपकी ख्याति तुरंत सभी जगह
फैल जाएगी और तब राजमहल में भी आपको बुलवाया जाएगा तो इस प्रकार से दर्शन हो सकता
है।
अब भोले बाबा वही सरयू के किनारे सब
का हाथ देखना प्रारंभ कर दिए और जब सबको सटीक उनके भूत का और भविष्य का फल बताने
लग गए तो उनका नाम चारों तरफ फैल गया। यह समाचार महलों तक पहुंचा। कौशल्या मैया ने
सेवकों को भेजा कि जाओ एक बड़े बढ़िया ज्योतिषाचार्य हैं उनको बुला करके लाओ। सेवक
पहुंचे हैं भोले बाबा के पास का कागभुसुंडी जी देखते ही पहचान गए कि यह राजभवन की
सेवक है। उन्होंने कहा कहिए क्या बात है? उन्होंने कहा कि
ज्योतिषाचार्य कौन है? तो बोले ए हमारे गुरुजी है बहुत बड़े
ज्योतिषाचार्य हैं। सेवकों ने कहा तो चलिए महारानी कौशल्या ने बुलाया है। अब दोनों
लोग महाराज दशरथ के राजमहल तक पहुंच गए तो भगवान शंकर का तो द्वारपालों ने स्वागत
सत्कार किया और उनको अंदर प्रवेश कराया। लेकिन कागभुसुंडी जी को द्वारपालों ने
द्वार पर ही रोक दिया कि आप अंदर नहीं जा सकते।
अब आप विचार कीजिए कि कैसी स्थिति
होगी कागभूसुंडी जी की क्योंकि वह बाहर रह गए और भगवान शंकर अंदर चले गए। धीरे से
कागभुसुंडी जी ने कहा भोले बाबा से, प्रभु हमको भी अंदर कीजिए
नहीं तो यह जो ज्योतिषाचार्य बने हैं सारी पोल खुल जाएगी। मैं अभी सारा भेद कहता
हूं। मैं ही आपको जुगाड़ बताया हूं और आप मुझे ही बाहर छोड़कर के अंदर जा रहे हैं?
यह सुनते ही भोले बाबा हमारे रुक गए। भगवान शंकर फस गए चक्कर में।
विचार किया कि इसको भी बुलाना पड़ेगा नहीं ये सब काम बिगाड़ देगा। तो भगवान शंकर
ने भी एक जुगाड़ निकाला।
भगवान शंकर इसी समय परेशान से दीखने
लग गए। सेवकों ने पूछा अरे बाबा जी क्या हुआ? चलिए अंदर महारानी कौशल्या
प्रतीक्षा कर रही हैं। भोले बाबा कहने वालों की अरे एक समस्या है! सेवकों ने पूछा
कि क्या समस्या है? भोले बाबा कहने लगे कि मैं बूढ़ा हो गया
हूं तो मेरी आंख कमजोर हो गई है। तो जो हाथ की मोटी मोटी रेखा है उनको तो मैं देख
कर पढ़ लेता हूं लेकिन जो छोटी-छोटी है उनको मैं देख नहीं पाता।
सेवकों ने कहा कि अब क्या होगा? तो
कहने लगे कि वह मेरा चेला है जो द्वार पर खड़ा है वह छोटी-छोटी रेखाओं को वह
बताएगा। सेवकों ने कहा तो क्या इनको भी ले चलना पड़ेगाज? भगवान
शंकर ने कहा इनका अंदर जाना बहुत जरूरी है। तब सेवकों ने कहा आओ भाई तुम भी चलो
अंदर जल्दी इस प्रकार जुगाड़ से दोनों लोग अंदर पहुंच गए हैं। मोटी रेखा देखने के
लिए गुरुजी और पतली रेखा देखने के लिए चेला जी। अब जैसे ही अंदर पहुंचे हैं यहां
और अनोखी लीला हुई है जैसे ही महादेव ने अपने स्वामी को बाल रूप में देखा है। रोम
रोम पुलकित हो गए। अतिशय प्रेम के कारण उनके नेत्रों से आंसुओं की धारा चलने लग
गई। और भगवान श्री राम भी बड़े प्रसन्न है कि मेरे ईस्ट आज आए हैं आज उनका दर्शन
मुझे मिला।
ऐसी जोड़ी संसार में दूसरी है ही नहीं। संसार में एक पूज्य होता है दूसरा पूजक होता है। लेकिन यहां पर दोनों ही एक दूसरे के पूज्य और पूजक हैं। भगवान शंकर ने प्रभु का दर्शन कर लिया हाथ की रेखा देखकर के सब बता दिया मन में भगवान श्री राम के बाल स्वरूप को धारण करके जल्दी से काग भूसुंडी जी से बोले कि चलो चला जाए।
जैसे ही भोलेनाथ ने कहा, मैया
कौशल्या ने कहा कि अरे बाबा जी रुको! भगवान शंकर डर गए कि कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं
हो गई? यह मैया जान तो नहीं गई? लेकिन
जब कौशल्या मैया ने कहा कि अरे बाबा जी मेरे लाला को आशीर्वाद तो देकर जाओ। अपना
हाथ उसके सर पर रख दो। तब भगवान शंकर के जी में जी आया। लेकिन फिर दूसरी परेशानी
में फंस गए कि यह तो मेरे स्वामी हैं, स्वामी को आशीर्वाद
दिया नहीं जाता स्वामी से तो आशीर्वाद लिया जाता है।
